CBI vs CBI मामला : SC ने निरस्त किया छुट्टी पर भेजने का फैसला, लेकिन नीतिगत फैसले नहीं लेंगे आलोक वर्मा

छह दिसंबर को सुनवाई के बाद चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ ने फैसला सुरक्षित रखा था

खास बातें

  • SC ने रद्द किया छुट्टी पर भेजने का फैसला
  • नीतिगत फैसले नहीं लेंगे आलोक वर्मा
  • जस्टिस संजय किशन ने सुनाया फैसला
नई दिल्ली:

CBI vs CBI: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा (CBI Chief Alok Verma)की याचिका पर मंगलवार को अपना फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई (CBI) निदेशक आलोक वर्मा को जबरन छुट्टी पर भेजने का फैसला निरस्त कर दिया है. अब आलोक वर्मा सीबीआई ऑफिस जाएंगे. लेकिन कोर्ट ने साथ ही कहा है कि वर्मा नीतिगत फैसले नहीं लेंगे. तब तक आलोक वर्मा रोजाना के कामकाज में प्रशासनिक फैसले लेंगे. सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सेलेक्ट कमेटी के पास जाएगा. सीजेआई, प्रधानमंत्री और नेता विपक्ष की सेलेक्ट कमेटी एक हफ्ते में यह तय करेगी कि वर्मा को उनके पद से हटाया जाए या नहीं. सेलेक्ट कमेटी एक हफ्ते के भीतर बैठक करेगी. कोर्ट ने कहा कि संस्थान का मुखिया एक रोल मॉडल होना चाहिए. 

साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि सीवीसी एक्ट (DPSE एक्ट) में विधायिका द्वारा संशोधन की जरूरत है. कोर्ट ने कहा विधायिका को सीबीआई निदेशक के ऑफिस को सरंक्षण देना चाहिए. विधायिका को एजेंसी की स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए काम करना चाहिए.

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छह दिसंबर को सुनवाई के बाद चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ ने आलोक वर्मा और कॉमन कॉज की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा लिया था. सीजेआई रंजन गोगोई आज छुट्टी पर हैं, ऐसे में जस्टिस संजय किशन ने फैसला पढ़कर सुनाया है. 

मोदी सरकार ने कोर्ट में कहा- सीबीआई में बिल्लियों की तरह लड़ रहे थे आलोक वर्मा और अस्थाना

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सीपीएम के मोहम्मद सलीम ने कहा कहा कि यह मोदी सरकार के लिए कड़ा तमाचा. इस पर इस्तीफा देना चाहिए, राफेल मुद्दे को रोकने के लिए यह किया गया था. वहीं कांग्रेस के सुनील जाखड़ ने कहा कि पीएम मोदी के लिए यह बड़ा झटका है, भ्रष्टाचार के लिए खिलाफ लड़ने वालों की असलियत सामने आ गई है.

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पीठ ने पूछा कि जब जुलाई में ही पता चल गया था तो सरकार को चयन समिति के पास जाने में क्या दिक्कत थी?  ये ऐसा मामला नहीं है कि रातोंरात ऐसे हालात बन गए. चीफ जस्टिस ने कहा कि सरकार के कार्य संस्थान के हित में होने चाहिए.

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हालांकि चीफ जस्टिस ने यह भी कहा कि हमारी चिंता यह है कि क्या दो साल के कार्यकाल का नियम निदेशक पर अनुशासनात्मक कार्रवाई से भी ऊपर है? क्या दो साल उन्हें कोई छू नहीं सकता? सीवीसी की तरह सीबीआई निदेशक को सरंक्षण क्यों नहीं दिया गया? इस दौरान अगर निदेशक घूस लेते हुए पकड़े जाएं तो क्या वे एक पल भी निदेशक बने रह सकते हैं?

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दोनों अफसर बिल्लियों की तरह लड़ रहे थे जिससे सीबीआई की छवि नकारात्मक बन गई थी और संस्थान की अखंडता बचाने के लिए सरकार ने यह कदम उठाया. केंद्र ने अपने अधिकार क्षेत्र के दायरे में काम किया और इसके अलावा उनके पास कोई और चारा नहीं था.

आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना  के बीच लड़ाई काफी बढ़ गई थी और यह सार्वजनिक बहस का मुद्दा बन गया था. सरकार हैरान होकर देख रही थी कि आखिर दो शीर्ष अधिकारी कर क्या रहे हैं. केंद्र अगर ये कदम नहीं उठाता तो भगवान जाने दोनों अफसरों के बीच की लड़ाई कहां जाकर रुकती.

जांच एजेंसी के निदेशक और विशेष निदेशक के बीच विवाद इस प्रतिष्ठित संस्थान की निष्ठा और प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचा रहा था. दो शीर्ष अधिकारियों आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना का झगड़ा सार्वजनिक हुआ जिसने सीबीआई को हास्यास्पद बना दिया. 

सरकार का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि देश की इस प्रमुख जांच एजेंसी में जनता का भरोसा बहाल हो. अगर आज कोई पूछे कि सीबीआई डायरेक्टर कौन है, तो हम कहेंगे कि आलोक वर्मा. उनका पद, सरकारी बंगले, गाड़ी सभी सुविधाएं बरकरार हैं. केंद्र ने वर्मा को नियुक्त किया था. अगर उनका दो साल के कार्यकाल के बीच ट्रांसफर किया जाता तो चयन समिति की अनुमति की जरूरत पड़ती. लेकिन छुट्टी पर भेजा जाना ट्रांसफर के समान नहीं है. ऐसे में इसके लिए समिति की अनुमति की आवश्यकता नहीं है.

