योगी सरकार के मंत्री ओमप्रकाश राजभर की 'पीलिया' पॉलिटिक्‍स

ओम प्रकाश राजभर ही नहीं, खुद से भी और बाकी सरकारों से भी पूछना चाहिए कि क्या हम अपना यह कर्तव्य निभा रहे हैं.

योगी सरकार के मंत्री ओमप्रकाश राजभर की 'पीलिया' पॉलिटिक्‍स

भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष व यूपी सरकार में मंत्री ओमप्रकाश राजभर (फाइल फोटो)

क्या आप जानते हैं कि भारत में एक मंत्री ऐसे भी हैं जो श्राप भी देते हैं. यह उनका संवैधानिक अधिकार तो नहीं है मगर कहां से उन्होंने श्राप देने की शक्ति प्राप्त की है, ये कोई देवता ही बता सकते हैं. ओम प्रकाश राजभर योगी सरकार में मंत्री हैं. भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष भी हैं. ओम प्रकाश राजभर विधायक बनते हुए और मंत्री बनते हुए जिस संविधान की शपथ लेते हैं उसके मौलिक अधिकार के खंड में साफ-साफ लिखा है कि भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद, और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे. ओम प्रकाश राजभर ही नहीं, खुद से भी और बाकी सरकारों से भी पूछना चाहिए कि क्या हम अपना यह कर्तव्य निभा रहे हैं. ओम प्रकाश राजभर योगी सरकार में पिछड़ा कल्याण मंत्रालय, दिव्यांग जन सशक्तिकरण मंत्रालय के कैबिनेट मंत्री हैं. उन्होंने 20 मई को बलिया में एक रैली में जो बात कही है उसे आप जान लीजिए.

उन्‍होंने कहा है, 'जब तक ओमप्रकाश राजभर का निर्देश लेकर के आपके प्रदेश और जिला की टीम जब तक आपके बीच नहीं जाएगी, तब तक किसी पार्टी के करीब अगर कोई गया तो ये समझ लेना कि ओमप्रकाश राजभर का उसको श्राप हो जाएगा, क्या होगा श्राप होगा, उसको पीलिया हो जाएगा.. आप यहां आए हो सोच लो उसे पीलिया हो जाएगा, ठीक तभी होगा जब ओमप्रकाश राजभर की दवाई लोगे, तभी पीलिया ठीक होगा वरना ठीक नहीं होगा...'

ये जनता से कह रहे हैं कि दूसरे दल की रैली में नहीं जाए क्योंकि ओमप्रकाश जी श्राप दे देंगे और जब श्राप दे देंगे तो पीलिया की बीमारी हो जाएगी. हमारे नेताओं को वैज्ञानिक प्रशिक्षण की सख्त ज़रूरत है. कम से कम ओम प्रकाश राजभर भारत सरकार के राष्ट्रीय स्वास्थ्य पोर्टल पर चले जाएं जहां पीलिया होने के कारण बताए गए हैं. उन कारणों में कहीं नहीं लिखा है कि ओमप्रकाश राजभर के श्राप देने से पीलिया की बीमारी होती है. यही नहीं पीलिया हो जाने पर राजभर जी ठीक होने की दवाई भी देते हैं, वो दवा किस लैब से पास है, वही बता सकते हैं. भारत की राजनीति में नेता कुछ भी बोल कर निकल जाते हैं. उनके इस आत्मविश्वास की प्रशंसा की जानी चाहिए. कोई विपक्ष के नेता को कुत्ता बिल्ली सांप छुछूंदर कह देता है, कोई राज्यपाल को कुत्ता कह देता है. किसी को प्लास्टिक सर्जरी का मूल गणेश जी में दिख जाता है तो किसी को आज की दुनिया की हर चीज़ उस दौर में दिख जाती है जिसके प्रमाण कभी मिले ही नहीं. तिस पर से आत्मविश्वास देखिए कि संविधान दिवस पर अंबेडकर अंबेडकर का नाम भी जप लेते हैं, यह भूलते हुए कि संविधान में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास को हर नागरिक का कर्तव्य बताया गया है.

