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गौरव दत्त ने लिखा है कि मुझसे संबंधित दो मामले थे जिसे बंद करने से मुख्यमंत्री ने इंकार कर दिया. एक फाइल तो जान-बूझकर गुमा ही दी गई. दूसरे में भ्रष्टाचार के आरोप साबित नहीं होते थे. यहां तक कि पुलिस महानिदेशक ने मुख्यमंत्री से गुज़ारिश की थी मगर केस बंद करने से इंकार कर दिया. मौजूदा मुख्यमंत्री ने मुझे 10 वर्षों तक प्रताड़ित किया है. राज्य सरकार ने पेंशन बंद कर दी. गौरव दत्त ने यह भी लिखा है कि इस कदम के उठाने के बाद शायद सरकार उनके परिवार के लिए पेंशन जारी कर दे ताकि वे सम्मान से जी सकें. रिटायरमेंट के बाद भी सबक सिखाने के इरादे से पेंशन का पैसा रोका गया.
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गौरव ने अपनी सुसाइड नोट में आईपीएस बिरादरी को भी ज़िम्मेदार ठहराया है. लिखा है कि जब सरकार निजी रूप से नापसंद करने लगती है तब सारे अधिकारी सरकार की लाइन पर चलने लगते हैं. आपके साथ गली के कुत्ते की तरह व्यवहार करने लगते हैं. अपने ही घर में कोई स्वाभिमानी अफसर नहीं बचा है. गौरव दत्त की मौत भयावह घटना है. राजनीतिक खंडन और आरोप का मतलब नहीं. क्योंकि हम सब जानते हैं कि गौरव दत्त की बात सही है. वे जिन दो फाइलों की बात कर रहे हैं उनकी जांच हो सकती है. सुप्रीम कोर्ट के जज ही देख लें कि क्या इस तरह की नाइंसाफी की गई. इससे मुख्यमंत्री की भूमिका स्पष्ट हो जाएगी. कम समय में हो जाएगी. 10 साल तक अनिवार्य छुट्टी पर भेजे जाने के कारण पुलिस महानिदेशक से भी पूछा जाना चाहिए. आखिर वे किस टाइप के मुखिया हैं और पुलिस ने उनके लिए लड़ाई क्यों नहीं लड़ी. मगर गौरव ने ही लिखा है कि आईपीएस बिरादरी ही उनके साथ गली के कुत्ते जैसा व्यवहार करने लगी थी क्योंकि सरकार को वे पसंद नहीं थे.
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इस घटना को लेकर कई दिनों से मेसेज आ रहे हैं कि मैं बंगाल पर चुप हूं. ये वही लोग हैं जब बैंक से लेकर नौकरी और मोदी सरकार के झूठ के सामने तथ्य रख देता हूं तो गाली देते हैं. अच्छी बात है कि वे मुझसे उम्मीद करते हैं. मैं एक पत्रकार हूं. एक. सारी खबरें लेकर नहीं छप सकता. जब मेरे लिखने पर इतना ही यकीन है तो पहले जो मोदी सरकार के झूठ पर लिखता हूं उस पर गाली न दें और उसे खूब शेयर करें.
गौरव दत्त के इंसाफ के लिए आप चिंतित नहीं हैं. आप मौकापरस्त हैं. मोदी की आलोचनाओं से संभल नहीं पाते हैं तो बंगाल और केरल से घटनाएं खोजने लगते हैं. मैं मानता हूं कि गौरव दत्त की आत्महत्या सरकारी हत्या है. मुझसे सवाल करने के बहाने ही सही, आपके भीतर का कुछ तो हिस्सा समझ रहा है कि मुख्यमंत्रियों और प्रधानमंत्रियों के पास अधिकारियों के साथ खिलवाड़ करने के कितने रास्ते होते हैं. उन्होंने ईमानदार अफसरों के साथ क्या-क्या किया है.
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क्या आपकी रुचि इस तरह के सवालों में है, ऐसे सिस्टम के बनने में है कि कोई प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री किसी अफसर का राजनीतिक इस्तेमाल न कर सके? मेरी राय में नहीं है. गौरव दत्त के साथ जो प्रताड़ना हुई है, उसकी कहानी हर राज्य में मिलेगी. हरियाणा के आईएएस अफसर अशोक खेमका की ईमानदारी के साथ कोई खड़ा नहीं हुआ. आप उनसे पूछ सकते हैं कि प्रशासन में उनकी क्या भूमिका रह गई है. इसके लिए किसी ने ट्रोल नहीं किया. पिछले साल इसी फरवरी महीने में हरियाणा के आईएएस अफसर प्रदीप कासनी रिटायर हुए. उन्हें एक ऐसे पद पर ओएसडी के रूप में तैनात किया गया था जो पद सरकारी रिकॉर्ड में था ही नहीं. 34 साल के करियर में 71 बार तबादला हुआ. यानी साल में दो बार तबादला. तबादला ही झेलता हुआ वो अफसर रिटायर हो गया.
