प्राइम टाइम इंट्रो : बीएमसी चुनावों में जनता की क्या है मांग?

प्राइम टाइम इंट्रो : बीएमसी चुनावों में जनता की क्या है मांग?

फाइल फोटो

30,000 करोड़ से अधिक के बजट वाली बृह्न मुंबई महानगरपालिका यानी बीएमसी के चुनाव हो रहे हैं. पौने तीन करोड़ की आबादी 227 पार्षदों को चुनने के लिए 21 फरवरी को मतदान करने जा रही है. मुंबई में वार्डों का नामकरण संख्या के हिसाब से नहीं होता है. अंग्रेज़ी अल्फाबेट से होता है. ए से लेकर टी नाम वाले वार्ड होते हैं यहां. क्‍यू, आई, जे, ओ नाम के वार्ड क्यों नहीं हैं, ये मैं नहीं जानता हूं. जबकि ए से टी के बीच ये चारों आते हैं. नगरपालिका चुनाव में मतदान प्रतिशत देखेंगे तो मुंबई के मतदाता हमेशा ही निराश करते हैं. अपने सपनों को लेकर मुंबई आने वाले मुंबई के लिए कोई सपना नहीं देखते हैं.

2007 के नगरपालिका चुनाव में 46 प्रतिशत ही मतदान हुआ जो 2012 में घटकर 45 प्रतिशत हो गया. वोट देने का उत्साह भले न नज़र आता हो मगर चुनाव लड़ने वाले खूब हैं. 13 दलों के 2,275 उम्मीदवार पार्षदी का चुनाव लड़ रहे हैं. पब्लिक पार्क, स्कूल, पानी, फुटपाथ, पार्किंग, स्ट्रीट लाइट न जाने अनगित मसले हैं जिसे लेकर शहर के लोग नगरपालिका चुनाव में शिरकत कर सकते थे. पार्षदों से पूछ सकते थे. पार्टियों से पूछ सकते थे कि आखिर पार्षद के स्तर पर परिवारवाद क्यों फैला है. इस चुनाव में आप नई प्रतिभाओं को आगे क्यों नहीं करते हैं. ज़्यादातर पार्षद करोड़पति का दर्जा प्राप्त कर चुके हैं. एक उम्मीदवार की संपत्ति तो 600 करोड़ से अधिक की है. नगरपालिका के चुनाव को लेकर हमारी आपकी बेरूखी का ही ये सब नतीजा है. जबकि स्थानीय अख़बार लगातार शहर की समस्या और नगरपालिका के चुनाव की ख़बरों से भरे रहते हैं. इसके बाद भी मुंबई की सक्रियता मतदान प्रतिशत से नज़र नहीं आती है.

इस बार के आर्थिक सर्वे में स्थानीय निकायों के राजस्व और काम के प्रदर्शन पर एक अध्याय है. आर्थिक सर्वे में इस चैप्टर का होना बता रहा है कि शहरीकरण की चुनौतियां भयावह होती जा रही हैं. इनके काम करने के तरीके से लेकर टैक्स वसूली के सिस्टम सबमें दिलचस्पी लेनी होती है. आर्थिक सर्वे में जनआग्रह नाम की एक संस्था का ज़िक्र है जिसने 21 शहरों के अध्ययन के आधार पर बताया है कि इन निकायों के पास कानून की कमी नहीं है. बल्कि जहां कानून ज़्यादा है वहां वसूली कम है और जहां कम हैं वहां वसूली ज़्यादा है. जैसे कानपुर और देहरादून जैसे शहरों के पास टैक्स वसूली के कानूनी अधिकार मुंबई से कहीं बेहतर हैं मगर वहां प्रोपर्टी टैक्स की वसूली का रिकॉर्ड बहुत ख़राब है. मुंबई और पुणे के पास कम अधिकार हैं फिर भी राजस्व वसूली बहुत बेहतर है. भारत में 8000 शहर और नगर हैं. ग्लोबल सिटी की रैकिंग में मुंबई का स्थान 50वें नंबर पर आता है और दिल्ली का 47वें नंबर पर. भारत का नंबर वन शहर दुनिया के बड़े शहरों में 50वें नंबर पर आता है. तब वो लाखों लोगों के सपने पूरे करता है, सोचिये अगर मुंबई पहले दस नंबर में होती तो कितना कुछ दे सकती थी मगर इसके लिए हमें भी मुंबई को कुछ देना होगा.

आर्थिक सर्वे में लिखा है कि शहरी विकास मंत्रालय की एक हाईलेवल कमेटी ने हिसाब लगाया है कि अगले 20 साल में शहरी ढांचे को बेहतर करने के लिए 39 लाख करोड़ की ज़रूरत होगी. यह हिसाब 2009-10 की कीमतों के आधार पर लगाया गया है. पानी, बिजली, सड़क और परिवहन पर इतने खर्च के बाद इनके रखरखाव और संचालन के लिए अलग से 20 लाख करोड़ की और ज़रूरत होगी. 14वें वित्त आयोग ने देश के तमाम नगरपालिकाओं और निगमों को 2015 से 20 के लिए 87,000 करोड़ देने का प्रावधान किया है. ज़रूरत के हिसाब से यह राशि कुछ भी नहीं है मगर पिछली सरकारों से तुलना करें तो 227 प्रतिशत अधिक दी गई है. इसका बड़ा हिस्सा स्थानीय निकायों को अपने स्तर पर ही जुटाना होगा. आर्थिक सर्वे से पता चलता है कि कानपुर और लखनऊ में 50 फीसदी राजस्व संपत्ति कर से आता है. इस मामले में कोलकाता नगर निगम कानपुर और लखनऊ से पीछे है. भोपाल और रांची के राजस्व में संपत्ति कर की भागीदारी 15 फीसदी से भी कम है. जयपुर और बेंगलुरु में कर योग्य संपत्ति का 5 से 20 फीसदी हिस्सा ही टैक्स देता है. 36 शहर 4400 करोड़ का संपत्ति कर वसूलते हैं जिसे अगर वो चाहें तो बढ़ाकर 22,000 करोड़ किया जा सकता है.

