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This Article is From Feb 14, 2019

सीएजी की रिपोर्ट से सरकार को क्या क्लीन चिट?

आज गजब हो गया. राफेल पर सीएजी की रिपोर्ट तो आई, मगर सार्वजनिक होकर भी गोपनीय नज़र आई. अभी तक दि वायर और हिन्दी में गोपनीय रिपोर्ट सार्वजनिक हो रही थी मगर आज सार्वजनिक होकर भी रिपोर्ट के कई अंश गोपनीय नज़र आए.

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सीएजी की रिपोर्ट से सरकार को क्या क्लीन चिट?
प्रतीकात्मक फोटो.

आज गजब हो गया. राफेल पर सीएजी की रिपोर्ट तो आई, मगर सार्वजनिक होकर भी गोपनीय नज़र आई. अभी तक दि वायर और हिन्दी में गोपनीय रिपोर्ट सार्वजनिक हो रही थी मगर आज सार्वजनिक होकर भी रिपोर्ट के कई अंश गोपनीय नज़र आए. सीएजी ने यूरो और रुपये के आगे संख्या की जगह अंग्रेज़ी वर्णमाला के वर्म लिखे हैं. इस तरह रिपोर्ट पढ़ते हुए आपको ये तो दिखेगा कि मिलियन और बिलियन यूरो लिखा है मगर मिलियन के आगे जो कोड इस्तेमाल किए हैं उसे पढ़ने के लिए जग्गा जासूस को हायर करना पड़ेगा. आप पेज 120 और 121 पर जाकर देखिए. राफेल विमान कितने में खरीदा गया, कितने का प्रस्ताव था इनकी जगह जो संकेत चिन्ह लिखे गए हैं, उन्हें पढ़ने के लिए आईआईटी में एडमिशन लेकर फेल होना ज़रूरी है.

जब पैसा ही नहीं बताना था तो कोई कैसे जान पाएगा कि सौदे में क्या हुआ क्या नहीं. क्या ये पहली बार हुआ है जब सीएजी ने वायुसेना की खरीद पर ऑडिट करते हुए पैसे की मात्रा नहीं बताई है, हमारे सहयोगी राजीव रंजन कहते हैं कि मार्च 2015 में सीएजी ने जब रूस से खरीदे जाने वाले विमान मिग-219 की ऑडिट की थी तब हर पैराग्राफ में पैसा लिखा था. अमरेकी डॉलर में भी लिखा था कि 740.35 मिलियन डॉलर और भारतीय रुपये में भी लिखा था 3,568 करोड़. इसी तरह मार्च 2016 में समाप्त हुए वर्ष की ऑडिट रिपोर्ट में सीएजी ने साफ-साफ लिखा है कि 24 बी ए ई हॉक एजेटी विमान की खरीद 1982 करोड़ से लेकर 1777 करोड़ लिखा है. बेशक अलग-अलग संदर्भों में दाम लिखा हुआ है, मगर सीएजी ही बताए जब मिग और हाक विमान की खरीद की ऑडिट में आप कीमत खुल कर बताते हैं तो राफेल विमान की ऑडिट में आपने कीमत क्यों नहीं बताई?

आप खुद भी सीएजी की रिपोर्ट पढ़ें. पेज नंबर 120 से पढ़ना शुरू करें. 120 से 126 तक बताया जाता है कि 15 साल तक खरीद की प्रक्रिया क्यों रद्द हुई. इसकी समीक्षा में सीएजी ने लिखा है कि हिन्दुस्तान एयरोनिटिक्स लिमिटेड को अपने यहां विमान बनाने में कितना मानव घंटा लगेगा. इसकी गिनती को लेकर विवाद हो गया. दूसरा दास्सो एविएशन ने इस बात से इनकार कर दिया कि वह भारत में विमान बनाने का लाइसेंस तो देगा मगर 108 विमानों की गारंटी नहीं लेगा. यही नहीं सीएजी ने लिखा है कि दास्सों कंपनी से 7 श्रेणियों में कीमतों का ब्योरा मांगा गया था. उसके लिए एक फॉर्मेट बनाया गया था. राफेल ने वायुसेना के तय किए फॉर्मेट के हिसाब से कीमतों का ब्योरा देने से मना कर दिया. सीएजी की रिपोर्ट में इस बात का ज़िक्र नहीं है कि जब राफेल ने तय फॉर्मेट के हिसाब से कीमतों का ब्यौरा नहीं दिया तो उससे बातचीत क्यों होती रही.

