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This Article is From Mar 28, 2019

वैज्ञानिक कथाकार नरेंद्र मोदी का राष्ट्र को संबोधन और चुनाव आयोग का समापन

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    March 28, 2019 12:26 IST
    • Published On March 28, 2019 12:26 IST
    • Last Updated On March 28, 2019 12:26 IST

अगस्त 2008 की एक सुबह हम चेन्नई से श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर पहुंचे थे. दुनिया भर से आए दर्जनो अंतरिक्ष-पत्रकारों के बीच मैं गांव गली कवर करने वाला भी पहुंच गया था. भारत अपना पहला मून मिशन चंद्रयान का प्रक्षेपण करने वाला था. वहां दुनिया भर से आए ऐसे पत्रकार थे जो कई वर्षों से अंतरिक्ष प्रक्षेपण कवर कर रहे थे. यही उनका कार्यक्षेत्र भी था. वे भारत की कामयाबी को शक और हैरत से देख रहे थे. भारत की तरफ से दो चार ही अनुभवी पत्रकार थे. बाकी फ़ोटो खींच रहे थे और वीडियो बना रहे थे.

बहरहाल बारिश की बूंदें कुछ सेकेंड के लिए रूकी और उतनी ही देर में चंद्रयान अपने लक्ष्य की तरफ निकल गया. वह क्षण देखना और दर्शकों को दिखाना दोनों ही गर्व का था. उसके बाद हम सभी छत से उतर कर एक बड़े से सभागार में लाए गए, जहां चंद्रयान प्रोजेक्ट से जुड़े वैज्ञानिकों ने हम सबको बताया. उस समय इसरो के प्रमुख जी माधवन थे. सैंकड़ों कैमरे के सामने देश के वैज्ञानिक देश से बात कर रहे थे. उसके बाद के कुछ दिनों तक वही वैज्ञानिक कई न्यूज़ चैनलों में जाकर अपनी कामयाबी के बारे में बता रहे थे.

2008 की कामयाबी मामूली नहीं थी. तब भी भारत में एक प्रधानमंत्री थे जिनका नाम मनमोहन सिंह था. उन्होंने बधाई दी और बाकी वैज्ञानिकों पर छोड़ दिया कि वे देश से संवाद करें. सैंकड़ों कैमरों के सामने इसरो के वैज्ञानिक थे. मनमोहन सिंह और उनसे पहले के किसी प्रधानमंत्री ने इसरो की कामयाबी को अपने चुनावी पोस्टर में इस्तमाल नहीं किया. बुधवार को मिशन शक्ति के सफल होते ही व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी में मिसाइल की फ़ोटो के साथ नरेंद्र मोदी के पोस्टर बनकर चलने लगे थे. 

यही नहीं 27 मार्च को जब भारत ने ए-सैट मिसाइल क्षमता का परीक्षण किया तो कैमरों के सामने से सारे वैज्ञानिक ग़ायब कर दिए गए. सिर्फ और सिर्फ भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सामने थे. इस कामयाबी की एक ही तस्वीर जनता के बीच पहुंची है. राष्ट्र के नाम संबोधन वाली नरेंद्र मोदी की तस्वीर. उनके सहयोगी इसे फ़ैसला लेने वाली सरकार की कामयाबी बताते रहे. प्रक्षेपण और परीक्षण के समय जश्न मनाते वैज्ञानिकों की तस्वीरें भी नज़र नहीं आईं.

NDTV के आर्काइव में - 19 अप्रैल 2012 का एक वीडियो फ़ुटेज है. उस समय भारत ने लो-ऑरबिट में उपग्रह को मारने वाली मिसाइल अग्नि-V का सफल परीक्षण किया था. वीडियो में तब के DRDO के निदेशक जश्न मनाते दिख रहे हैं. 27मार्च 2019 को भी DRDO के निदेशक पद पर डॉ. जी सतीश रेड्डी विराजमान हैं मगर वे मीडिया से ग़ायब थे. उनकी टीम ग़ायब थी. उनकी जगह DRDO से रिटायर और इस समय नीति आयोग के सदस्य बन चुके विजय सारस्वत मीडिया में इसके बारे में ज्ञान दे रहे थे. मौजूदा चेयरमैन और वैज्ञानिक देश के सामने से ग़ायब रहे. एक रिटायर किया हुआ चेयरमैन ज्ञान दे रहा था ताकि वह इसी बहाने यूपीए सरकार पर टिप्पणी कर सके कि उसने मिशन शक्ति की अनुमति नहीं दी. बाद में इन्हीं के बयान के सहारे अरुण जेटली बीजेपी मुख्यालय में कांग्रेस पर हमला कर रहे थे. मौजूदा चेयरमैन यह बात नहीं कह सकते थे क्योंकि चुनाव के कारण आचार संहिता लागू है.

