यादों में '83: एक ऐसी जीत, जिसने पूरे भारत को बदलकर रख दिया...

यादों में '83: एक ऐसी जीत, जिसने पूरे भारत को बदलकर रख दिया...

नई दिल्ली:

25 जून, 1983 को भारतीय टीम ने क्रिकेट की दुनिया को चौंकाते हुए वर्ल्ड कप जीतने का करिश्मा कर दिखाया था। यह जीत भारत के क्रिकेट की दुनिया के बादशाह बनने भर की जीत नहीं थी, यह क्रिकेट के रोमांच को बढ़ाने वाली जीत भर भी नहीं थी, बल्कि यह वह जीत थी जिसने पूरे भारत को बदल दिया, हमेशा हमेशा के लिए।
 
1983 में भारत में इंदिरा गांधी छोटे अंतराल के बाद वापसी करते हुए सत्ता पर पूरी तरह काबिज थीं। भारतीय जनता पार्टी शुरुआत तो हो गई थी। संजय गांधी की गैर मौजूदगी में राजीव गांधी भारतीय राजनीति में पांव जमाने की कोशिशों में जुटे थे, लेकिन अपनी मां के साये में ही।
 
एक साल पहले पहले दिल्ली में एशियाई खेलों का कामयाब आयोजन हो गया था। भारत में रंगीन टेलीविजन का प्रसारण शुरू भर हुआ था। लेकिन टेलीविजन की घुसपैठ घर घर में नहीं हो पाया था। सेटेलाइट प्रसारण तो दूर की बात थी। नई दिल्ली से छपने वाले अखबार लोगों तक तीसरे दिन पहुंचते थे। इंटरनेट का जमाना नहीं था।
 

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क्रिकेट तब राजे रजवाड़ों के चुंगल से शहरी मिडिल क्लास तक भी ठीक से नहीं पहुंचा था। क्रिकेट की दुनिया में हमारी पहचान ऐसी थी कि विजडन के तत्कालीन संपादक ने लिख दिया था कि इस टीम को तो वर्ल्ड कप में शामिल भी नहीं होना चाहिए था।
 
ये दुनिया बस बदलने ही वाली थी।
 
हरियाणा के जाबांज क्रिकेटर कपिल देव की अगुवाई में युवा क्रिकेटरों की टीम ने लॉर्ड्स की दुनिया में वर्ल्ड कप का खिताब जीता और इस एक पल ने भारत की दुनिया को बदल दिया।
 
लॉर्ड्स की बालकोनी में भारतीय टीम को वर्ल्ड कप का खिताब उठाने की तस्वीर जब भारत के आम लोगों तक पहुंची तो युवाओं के मन में सबसे बड़ा सपना तो यही उभरा कि वे भी असंभव को संभव बनाने का दम रखते हैं।
 
यह मनोबल कई स्तरों पर जाहिर होने वाला था। मुंबई जैसे महानगर के सामने हरियाणे का छोरा सुपर स्टार बन सकता था। अंग्रेजी में नहीं बोल पाना कोई बड़ी समस्या नहीं है। ये सब बातें अपने आप युवाओं के मन में समाती गई।
 
कपिल देव हम सबके हीरो बनने वाले थे, वही जो रैपिडैक्स के सहारे अंग्रेजी बोलना सीखने वाले थे। लेकिन तब वे क्रिकेट के मैदान में जोरदार ऑलराउंडर की भूमिका बखूबी निभा रहे थे।
 
इस कामयाबी ने भारतीय क्रिकेट बोर्ड के तत्कालीन अध्यक्ष एनकेपी साल्वे को हौसला दिया कि वे भारत में वर्ल्ड कप क्रिकेट के आयोजन को लेकर आएं। उनके तब दो विश्वस्त सहयोगी हुआ करते थे- आईएस बिंद्रा और जगमोहन डालमिया, जो आगे चलकर भारतीय क्रिकेट के सर्वेसर्वा बने। डालमिया तो आज भी बोर्ड के मुखिया बने हुए हैं।
 
आज जो भारतीय क्रिकेट आपको नजर आता है, उसे बनाने में इन तीनों की भूमिका बेहद अहम रही। भारत के वर्ल्ड कप जीतने और क्रिकेट के बढ़ रहे बाज़ार को भांपते हुए 1987 के वर्ल्ड कप की मेजबानी भारत को मिल गई। भारत के साथ-साथ पाकिस्तान को ये मेजबानी दी गई थी।
 