मार्च 2015 में राफेल विमान के लिए बनी कमेटी ने अपना रिक्वेस्ट ऑफ प्रपोज़ल वापस ले लिया और 126 राफेल फाइटर विमान के लिए 15 साल से चली आ रही बातचीत रद्द कर दी. उसके चंद दिनों बाद 10 अप्रैल 2015 को पेरिस में एलान होता है फ्रांस और भारत के बीच समझौता होगा. अब यहां सीएजी की रिपोर्ट में यह नहीं बताया जाता है कि कोई महीने भर से भी कम समय में वो कौन सी प्रक्रिया थी, किन प्रक्रिया के तहत पेरिस में एलान से पहले होमवर्क होता है. उसमें कौन सी कमेटी शामिल है. क्या दो सरकारों के बीच बिना होमवर्क या किसी प्रक्रिया के हो सकता है, हम इस सवाल पर बात करेंगे. सीएजी की रिपोर्ट में सिर्फ इतना लिखा है कि अलग से प्रक्रिया चल रही थी कि दास्सों एविएशन से बेहतर शर्तों पर खरीद होगी. वो प्रक्रिया क्या थी, इसका ज़िक्र नहीं मिला. पेरिस में डील के एलान के बाद 12 मई 2015 को इंडियन निगोशिएटिंग टीम का गठन होता है. इसी टीम के तीन सदस्यों के एतराज़ की रिपोर्ट हिन्दू में आई थी. सीएजी की रिपोर्ट में इस टीम के ऐतराज़ का कोई ज़िक्र नहीं है.

मगर जो पेरिस में एलान हुआ था, उसमें यह बात थी कि लागत कम करेंगे और मेक इन इंडिया पर ज़ोर देंगे. अगस्त 2016 में दो सरकारों के बीच समझौते को मंज़ूरी दी जाती है. हिन्दू की रिपोर्ट याद कीजिए. उसमें यही था कि अगस्त में इंटेग्रिटी क्लॉज का ज़िक्र था. वो शर्त थी कि भ्रष्टाचार होने पर कार्रवाई होगी, लेकिन सितंबर में रक्षा मंत्रालय की बैठक में वो शर्त हटा दी जाती है. यह बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि 126 वाली डील की समीक्षा में सीएजी ने लिखा है कि 2012 में तबके रक्षा मंत्री ने स्वतंत्र एजेंसी से जांच के आदेश दिए थे कि डील की शर्तों में इंटेग्रिटी क्लॉज यानी ईमानदारी की शर्तों का पालन किया गया है या नहीं. तो इस बार ये शर्तों क्यों हटाई गईं, सीएजी ने क्या कुछ कहा या कहा ही नहीं, हम अजय शुक्ला से पूछेंगे.

अगर मीडिया में उठे सवालों के जवाब सीएजी की रिपोर्ट से भी नहीं मिलते हैं तो फिर ये रिपोर्ट किस बारे में थी. रुपये के आगे ए बी सी डी या अ ब स म गा रे सा लिखने के लिए. सीएजी ने लिखा है कि 2007 की कीमतों और 2015 की कीमतों में तुलना करना जटिल है. 2007 में भारत में बनाने के लाइसेंस के साथ 108 जहाज़ मिलने थे. 2015 में फ्रांस में ही बने 36 विमान उड़ान भरने की अवस्था में मिलने थे. 2007 में 18 राफेल विमान तैयार अवस्था में फ्रांस से बनकर आना था. इसलिए सिर्फ 18 विमानों के पैमाने से तुलना हो सकती है.