जबकि इसी वी के सारस्वत ने 10 फ़रवरी 2010 को कहा था कि भारत के पास उपग्रह को मार गिराने वाली मिसाइल क्षमता है लेकिन वह असली उपग्रह को मार कर अपनी क्षमता का प्रदर्शन नहीं करेगा. भारत इसकी ज़रूरत महसूस नहीं करता क्योंकि इससे अंतरिक्ष में कचरा पैदा होता है. इन कचरों से अंतरिक्ष में उपग्रहों के सिस्टम को नुक़सान पहुंचता है. उस समय DRDO चीफ़ रहते हुए वी के सारस्वत ने जो कहा मान लिया गया. आज वही नीति आयोग के सदस्य बनकर सारस्वत यूपीए सरकार को निशाना बना रहे हैं. आप इनके बयान को इंटरनेट में सर्च कर सकते हैं. नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार की तरह वी के सारस्वत ने भी आचार संहिता का उल्लंघन किया है.

ज़ाहिर है यह राजनीति है. इसरो और रक्षा अनुसंधान का इस्तमाल नरेंद्र मोदी अपने राजनीतिक हित के लिए कर रहे हैं. उनका राष्ट्र के नाम संबोधन करना और कुछ नहीं बल्कि मतदाताओं को प्रभावित करना था. वे पुलवामा के बाद ऐसा कुछ चाहते थे जिससे पांच साल की नाकामी पर चर्चा और सवाल ग़ायब हो जाएं. जो संवाददाता उज्ज्वला योजना की ख़ामियों की रिपोर्टिंग ठीक से नहीं कर पाते वही बुधवार को दिन भर अंतरिक्ष विज्ञान के एक्सपर्ट बन गए. उनकी रिपोर्टिंग में विज्ञान कम था. मोदी का गुणगान था और विपक्ष का उपहास.

सितंबर 2014 से इसरो देश के नाम पर भाजपा और नरेंद्र मोदी की राजनीति का केंद्र बन गया था जब मंगलयान के समय प्रधानमंत्री मोदी ख़ुद वैज्ञानिकों के बीच मौजूद थे. उसी दिन तय हो गया था कि भारत की वैज्ञानिक कामयाबी वैज्ञानिकों की नहीं होगी, प्रधानमंत्री मोदी की होगी. चीन ने भी इस क्षमता का परीक्षण किया मगर उसने टीवी पर आकर दुनिया को नहीं बताया. यही परंपरा रही है. अंतरिक्ष विज्ञान की कामयाबी वैज्ञानिकों पर छोड़ दी जाती है. लेकिन अब यह सब मोदी के लिए प्रोपेगैंडा का हिस्सा भर हैं.

चुनाव आयोग नरेंद्र मोदी के राष्ट्र के नाम संबोधन की जांच कर रहा है. आयोग के क़ानूनी सलाहकार रहे मेंदीरत्ता ने 'द प्रिंट' से कहा है कि उन्होंने आचार संहिता लागू होने के बाद किसी प्रधानमंत्री को कभी ऐसा करते नहीं देखा. प्रधानमंत्री ने संबोधन में ऐसे बहुत से शब्दों का प्रयोग किया है जिनका इस्तमाल अपने राजनीतिक मंचों पर करते रहे हैं. यह मामला चुनाव आयोग का इम्तिहान है. मुझे संदेह है कि आयोग कुछ करेगा. वह बहाने ढूंढ लाएगा. क्या हम एक संस्था के रूप में चुनाव आयोग का समापन देख रहे हैं? समापन का सीधा प्रसारण!

हे राष्ट्र! उठो, अब तुम इन संस्थाओं को संबोधित करो. बहुत देर हो चुकी है. मृत्यु शैय्या पर पड़ी इन संस्थाओं को कराहते मत देखो. 

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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