इसका मतलब यह हुआ कि अगर नगरपालिकाएं या निगम पेशेवर तरीके से चलें और भ्रष्टाचार का स्कोप कम हो तो उनके पास आम नागरिकों की सुविधा के लिए अधिक पैसे होंगे. आर्थिक सर्वे में बताया गया है जिन नगरपालिकाओं ने ज्यादा राजस्व वसूले हैं उन्होंने बेहतर सुविधाएं भी दी हैं. अब एक और आंकड़ा देख लीजिए. मुंबई में एक लाख की आबादी पर 895 कर्मचारी हैं. दिल्ली में एक लाख की आबादी पर 1260 कर्मचारी हैं. न्यूयॉर्क में एक लाख की आबादी पर 5,338 कर्मचारी हैं. लंदन में एक लाख की आबादी पर 2,961 कर्मचारी हैं. इससे यह पता चलता है कि जब तक राजस्व नहीं होगा, कर्मचारी नहीं होंगे, नागरिकों को बुनियादी सुविधाएं नहीं मिलेंगी और उनका रखरखाव ठीक नहीं होगा. ज्यादातर नगरपालिकाओं के कर्मचारियों की स्थिति ठीक नहीं है. समय से वेतन नहीं मिलता है और ठेके पर काम करने वालों को बिना हड़ताल के वो भी नहीं मिलता है. आर्थिक सर्वे में इस पहलू को क्यों नहीं प्रमुखता दी गई है, समझ नहीं आया. तमाम अखबारों में मुंबई की समस्याओं पर छपी ख़बरों से आपके लिए कुछ सूची बनाई है. मिड डे अख़बार ने लिखा है कि मुंबई से 1200 ऑटो टैक्सी स्टैंड ग़ायब हो गए हैं. अतिक्रमण कर लिया गया है. 300 स्टैंड ही बचे हैं जहां पार्क करने के लिए आए दिन झगड़े होते रहते हैं. मुंबई में 1900 किमी ही सड़कें हैं मगर 28 लाख गाड़ियों को पार्क करने के लिए 3,300 किमी सड़क जितनी लंबी जगह चाहिए.

इसका समाधान सार्वजनिक परिवहन से लेकर अधिक पार्किंग टैक्स के रूप में बताया जाता रहता है. मिड डे के शशांक राव की रिपोर्ट में 56,000 पार्किंग स्पॉट बनाने के सुझाव दिये गए हैं. फुटपाथ गायब हैं बल्कि वो तो रोज़गार सृजन का माध्यम बने हुए हैं. नागरिकों का कहना है कि चुने हुए प्रतिनिधि इन सब बातों पर ध्यान नहीं देते, मगर मतदान प्रतिशत देखकर नहीं लगता कि नागरिक भी प्रतिनिधि को चुनने में दिलचस्पी लेते हैं. कचरा निस्तारण एक बड़ी चुनौती है. हर खुली जगह पर कचरा फेंका जा रहा है. जगहें ग़ायब होती जा रही हैं. मुंबई मिरर की तन्वी देशपांडे ने एक अच्छी रिपोर्ट बनाई है कि हमें पार्षद क्यों चाहिए. तन्वी देशपांडे ने सुबह छह बजे से लेकर रात के नौ बजे के बीच आपकी व्यस्तता के हिसाब से यह सूची बनाई है कि कब कब आपको पार्षद की ज़रूरत पड़ेगी और कैसे एक बेहतर पार्षद आपके घर से दफ्तर जाने के माहौल को बेहतर कर सकता है. मैं उसका कुछ हिस्सा यहां रख रहा हूं. पानी सप्लाई का जिम्मा बीएमसी का है. नलके में पानी नहीं आया तो आप किसे फोन करेंगे. ज़ाहिर है पार्षद को ही फोन करेंगे. आपके इलाके का पार्षद ही बीएमसी के स्थानीय इंजीनियर को फोन करेगा कि पानी क्यों नहीं आ रहा है. 50 से 60 प्रतिशत आबादी स्लम में रहती है. लोकल पकड़न के लिए आप बेस्ट की बस पकड़ने जाते हैं मगर बस काफी देर से आती है और भरी हुई भी होती है. स्थानीय पार्षद ही बीएमसी में दबाव बनाएगा कि आपके इलाके में बस की ज़रूरत है. 40 लाख लोग बेस्ट की बसों से सफ़र करते हैं. फुटपाथ पर अतिक्रमण है तो तस्वीर लेकर आप पार्षद को भेज सकते हैं कि सुधार कीजिए. अगर आपको लगता है कि किसी इमारत में फायर सेफ्टी के नियमों का पालन नहीं हुआ है तो आपके कहने पर पार्षद उस इमारत की जांच करवा सकता है. आपके इलाके की सड़क ख़राब है तो पार्षद की ज़िम्मेदारी बनती है कि अच्छी सड़क की व्यवस्था करे. वही नगरपालिका की कमेटी के सामने अर्जी देगा और प्रस्ताव पास कराने का दबाव बनाएगा.

अख़बार का यह प्रयास अच्छा लगा. मुमकिन है बहुत से पढ़े लिखे लोगों को पता ही न हो कि वे किस लिए पार्षद को वोट करें. मगर आए दिन परेशान मुंबई से वे भी परेशान रहते होंगे तो फिर वोट क्यों नहीं देते हैं.


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