मैं सब सीएजी की रिपोर्ट से बता रहा हूं. समझने में गलती नहीं हुई है तो यह सब बिल्कुल ठीक है. इस बात का ज़िक्र है कि जुलाई 2014 में यूरोफाइटर 20 प्रतिशत से कम पर विमान देने की पेशकश करता है. मगर रक्षा मंत्रालय का जवाब सीएजी को यह दिया जाता है कि उसमें कमियां थी और बिन मांगे प्रस्ताव था, इसलिए नामंज़ूर कर दिया. सीएजी यह नहीं बताती है कि राफेल के नए सौदे के लिए प्रस्ताव किसकी तरफ से आया था. क्योंकि पुरानी डील तो रद्द हो गई थी. 

क्या राफेल ने कोई नया प्रस्ताव दिया था. उसने पहल की थी या भारत ने पहल की थी. अब समझौता 36 विमानों का होता है. सीएजी ने लिखा है कि उसे रक्षा मंत्रालय की तरफ से ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं मिला कि 126 से 36 खरीदने पर जो कमी रहेगी वो कैसे पूरी की जाएगी. आगे यह लिखा मिलता है कि सिंगल इंजन वाला 83 जहाज़ खरीदा जाने वाला है. अब आते हैं बैंक गारंटी की बात पर.

बैंक गारंटी या संप्रभु गारंटी की बात थी मगर फ्रांस ने इंकार कर दिया. उसने कहा कि हम लेटर ऑफ कंफर्ट देंगे. सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक दास्सों को 15 प्रतिशत एडवांस पर बैंक गारंटी देनी थी. बैंक गारंटी बनाए रखने के लिए विक्रेता को मिलियन यूरो का बैंक चार्ज देना पड़ता. फ्रांस और भारत के बीच बैंक के चार्ज को लेकर अलग अलग मत थे. 2007 के करार में तो परफार्मेंस गारंटी और वारंटी का भी जिक्र था जो कुल कीमत का 10 प्रतिशत दास्सों को देना था. यानी बैंक गारंटी की शर्त हटा देने से दास्सों को मिलियन यूरो का फायदा हुआ.

दास्सों को जो ये ए ए बी 3 मिलियन यूरो बचा उसका लाभ भारत को होना था, लेकिन ऑडिट से पता चलता है कि इसका लाभ दास्सों को हुआ. आखिर भारत सरकार इस तरह का समझौता क्यों कर रही थी जब फ्रांस की सरकार उसकी प्रमुख मांगों को ठुकरा दे रही थी. सितंबर 2016 में सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी ने फैसला किया कि बैंक गारंटी की तरह बाकी संबंध गारंटिया या आश्वासन साथ हों. एक एस्क्रो अकाउंट बनाने की भी बात थी, मगर फ्रांस ने मना कर दिया. कहा जा रहा है कि यह समझौता दो सरकारों के बीच है मगर सीएजी की रिपोर्ट में लिखा है कि किसी विवाद की स्थिति में सीधे विक्रेता के साथ भारत सरकार का आर्बिट्रेशन होगा. अगर फैसला भारत के हक में जाता है तो दास्सों पैसा नहीं देता है तब भारत सरकार पहले सारे कानूनी विकल्प तलाशेगी. इसके बाद ही फ्रांस सरकार विक्रेता की ओर से भुगतान करेगी. और अब वित्त मंत्री अरुण जेटली की प्रतिक्रिया और फिर राहुल गांधी की प्रतिक्रिया. बहुतों ने बहुत कुछ कहा है, बेहतर है कि आप सीएजी की रिपोर्ट खुद भी पढ़ें. हिन्दी अखबारों के भरोसे न रहें.

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