इस मामले को प्रधानमंत्री, चीफ जस्टिस और लोकसभा के नेता विपक्ष की समिति के पास भेजने की जरूरत नहीं थी क्योंकि चयन समिति का उम्मीदवार चुनने के बाद कोई नियंत्रण नहीं रहता. सिर्फ केंद्र सरकार ही नियुक्ति प्राधिकरण होने के कारण दखल दे सकती है.  नियम है कि केंद्र सरकार कमेटी की सिफारिश पर सीबीआई निदेशक की नियुक्ति करती है और चयन समिति तीन नाम भेजती है जिसमें से एक को चुना जाता है. चयन समिति और नियुक्ति समिति में अंतर है.

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CVC की ओर से SG तुषार मेहता ने कहा
दो वरिष्ठ सीबीआई अधिकारी एक-दूसरे के खिलाफ हो गए थे. मामलों की जांच करने के बजाए वे एक-दूसरे पर रेड कर रहे थे. एक-दूसरे के खिलाफ FIR दर्ज करा रहे थे. वे सबूतों से छेड़छाड़ कर सकते थे और ये हैरान करने वाली स्थिति थी. इस अप्रत्याशित और असाधारण स्थिति में सीवीसी ने तय किया कि आलोक वर्मा को एजेंसी के कामकाज से दूर रखा जाए जब तक कि जांच पूरी न हो जाए.

दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टेब्लिशमेंट एक्ट की धारा 4(1) के तहत CVC भ्रष्टाचार के आरोपों में सीबीआई को नियंत्रित करती है.

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आलोक वर्मा की ओर से पेश वरिष्ठ वकील फली नरीमन ने कहा
ये ट्रांसफर के समान ही है क्योंकि वर्मा के अधिकार अंतरिम निदेशक को दिए गए हैं. दो साल के कार्यकाल का मतलब ये नहीं कि निदेशक सिर्फ विजिटिंग कार्ड रखे लेकिन उनके पास शक्तियां न हों. दो साल का कार्यकाल नियम के मुताबिक है. कानून खुद कहता है कि सीबीआई निदेशक का इस तरह ट्रांसफर नहीं होगा. आलोक वर्मा को जिस समिति ने चुना था, उसकी मंजूरी जरूरी है.

आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजे जाने के आदेश का कोई आधार नहीं है. अगर कोई गलत हुआ, जिसकी जांच की जरूरत है तो कमेटी के पास जाना चाहिए था. कानून में निदेशक की शक्तियों को हल्का करने का प्रावधान नहीं है. अगर  सीबीआई निदेशक घूस लेते हुए रंगे हाथ पकड़े जाते तो फिर केंद्र को कोर्ट में या फिर समिति के सामने जाना होता. कानून में कहीं नहीं है कि इस तरह वनवास पर भेजा जाए. अगर इस दौरान आसाधारण हालात में सीबीआई निदेशक का ट्रांसफर किया जाना है तो कमेटी की अनुमति लेनी होगी.

कॉमन कॉज की ओर से पेश वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने कहा
सीवीसी को शिकायत अगस्त में मिली थी और कार्रवाई अक्टूबर में हुई. इसका मतलब ये है कि वर्मा को सरकार ने कुछ करने से रोकने के लिए हटाया. आलोक वर्मा को हटाने के लिए DSPE एक्ट को बायपास किया गया. ये आदेश अवैध है.

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मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा
सीवीसी सिर्फ भ्रष्टाचार के मामले देखता है जबकि सीबीआई अन्य केस भी देखता है. तो फिर सीबीआई के प्रशासन की जिम्मेदारी निदेशक की है. भ्रष्टाचार निवारण के मामलों में निगरानी की जिम्मेदारी सीवीसी की है तो बाकी मामलों में निदेशक का अधिकार है.

सीबीआई निदेशक जैसे ही ट्रांसफर या छुट्टी पर भेजा जाता है वैसे ही वह सारे अधिकारों व सरंक्षण से वंचित हो जाता है. सीवीसी को सीबीआई निदेशक को हटाने या उसके आफिस को सील करने या काम करने न देने का अधिकार नहीं है. सीबीआई निदेशक का मामला उस समिति को ही जाना चाहिए जिसने उसे चुना है.

अगर ऐसे फैसलों और प्रक्रिया को हम मंजूर करेंगे तो सीबीआई की स्वायत्तता का क्या मतलब रह जाता है? अगर समिति के अधिकार सरकार हथिया लेगी तो जो आज CBI निदेशक के साथ ही रहा है वही कल CVCऔर CEC के साथ भी हो सकता है.

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क्या है मामला
गौरतलब है कि छुट्टी पर भेजे जाने के आदेश के खिलाफ सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं. इस बीच केंद्र सरकार ने 23 अक्टूबर को सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा और स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना को छुट्टी पर भेज दिया. इसके साथ ही ज्वाइंट डायरेक्टर एम नागेश्वर राव को अंतरिम निदेशक की जिम्मेदारी सौंपी गई है. करीब 13 अधिकारियों का तबादला भी कर दिया गया. इससे पहले स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना के खिलाफ रिश्वतखोरी के आरोप में सीबीआई ने FIR दर्ज की है.