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पिछले साल मार्च में गुजरात के आईएएस अफसर प्रदीप शर्मा के परिवार वालों ने यही आरोप लगाया है जो बंगाल के आईपीएस गौरव दत्ता की पत्नी ने लगाया है. प्रदीप शर्मा पर 10 एफआईआर हैं. जेल में हैं. उन्हें बेटे की शादी की शरीक होने के लिए अंतरिम ज़मानत तक नहीं मिली. 2013 में कोबरापोस्ट और गुलेल ने एक ऑडियो रिकार्डिंग प्रकाशित की थी जिसमें पता चलता है कि एक 35 साल की लड़की पर नज़र रखी जा रही है. मीडिया में स्नूपगेट के नाम से कई रिपोर्ट मिलेंगी कि अमित शाह और पुलिस अधिकारी सिंघल बातचीत कर रहे हैं. उस समय आरोप लगा था कि मुख्यमंत्री मोदी के लिए कथित रूप से ये जासूसी हो रही थी. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार जब सिंघल, इशरत जहां एकनकाउंटर केस में गिरफ्तार हुए तो यह रिकॉर्डिंग लीक हो गई. सिंघल इसके ज़रिए अपने को बचाना चाहते थे इसलिए प्रदीप शर्मा के ज़रिए यह टेप लीक हो गया. सिंघल बरी हो गए हैं. प्रदीप शर्मा जेल में हैं.
प्रदीप शर्मा ही नहीं, गुजरात काडर के संजीव भट्ट के साथ जो प्रताड़ना हो रही है, क्या आप उनके लिए भी बोलना चाहेंगे ताकि किसी गौरव भट्ट को फिर से आत्महत्या न करनी पड़े? मैं यह इसलिए नहीं लिख रहा कि ममता से ध्यान हटाना है. मैं तो कहता हूं कि अगर सुप्रीम कोर्ट ही दो फाइलें मंगा कर देख ले तो भूमिका साफ हो जाएगी. लेकिन मैं यह ऐसे लोगों को एक्सपोज़ करने के लिए लिख रहा हूं कि उनका मकसद न तो गौरव के इंसाफ में है और न ही इस बात में कि सिस्टम ऐसा हो कि किसी गौरव दत्त, संजीव भट्ट या प्रदीप शर्मा को ऐसी प्रताड़ना न झेलनी पड़े.
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आपको याद होगा जुलाई 2016 की घटना जब सीबीआई ने कारपोरेट अफेयर्स मंत्रालय के महानिदेशक बीके बंसल के यहां भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप के कारण छापा मारा था. उसके एक साल बाद बीके बंसल और उनके बेटे ने आत्महत्या कर ली. उनकी आत्महत्या से पहले उनकी पत्नी और बेटी ने आत्महत्या की. बंसल ने अपने सुसाइड नोट में दो महिला अफसरों के साथ-साथ सीबीआई के इंस्पेक्टर जनरल का नाम लिया था. आरोप था कि इन लोगों ने उनकी पत्नी और बेटी को प्रताड़ित किया. टार्चर किया. नोट में यह भी था कि हवलदार ने उनकी पत्नी और बेटी को गालियां दीं. इस अपमान को वे झेल नहीं पाईं और आत्महत्या कर बैठी. उसके बाद बंसल और उनके बेटे ने आत्महत्या कर ली.
फरवरी 2017 में अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री कालिखो पुल ने आत्महत्या की थी. 60 पेज के सुसाइड नोट में सुप्रीम कोर्ट के जजों और कई कांग्रेस नेताओं पर पैसे लेकर मामला सेटल करने का आरोप लगाया था. एक मुख्यमंत्री ने आत्महत्या की थी, उस सुसाइड नोट में मौजूदा मुख्यमंत्री प्रेमा खांडू पर भी आरोप है. एक मुख्यमंत्री के सुसाइड नोट को दबा दिया गया.
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क्या ममता-ममता करने वाले लोग योगी-योगी कर रहे थे जब एक आईपीएस अफसर जसवीर सिंह को चंद रोज़ पहले सस्पेंड कर दिया गया. क्यों? क्योंकि उसने 2002 में महाराजगंज एसपी के नेता तब के सांसद योगी पर एक्शन लिया था. बसपा की सरकार थी, दो दिन बात तबादला हो गया. आईपीएस जसवीर सिंह ने राजा भैया को गिरफ्तार किया हुआ है. सेना के अधिकारी के पुत्र जसवीर सिंह पंजाब के होशियारपुर के हैं.1992 के यूपी काडर के आईपीएस हैं. इन्हें सस्पेंड किया गया कि मीडिया को इंटरव्यू दिया और 4 फरवरी को अनधिकृत रूप से अनुपस्थित थे. क्या आपको नहीं लगता कि ये वही कार्रवाई है जो ममता ने गौरव दत्त के साथ की होगी?
हर राज्य में कोई गौरव दत्त घुट रहा है. अपनी ईमानदारी की सज़ा पा रहा है. इसमें न तो मोदी अपवाद हैं, न कमलनाथ, न ममता, न योगी, न कैप्टन, न नीतीश. ईमानदार अफसर के लिए कोई सरकार नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस सुधार की बात की थी ताकि पुलिस नेताओं के चंगुल से मुक्त हो सके. दस साल हो गए लेकिन कुछ नहीं हुआ. पुलिस सुधार की यह व्यवस्था दिल्ली में ही लागू नहीं है. किसी राज्य ने लागू नहीं की. इसलिए इस घटना का इस्तमाल मोदी को ममता से और ममता को मोदी से बैलेंस करने के लिए न करें. दम है तो मोदी से पूछ लें कि क्या आप में पुलिस सुधार लागू करवा कर आईपीएस को राजनीतिक नियंत्रण से मुक्त करने की हिम्मत है? हिम्मत होती तो पांच साल में लोकपाल नहीं बन जाता और उसका ढांचा आपको दिखाई नहीं देता?
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