पीलिया शब्द का उपयोग त्वचा के पीलेपन और आंखों की सफेदी बताने के लिए किया जाता है. इसका कारण शरीर के ऊतकों व रक्त में एक पदार्थ का निर्माण होता है, जिसे बिलीरूबिन कहते हैं. कोई भी स्थिति जिनके कारण बिलीरूबिन की गतिविधियां रक्त से लीवर और शरीर से बाहर बाधित होती हैं. उसके कारण पीलिया होता है. बिलीरूबिन पीले रंग का पिगमेंट है, जो कि लीवर में मृत लाल रक्त कोशिकाओं के टूटने से बनता है. इसके अलावा कई अन्य तरीके हैं जिनके माध्यम से बिलीरूबिन बनता है.

इसमें कहीं नहीं लिखा है कि ओमप्रकाश राजभर के श्राप के कारण पीलिया की बीमारी होती है या बिना उनकी इजाज़त के किसी की रैली में जाने पर श्राप देने से पीलिया होता है. मूर्खता के इस दैनिक अभ्यास से जल्दी नहीं बचा गया तो एक दिन हम अपनी अज्ञानता को ही विज्ञान समझ बैठेंगे. कोई इतिहास को लेकर झूठ बोल देता है, कोई विज्ञान को लेकर कुछ भी बोल देता है. क्या हम तैयार हैं कि स्कूल की किताबों में इन्हीं मूर्खताओं को अब पढ़ाया जाए. वैज्ञानिक और मानवतावाद में हम किस कदर फेल हुए हैं, इसका एक क्रूर नमूना दिखाता हूं. सिर्फ संस्थाएं ही नहीं, समाज में भी क्रूरता की इतनी परतें हैं कि मानवतावाद और भाईचारा कहां ख़त्म हो गया है या इसके खत्म होने का प्रमाण किस रूप में कब हमारे सामने आ जाएगा हम नहीं जानते.

सोचिए, ऐसा क्या गुनाह रहा होगा इसका, इस व्यक्ति से इतनी नफरत होने की क्या वजह रही होगी कि इस तरह से बांध कर मारा जा रहा है. गुजरात के राजकोट की एक फैक्ट्री से मिला यह वीडियो है जिसे विधायक जिग्नेश मेवाणी ने ट्वीट किया था. यह आदमी जिसे मारा जा रहा है, वो मर गया. पुलिस की शिकायत के अनुसार ऑटो पार्ट की फैक्ट्री के मालिक के आदेश पर इसे इस तरह बांध कर मारा गया. इसकी पत्नी को भी मारा गया. मुकेश वाणिया चीखता रहा, चिल्लाता रहा मगर मारने वालों पर कोई फर्क नहीं पड़ा. जिग्नेश ने बताया कि मुकेश वाणिया दलित समुदाय से है. ये आज के हिन्दुस्तान की तस्वीर है. 2016 में गुजरात में ऊना की घटना के बाद कितनी बहस हुई उसके बाद भी समाज के भीतर कोई फर्क नहीं पड़ा. जाति या अमीर होने का अहंकार इतना बड़ा कैसे हो जाता है कि एक मनुष्य को इस तरह बांध कर मारा जाता है. मुकेश की पत्नी किसी तरह भागी, गांव वालों से मदद मांगी लेकिन जब तक वह लौटी, मुकेश ज़मीन पर अधमरा पड़ा था. अस्तपताल ले जाते जाते उसकी मौत हो चुकी थी. इसकी जान लेने वाले पांच लोगों के खिलाफ हत्या और एससी/एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है. इनके नाम हैं चिराग वोरा, दिव्येश वोरा, जयसुख रडाडिया, तेजस ज़ाला. पांचवा अभियुक्त 18 साल से कम का है मगर उसे भी हिरासत में लिया गया है. पुलिस दोनों पक्षों के दावे की जांच कर रही है मगर मुकेश वाणिया की मौत हो गई है. इसके लिए जांच की कोई ज़रूरत नहीं है. यह कोई पहली घटना नहीं है, हाल फिलहाल के दिनों में ही देश भर में इतनी घटनाएं हो चुकी हैं जो बताती हैं कि एक तबका लगातार बड़ा होता जा रहा है जिसने जाति और धर्म के आधार पर एक खास तबके को बर्दाश्त न करने की ज़िद ठान ली है. जाति और धर्म के नाम पर नफरत फैलाने की राजनीति का यह नतीजा हम देख रहे हैं.

