चुनावी भाषण शुरू हो गए हैं और मुद्दे हवा हो गए हैं. भाषणों में भाषाओं का हाल कुछ ऐसा हुआ कि अच्छा खासा समय शराब और सराब में लग गया. अपने अपने मुद्दों को लेकर नेताओं का इंतज़ार कर रही जनता अब इन रैलियों के बाद नेताओं के मुद्दे पर भिड़ जाएगी. आज जिस तरह से प्रधानमंत्री और विपक्ष ने अपनी भाषाई क्षमता का प्रदर्शन किया उससे लगता है कि कहीं 2019 का चुनाव डिक्शनरी को लेकर न हो जाए. रोज़गार को मुद्दा बनाने वाले बेरोज़गारों को भी इससे लाभ होगा. नौकरी भले न मिले मगर डिक्शनरी उनके काम आ सकती है. प्रधानमंत्री ने सपा, रालोद और बसपा को सराब बता दिया. दन्त स वाले सराब से तो चचा ग़ालिब ने शराब पर कुछ नहीं लिखा. शराब पर लिखने वाले तमाम शायरों ने श से ही शराब लिखा स से सराब नहीं लिखा.
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