इस दौरान भारतीय क्रिकेट टीम ने ऑस्ट्रेलिया में आयोजित सुपर सीरीज़ क्रिकेट टूर्नामेंट जीत लिया था। रवि शास्त्री की ऑडी की चर्चा घर घर तक पहुंच गई थी। अजहर के रूप में टीम इंडिया को वंडर ब्वाय मिल चुका था। राजीव गांधी के नेतृत्व में देश 21वीं सदी की ओर देख रहा था। ऐसे में वर्ल्ड कप भारत आया और इसकी स्पांसर बनी थी रिलायंस। तब रिलायंस का नाम भी घर घर नहीं पहुंचा था। इस वर्ल्ड कप के सेमीफ़ाइनल तक टीम इंडिया पहुंचने में कामयाब रही और इसका बाद रिलायंस घर घर का तक पहुंच गया। इस वर्ल्ड कप में नवजोत सिंह सिद्धू जैसा सिक्सर मास्टर भी हमें मिला। टीवी की पहुंच घर घर तक हो गई। टीवी के जरिए क्रिकेट सितारे घरों में आयकन के तौर पर पहुंच गए थे।
 
क्रिकेट के साथ साथ भारत क्रिकेट के बड़े बाज़ार के तौर पर तब्दील होता दिखा। हालांकि ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड में खेले गए 1992 के वर्ल्ड कप में टीम इंडिया का प्रदर्शन बेहद खराब रहा। लेकिन तब भारतीय क्रिकेट की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए सचिन तेंदुलकर जैसा सितारा आ चुका था। जो अपने दम पर अगले 24 साल तक भारतीय क्रिकेट को अपनी चमक से मंत्रमुग्ध रखा।
 
अजहर की कप्तानी में भारत की घरेलू मैदानों पर टेस्ट जीतने का सिलसिला शुरू हुआ और क्रिकेट छोटे शहरों की ओर मज़बूती से पहुंचने लगा। कल तक हजारों रुपये पाने वाले क्रिकेटर करोड़ों तक पहुंच रहे थे। इसके बाद 1996 में एक बार फिर भारतीय उपमहाद्वीप में वर्ल्ड कप की मेजबानी आई। भारत सेमीफ़ाइनल में श्रीलंका के हाथों शर्मनाक ढंग से हारा और श्रीलंका बाद में वर्ल्ड चैंपियन बनी।
 
1999 में टीम इंडिया वर्ल्ड कप में बहुत खास नहीं कर सकी। 2000 में फिक्सिंग के कलंक ने भारतीय क्रिकेट की साख का नुकसान पहुंचाया लेकिन 2003 में एक बार फिर टीम इंडिया फ़ाइनल तक पहुंचने में कामयाब रही। भारत के राहुल द्रविड़, सौरव गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण जैसे दिग्गज बल्लेबाज़ों का जलवा दुनिया भर में नजर आने लगा था।
 
इसके बाद 2007 में वर्ल्ड कप के पहले दौर से बाहर होने के बाद रांची के महेंद्र सिंह धोनी की अगुवाई में टीम इंडिया ने टी-20 वर्ल्ड कप का खिताब जीता। युवा टीम इंडिया में बरेली, कानपुर, राजकोट जैसे छोटी शहरों के खिलाड़ी बड़ी भूमिका में नजर आने लगे। ऐसी ही टीम ने 2011 में वर्ल्ड कप का खिताब 28 साल बाद जीतने का करिश्मा कर दिखाया। टेस्ट में वर्ल्ड नंबर एक रैंकिंग से लेकर चैंपियंस ट्राफी तक का खिताब भारत के नाम था। इसके बीच में 2008 में शुरू हुई इंडियन प्रीमियर लीग ने भारतीय युवाओ के सामने क्रिकेट को एक बेहतर भविष्य के तौर पर पेश कर दिया।
 
जाहिर है इन सबके आने के बाद क्रिकेट में ग्लैमर और सेलीब्रेटी तत्वों का समावेश हुआ। ललित मोदी के रोज के खुलासे से पता चलता है कि क्रिकेट ने राजनीति और ग्लैमरस दुनिया का मिलाकर एक ऐसा कॉकटेल बना जिसमें फिक्सिंग, सट्टेबाज़ी की दुनिया भी शामिल हो गई।
 
लेकिन भारत क्रिकेट की दुनिया की बड़ी ताकत और सबसे बड़े बाजार के तौर पर उभरकर सामने आया। यही सब नहीं होता अगर 25 जून, 1983 को भारतीय क्रिकेट टीम ने इतिहास नहीं रचा होता।

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