'नागरिकता संशोधन बिल' और नीतीश कुमार का सिद्धांतों से समझौता, यह 'यू टर्न' तो अद्भुत है

क्या बिहार के मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाने के लिए राजनीति में सारे सिद्धांतों से समझौता कर लिया है?

'नागरिकता संशोधन बिल' और नीतीश कुमार का सिद्धांतों से समझौता, यह 'यू टर्न' तो अद्भुत है

JDU ने लोकसभा में नागरिकता संशोधन बिल का समर्थन किया है

नई दिल्ली:

क्या बिहार के मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाने के लिए राजनीति में सारे सिद्धांतों से समझौता कर लिया है? या नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के सामने सत्ता में बने रहने के लिए घुटने टेक दिए हैं.  ये दोनों सवाल नगरिकता संशोधन बिल पर जनता दल यूनाइटेड के समर्थन के बाद सब कर रहे हैं. खुद उनके पार्टी के ‘निष्क्रिय' राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने एक ट्वीट कर नीतीश कुमार के ऊपर ये सवाल उठाया है. नीतीश कुमार ख़ुद मौन हैं. लोकसभा में उनकी पार्टी के नेता राजीव रंजन उर्फ़ ललन सिंह ने बिल का इस आधार पर समर्थन किया है. उन्होंने कहा, 'हम इस बिल का समर्थन करते हैं. इस बिल को अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक के आधार पर नहीं देखना चाहिए. अगर पाकिस्तान में सताए अल्पसंख्यकों को यहां नागरिकता मिलती है तो अच्छी बात है. 

फ़िलहाल वो चाहे ललन सिंह हों या प्रशांत किशोर सब जानते हैं कि समर्थन का फ़ैसला ख़ुद नीतीश कुमार का है और नीतीश कुमार जो हर दिन इस बिल से सम्बंधित ख़बरें अखबारो में पढ़ रहे थे उन्हें इसके हर बिंदु के बारीकियों के बारे में जानकारी थी. लेकिन इसके बावजूद अपने पुराने स्टैंड को बदल कर बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के साथ बातचीत के बाद इस बिल का समर्थन दिया. यहां आपको बता दें कि जेडीयू की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में नीतीश कुमार ने इस बिल का विरोध किया था.

फ़िलहाल वो बीजेपी के साथ राजनीति करेंगे और इसके अपनी ही नीतियों या राजनीतिक सिद्धांतों से समझौता भी करना पड़े तो उन्हें कोई परहेज़ नहीं होगा. उन्हें इस बात का अंदाज़ा है कि उनकी अपनी छवि एक कुर्सी के 'लालची नेता' के रूप में बनी है. नीतीश कुमार अब इन सभी चीज़ों की परवाह नहीं करते. उनका आकलन है कि मीडिया भले ही उनके बारे में जो भी लिखे लेकिन बिहार की राजनीति की ज़मीनी सच्चाई यही है कि बीजेपी और राम विलास पासवान के साथ उनका गठबंधन जारी रहेगा. और संसद में बीजेपी के समर्थन में उनको इतना लाभ जरूर मिल सकता है कि जेडीयू को बीजेपी विधानसभा चुनाव में कुछ ज्यादा सीटें दे.  

वहीं नीतीश कुमार की राजनीति को सालों से देख रहे लोगों का कहना है कि वह इसी मुद्दे पर नहीं बल्कि अब तो हर मुद्दे पर बीजेपी ख़ासकर नरेंद्र मोदी और अमित शाह के साथ ताल से ताल मिलाकर चलते हैं. भले उन्होंने धारा 370 और ट्रिपल तलाक़ के मुद्दे पर सैद्धांतिक विरोध किया हो लेकिन जनता का रुख़ भांपते ही इन दोनों मुद्दों पर भी केंद्र सरकार को समर्थन दिया. 

इससे पहले भी लोकसभा चुनाव के दौरान नीतीश कुमार ने अपने पार्टी के घोषणा पत्र तक जारी नहीं किया क्योंकि उन्हें मालूम था कि इन मुद्दों पर जो उनका स्टैंड होगा वो BJP से परस्पर विरोधी होगा. इसलिए मीडिया में कोई अनायास भी बात न हो नीतीश कुमार ने घोषणा पत्र जारी करने की औपचारिकता को ही ख़त्म कर दिया. 