21 मार्च 2018 के टाइम्स ऑफ इंडिया में एक खबर छपी थी. मेहसाणा के एक दलित कार्यकर्ता के आरटीआई के जवाब में जानकारी सामने आई कि गुजरात में 2017 के साल में 1515 मामले दर्ज हुए थे जो पिछले 17 साल में सबसे अधिक था. आज ही अमित शाह कर्नाटक में दलित उत्पीड़न की बात कर रहे थे. जो कि सही भी होगा, मगर क्या वे गुजरात की बात कर सकते हैं. एनसीआरबी के डेटा के हिसाब से दलित उत्पीड़न में गुजरात का स्थान 10 है और कर्नाटक का 6. किस राज्य में यह नफरत नहीं है और इस नफरत को किस राजनीतिक विचारधारा के लोगों से प्रश्रय मिल रहा है. बढ़ावा मिल रहा है. कर्नाटक चुनावों के दौरान लोकतंत्र के ख़तरे की खूब बात हुई है. मगर आपको कोई नेता ख़तरे में नहीं दिखेगा. ख़तरे में तो लोक रहता है. जब भी आप अकेले होते हैं, भीड़ से अलग, आपको पता चलता है कि आप ख़तरे में हैं, लोकतंत्र की बात करने वाले नेता नहीं.

दुनिया में चाहे जितनी बड़ी ब्रेकिंग न्यूज़ हो जाए, नौजवान हर दिन यही मैसेज करते हैं कि नौकरी सीरीज़ पर कब लौटेंगे. हमारी नौकरी की बात कीजिए. मगर यही नौजवान नफ़रत की राजनीति में जलावन के काम भी आ रहे हैं. समझना मुश्किल है कि नौजवानों की प्राथमिकता क्या है. वे इस वक्त नफ़रत की बात ज़्यादा सोच रहे हैं या नौकरी की बात ज़्यादा सोच रहे हैं. उम्मीद है वे नफ़रत की बातों को समझेंगे. नौकरी की बात उनके अलावा कोई और नहीं समझेगा. न नेता न मीडिया. फिर भी हम नौकरी सीरीज़ पर लौट रहे हैं. नौजवानों के साथ वाकई नाइंसाफी हो रही है. जिस वक्त नौजवान नौकरी मांग रहे हैं, उस वक्त कोई उनकी नौकरी की बात नहीं कर रहा है. नौकरी की बात सिर्फ चुनावों के समय होर्डिंग पर होती है. हम कोशिश करेंगे कि अपने सीमित संसाधनों के सहारे कि अलग-अलग राज्यों में फिर से लौट कर देंखेंगे कि ज्वाइनिंग लेटर मिलने में क्यों देरी हो रही है, कितनी देरी हो रही है, विज्ञापन निकलने के बाद परीक्षा में देरी क्यों हो रही है, आप नौजवानों से उम्मीद है कि primetimewithravish@gmail.com पर विस्तार से भेजें और अपना नंबर ज़रूर लिखिए. हम सभी की समस्याएं तो नहीं दिखा पाएंगे, यह बात अभी कहना ज़रूरी भी है, मगर कोशिश होगी कि जिसका दायरा बड़ा होगा, हम दिखाएंगे. इसका असर तभी होगा जब आप अपने से ज़्यादा दूसरे के मामले में दिलचस्पी लेंगे, वर्ना अपना अपना देखने के इरादे से आप ही देखेंगे, सिस्टम को कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

बनारस का एक छात्र हमारे सहयोगी अजय सिंह के पास आया. उसका दावा है कि उसने स्टाफ सलेक्शन की परीक्षा पास तो कर ली थी मगर पास होने की सूचना समय से नहीं पहुंची और वो डॉक्यूमेंट की जांच नहीं करा पाया. उसका रैंक 12वां था, इसके बाद भी वह नौकरी से रह गया. आकाश पांडेय नाम का यह लड़का यहां वहां भटक रहा है. अब उसके काम न तो हिन्दू मुस्लिम वाले आ रहे हैं न भगवान. कोर्ट में गया है. मगर इस वक्त स्थिति यह है कि आकाश को नौकरी नहीं मिली.

