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रवीश कुमार का प्राइम टाइम : शाहीन बाग़ जैसे प्रदर्शनों से कौन बोर हो गया है?

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दिल्ली में बैठे खलिहर विद्वानों को लगता है कि नागरिकता कानून के समर्थन और विरोध की रैलियों से बोरियत होने लगी है. वे इतने बोर हो चुके हैं कि उन्हें इन रैलियों पर ट्वीट करने के लिए कुछ नहीं है तो वो अब लिखने लगे हैं कि इन रैलियों और प्रदर्शनों से होगा क्या. कब तक होगा. ये सवाल पूछा जा रहा है जो विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं. लेकिन समर्थन में जो रैलियां हो रही हैं वो क्यों इतनी बेहिसाब है. ऐसा क्या फैसला है ये कि इसे समझाने के लिए बीजेपी को देश भर में 250 प्रेस कांफ्रेंस और 1000 सभाएं करनी पड़ रही हैं. इसमें स्थानीय और राष्ट्रीय नेता भी हैं और दरवाज़े दरवाज़े जाकर कानून को समझाने का कार्यक्रम भी है. जब इस कानून को 130 करोड़ भारतीयों का समर्थन हासिल है तो फिर बीजेपी को इतनी रैलियां क्यों करनी पड़ रही हैं. अब यह देखा जाना चाहिए कि 1000 सभाओं में से कितनी सभाएं असम और पूर्वोत्तर के राज्यों में होती हैं. जहां इस कानून के विरोध का स्वरूप ही कुछ अलग है. वैसे असम में दो बार प्रधानमंत्री को अपना दौरा रद्द करना पड़ा है. वहां पर जे पी नड्डा और राम माधव की सभा हुई है मगर गुवाहाटी में.



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