पूरे चुनाव के दौरान नीतीश कुमार मीडिया से बचते रहे हैं लोगों का कहना है ये सब ऐसे क़दम हैं जिससे साफ़ था कि नीतीश कुमार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह से वैचारिक मुद्दों पर ज़्यादा तूल नहीं देना चाहते हैं क्योंकि उन्हें अपना भविष्य ख़ासकर राजनीतिक भविष्य इन दोनों नेताओं के पीछे रख कर ही ज़्यादा सुरक्षित नज़र आता है. जिस भ्रष्टाचार के मुद्दे पर नीतीश कुमार ने आरजेडी के साथ अपना गठबंधन तोड़ा उसी मुद्दे पर जो उनके अपने मित्र और सारी घोटालों को उजागर करने वाले सरयू राय का टिकट काटा गया.

एक तरफ़ नीतीश कुमार ने सरयू राय की उम्मीदवारी का समर्थन तो किया लेकिन बीजेपी ने जब दूसरे दलों से बुलाकर 4 सीटें वो भी भ्रष्टाचार के मामलों में आरोप झेल रहे लोगों का कहना है कि नीतीश कुमार की अपने  उम्मीदवारों को लड़ाने की नहीं थी लेकिन BJP के केंद्रीय नेतृत्व के दबाव में उनकी पार्टी के सिंबल पर वोट कटवा लोगों को चुनाव में खड़ा किया.और ये भी नीतीश कुमार ने अपनी कुर्सी प्रेम में ही किया है इससे पहले भी गुजरात के चुनाव में भी ये बातें जग ज़ाहिर हुईं. अधिकांश जनता दल यूनाइटेड के उम्मीदवार BJP के इशारे पर खड़े किए गए हैं और उनका समर्थन जनता दल यूनाइटेड के नेता ही नहीं बल्कि बीजेपी के नेता भी दे रहे हैं.

बहरहाल ये नये नीतीश कुमार है जो भ्रष्टाचार और संप्रदायिकता से कभी समझौता करने का दावा करते है लेकिन जिन्होंने अपने ज़िद में शराबबंदी कर पूरे राज्य में एक समानांतर अर्थव्यवस्था खरी कर दी. अपने ख़ज़ाने का पैसा उन्होंने अपराधियों, अपने भ्रष्ट पुलिस वालों और लोगों को लूटने की आज़ादी दी और शराबबंदी के नाम पर मानव शृंखला में करोड़ रु ख़र्च कर देंगे लेकिन शराब पीने वालों को पकड़ने के लिए ना ख़ून की जाँच के लिए लैब ना ब्रेथ ऐनलायज़र जैसे ज़रूरी उपकरण का उपाय करेंगे. नीतीश कुमार अब अपराधियों को सज़ा नहीं दिलाते बल्कि अपराधियों के लिए रोज़गार का इंतज़ाम करते हैं. वहीं उनके मंत्रिमंडल में अगर आप ऊंगली पर कुछ नामों को छोड़ देंगे तो अधिकांश बिना पैसे के काम नहीं करते. जिसका एक उदाहरण राजधानी पटना का जल जमाव था. 

सांप्रदायिकता का ये हाल है कि लोगों को उनके मजहब के आधार पर ज़िंदा जला दिया जाता है लेकिन नीतीश उस घटना के अभियुक्तों को सज़ा दिलाने के जगह दबाने में अपनी पूरी ऊर्जा लगा देते हैं. अधिकांश दंगे के मामले में आरोपी उनके सहयोगी बीजेपी के नेता निकले लेकिन नीतीश जब सज़ा दिलाने की बारी आयी तो मौन हो गये. 

इसलिए अब हर मुद्दे पर नीतीश कुमार मीडिया के सवाल से भागते हैं जो उनके अपने स्वाभाव के बिलकुल विपरीत है. नीतीश के लिए गांधी , लोहिया और जेपी केवल बोलने के लिए हैं उनके नीति सिद्धांतों को उन्होंने फ़िलहाल कुर्सी बचाने के लिए तिलांजलि दे दी है. ये नये नीतीश कुमार हैं जो फ़िलहाल मोदी और शाह के इशारे पर अपना निर्णय लेते हैं उनके अपने कट्टर समर्थक भी मानते हैं कि ये सत्ता में बने रहने के लिए समझौता नहीं सरेंडर कर रहे हैं  और हर वो काम करेंगे जिसे वो कल तक ग़लत मानते थे और नीति सिद्धांतों के ख़िलाफ़ बोलते थे. इसलिए अब हर मुद्दे पर नरेंद्र मोदी और अमित शाह नीतीश पर हावी रहेंगे. 
 

मनीष कुमार NDTV इंडिया में एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं...

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