जूनियर वायरलेस ऑफिसर की परीक्षा पास करने के बाद, 12वें रैंक पर आने के बाद भी समय पर सूचना नहीं मिलने के कारण नौकरी नहीं मिली. 51 पदों के लिए इसकी परीक्षा 18 नवंबर को हुई. इसमें ये लड़का पास कर गया. आकाश को लगा कि एसएससी की तरफ से सूचना आएगी. वो रेगुलर एसएमएस और ईमेल चेक करता रहा. बीच बीच में वेबसाइट भी चेक कर लेता था. कई दिनों बाद आकाश ने जब वेबसाइट देखी तो उसके होश उड़ गए. रिज़ल्ट निकल चुका था और सारी तारीखें जा चुकी थीं. आकाश का दावा है कि जब उसने स्टाफ सलेक्शन कमिशन से आरटीआई के ज़रिए सूचना मांगी तो जवाब मिला कि वेबसाइट पर थोड़े समय के लिए सूचना दी गई थी, आपको देखना चाहिए था ये आपकी ग़लती है. थोड़े समय की सूचना का क्या मतलब है.

इसके बाद आकाश यहां वहां पता करने लगा. पास हुए छात्रों से पूछा तो पता लगा कि उन्हें ईमेल भी आया था और एसएमएस भी आया था. मगर आकाश का दावा है कि उसे न तो एसएमएस आया न ईमेल से सूचना मिली. 51 पदों की बहाली में 12वां रैंक लाकर भी आकाश आज समझ नहीं पा रहा है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ. अगर कोई चूक थी तो क्या यह इतना बड़ा मामला था जिसे ठीक नहीं किया जा सकता था.

आधा से अधिक मई बीत गया लेकिन क्या आपको पता है कि मार्च के महीने में स्टाफ सलेक्शन कमीशन की परीक्षा की सीबीआई जांच का क्या नतीजा निकला है. मीडिया की खबरों से पता चलता है कि 27 मार्च को यूपी पुलिस के स्पेशल टास्क फोर्स और दिल्ली पुलिस ने मिलकर चार लोगों को गिरफ्तार किया था. तब इनके पास से 50 लाख रुपये भी बरामद हुए थे. इसके आगे क्या प्रगति हुई है, सीबीआई की जांच किस स्तर पर सार्वजनिक जानकारी नहीं है.

मार्च भर एसएससी की परीक्षा में प्रश्न पत्रों के लीक होने का मामला ज़ोर शोर से उठा, वो भी इसलिए कि छात्र कई दिनों तक स्टाफ सलेक्शन कमिशन के दफ्तर के बाहर बड़ी संख्या में जमा हुए. कांग्रेस, बीजेपी और स्वराज इंडिया के नेता इनके बीच आते जाते रहे. 6 मार्च को गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने सीबीआई जांच के आदेश भी दिए. छात्रों की मांग थी कि इस साल 17 फरवरी से 22 फरवरी के बीच जो परीक्षाएं हुई थीं, उनमें बड़े पैमाने पर प्रश्न पत्र लीक हुए हैं. छात्र जांच की रिपोर्ट का इंतज़ार कर रहे थे कि खबर आई कि स्टाफ सलेक्शन कमीशन के चेयरमैन असीम खुराना का कार्यकाल एक साल के लिए बढ़ा दिया गया है. दोनों में कोई संबंध नहीं है बशर्ते प्रश्न पत्रों के लीक होने की जांच हो जाती. बहरहाल इस बात को लेकर छात्रों में नाराज़गी है. स्वराज इंडिया के अनुपम ने बयान जारी कर खुराना के कार्यकाल बढ़ाए जाने की आलोचना की है.

नौकरी सीरीज़ के पहले चरण में हमने दिखाया था कि सीएचएसएल 2015 और सीजीएल 2016 की परीक्षा में पास किए छात्रों को पास करने के बाद भी ज्वाइनिंग लेटर नहीं मिल रहा है. सीरीज़ के बाद कई हज़ार छात्रों को ज्वाइनिंग लेटर मिला है? पिछले हफ्ते से सीएजी में असिस्टेंट ऑडिट अफसर के पद पर 1000 छात्रों की ज्वाइनिंग हो रही है. जैसे जैसे ज्वाइन करते हैं, हमें शुक्रिया का संदेश भेज देते हैं. काश सबके साथ ऐसा हो जाता. क्यों अभी भी सीएचएसएल 2015 के कई छात्रों को ज्वाइनिंग लेटर नहीं मिला है. इनका कहना है कि कई विभागों ने नियुक्ति पत्र तो दे दिए, छात्रों ने ज्वाइन भी कर लिया मगर अभी भी कुछ विभाग ऐसे हैं जो नियुक्ति पत्र नहीं दे रहे हैं. फोन पर पता करने से बोलते हैं कि जुलाई अगस्त में नियुक्ति होगी. बताइये अगस्त 2017 में रिजल्ट आया और एक साल लगेगा नियुक्ति होने में. इसी के साथ अब वे छात्र परेशान हैं जिन्होंने सीजीएल 2016 की परीक्षा दी है, रिजल्ट आ गया है मगर नियुक्ति पत्र नहीं मिल रहा है. हम जिस परीक्षा की बात कर रहे हैं उसका नोटिफिकेशन अक्टूबर 2016 में निकला था. 6708 पदों के लिए विज्ञापन निकला था. पोस्टल सहायक के लिए 3295 और एलडीसी के लिए 2878 पद थे.

दो-दो साल तो परीक्षा चलती रहती है. नौजवानों की उम्मीदों के साथ ऐसा क्यों होता है. स्टाफ सलेक्शन कमीशन की वेबसाइट से पता चलता है कि रिजल्ट इसी 16 फरवरी को निकला है, मई महीने में इसे रिवाइज़ किया गया है. हमने एसएससी को जवाब के लिए ईमेल किया है, जब आएगा या अगर आएगा तो दिखाएंगे मगर हज़ारों की संख्या में छात्र सिस्टम के धीमी गति के शिकार होते रहेंगे तो कैसे चलेगा. ये छात्र इतने डरपोक हैं या कह लीजिए कि घबराए हुए हैं कि अपना वीडियो तक बनाकर नहीं भेज पाते हैं. हज़ारों की संख्या में छात्र हैं, इनकी मांग भी जायज़ है फिर भी अगर सामने नहीं आएंगे तो हम दिखाएंगे कैसे. कुछ छात्रों ने ऑडियो रिकॉर्डिंग भेजी है.

आप दर्शकों को पता है कि हम लगातार बैंक सीरीज़ कर रहे थे. बीच में छोड़ दिया क्योंकि बात आगे बढ़ नहीं रही थी. कुछ बैंकों ने महिला बैंकरों के लिए शौचालय बनाने के आदेश दिए हैं. अब इतना वक्त तो हो ही चुका है कि शौचालय बन जाना चाहिए. काम करने के हालात, तनावों के बहाने बैंकरों की मूल मांग सैलरी भी है इसलिए हम इन बातों के ज़रिए उनके भीतर झांक कर देखना चाहते थे, इसलिए हमारे लिए क्रॉस सेलिंग के अलावा छुट्टी न मिलना, महिला बैंकरों के तबादले में उनकी चिन्ता की परवाह न करना, महिला हो या पुरुष बैंकर, इनके बीमार पड़ने या घर वालों के बीमार पड़ने पर छुट्टी न मिलना, ये सब बातें भी महत्वपूर्ण हैं. हमने यह भी देखा कि इस बीच कुछ बैंकरों पर हमले भी हुए. खुदकुशी की भी खबरें आईं. बैंकिंग दुनिया के भीतर काफी कुछ अच्छा नहीं है.

21 मई को बिहार के अरवल में बैंक आफ बड़ौदा में मैनेजर पद पर तैनात आलोक चंदर की गोली मार कर हत्या कर दी गई. उन्हें तीन गालियों मारी गईं. आलोक नवादा के वारसलीगंज थाने के कुटरी गांव के रहने वाले थे. इस हत्या के विरोध में बैंक कर्मचारियों ने मुज़फ्फरपुर में कैंडल मार्च निकाला. हाल ही में जयपुर में बैंकरों ने अपनी सुरक्षा और अन्य मांगों को लेकर धरना दिया था. बैंक सीरीज़ भी लौटेगा, बशर्ते बैंकर पहले की तरह हमें ईमानदारी से भीतर की बातें बताते रहें. primetimewithravish@gmail.com पर तस्वीरों के साथ सारी जानकारी भेजिए. अपना नंबर ज़रूर दीजिए.


Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com