धार्मिक पर्वों का इस्तेमाल कट्टरता के लिए क्यों?

इन जूलूसों में राम जी के नारे कम लगते हैं, राजनीतिक हो चुके नारे ज़्यादा लगने लगे हैं. नेताओं को लगता है कि इससे पहले कि लोग रोज़गार, अस्पताल के सवाल पूछें, उनको राम के नाम पर रास्ता दिखा दो.

धार्मिक पर्वों का इस्तेमाल कट्टरता के लिए क्यों?

प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

न तो राम का नाम लेने पर रोक है न रामनवमी का जुलूस निकालने पर. इससे पहले कि कई ज़िले जल उठे, यहां रुक कर सवाल करना ज़रूरी है कि कहीं रामनवमी के नाम पर गांव कस्बों और छोटे शहरों में सांप्रदियकता का उन्माद फैलाने का प्रयास तो नहीं किया जा रहा है. इन जूलूसों में राम जी के नारे कम लगते हैं, राजनीतिक हो चुके नारे ज़्यादा लगने लगे हैं. नेताओं को लगता है कि इससे पहले कि लोग रोज़गार, अस्पताल के सवाल पूछें, उनको राम के नाम पर रास्ता दिखा दो. हम सबने रामनवमी देखी है, मगर अभी ऐसा क्यों हो रहा है कि किशोर उम्र के लड़कों के हाथ में मोटी मोटी तलवारें हैं, उनकी ज़ुबान पर भक्ति के नाम पर सियासी नारे हैं. जिस तरह से रामनवमी के नाम पर कोशिश हो रही है, उसे साफ-साफ नहीं कहा गया तो पछताने का भी मौका नहीं मिलेगा. गनीमत है कि ज़्यादातर जगहों पर हिन्दू और मुसलमानों ने जुलूस की आड़ में खेली जा रही राजनीति को समझ लिया और भाईचारे की मिसाल कायम की फिर भी इस देश में किसी की जुलूस पर कुछ भी फेंक देने से शहर के शहर जलने की मिसालें रही हैं. बिहार और बंगाल जिस आग से गुज़रा है वो मीडिया में नहीं आ रहा है, इस एहतियात के साथ कि भक्ति की आड़ में उन्माद फिर न फैले. मगर व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी की दुनिया में खूब चल रहा है. आप ही बताइये कि उस समय रामनवमी का जुलूस की पवित्रता क्या रह जाती है जब शोभा यात्रा में एक हत्यारे की झांकी बनाई जाती है. क्या हम राम की पूजा को इस स्तर पर ले आएंगे.

राजस्थान के जोधपुर में रामनवमी के मौके पर जुलूस निकला, इस जुलूस में 325 देवी देवताओं की झांकियां थीं मगर इसमें इसकी झांकी क्या कर रही है. क्या यह शख्स देवता हो गया है. जिसे भारत की अदालत में हत्या का मुकदमा चल रहा है क्या वो देवताओं के झांकी के बीच जगह पाएगा. आपको याद आ ही गया होगा. ये झांकी हत्या के उस आरोपी की है जिसने बीते दिसंबर में एक मुस्लिम मज़दूर की नृशंस हत्या की, फिर उसके शव को जलाया और इस सबका वीडियो सोशल मीडिया पर डाला. लव जिहाद रोकने का चैंपीयन घोषित कर डाला, इसके बाद अलग अलग नाम की वेबसाइट्स पर ख़ुद को हिंदू हृदय सम्राट बताने की कोशिश की. शंभूलाल रैगर नाम का ये आदमी अब जेल में है लेकिन बाहर इस तरह उसकी झांकी निकली. एक आदमी उसकी शक्ल बनाकर एक सिंहासन पर बैठा और हाथ में कुल्हाड़ी पकड़ी. सामने ज़मीन पर एक दूसरे आदमी को पिटते हुए दिखाया गया. जुलूस विश्व हिंदू परिषद का था और झांकी शिवसेना के एक कार्यकर्ता ने बनवाई.

क्या यह ज़रूरी था, क्या राम जी की पांत में ऐसे लोग बैठेंगे, सोचिए एक बार. हम किस स्तर पर पहुंच रहे हैं. जो युवक इस झांकी में शंभूलाल बना उसका नाम सुरेश है और वो तीस साल का है. बेरोज़गार है, बिजली का काम करता है और 500 रुपए के लिए वो शंभूलाल रैगर बन गया क्योंकि उसकी शक्ल उससे मिलती है. लेकिन हमारी सहयोगी हर्षा कुमारी सिंह से बातचीत में उसने कहा कि वो शिवसेना का हिस्सा नहीं है, उसने पैसे के लिए ये काम किया. सोचिए पैसे लेकर यह तो काम कर गया. मगर इसके ऐसा करने से या इससे ऐसा करवाने किसे चुनौती दी जा रही थी जब इस सवाल पर सोचेंगे तो पता चलेगा कि नीयत कुछ और है.

हर्षा ने बताया कि जब इस झांकी लेकर विवाद होने लगा, तो ये नौजवान कुछ और ही कर रहा था. शायद वह भी अपने लिए इस उन्माद में जगह बना रहा था. जूलूस का आयोजन करने वाली संस्था विश्व हिंदू परिषद के नेताओं के भी तेवर ऐसे ही दिखे. वो कह रहे हैं कि शंभू अभी दोषी नहीं है मगर जेल में तो है. तो क्या उसे वो कृष्ण मान लेंगे. क्या उन्हें उसके रिहा होने का इंतज़ार नहीं करना चाहिए, क्या उन्होंने शंभू का वीडियो नहीं देखा होगा जिसमें वो हत्या कर रहा है.

रामनवमी के जुलूस में भगवान राम और सीता और साथ में अन्य देवी देवताओं की झांकियां निकाली जाती हैं लेकिन जोधपुर की ये झांकी उस परंपरा को मुंह चिढ़ाती दिखी, लोगों को धर्म के नाम पर उकसाती दिखी. शंभू लाल रैगर ने ख़ुद को लव जिहाद के ख़िलाफ़ एक योद्धा बताने की कोशिश की थी और इस झांकी में भी वही कोशिश फिर दिखी. पिछले दिनों इसी शंभू लाल रैगर का एक और वीडियो सामने आया था जिसमें वो जेल में बैठा हिंदू धर्म के नाम पर लोगों को उकसाने की कोशिश कर रहा था. उकसाने भड़काने वाले हर जगह सक्रिय हो रहे हैं. वो बस मौके ढूंढ रहे हैं. पश्चिम बंगाल में भी धर्म के नाम पर लोगों को बांटने की सियासत अपने चरम पर है. रामनवमी जैसे पवित्र पर्व लोगों को भड़काने वालों के लिए एक मौका बन रहे हैं.

बंगाल के रानीगंज की हिल बस्ती में यही हुआ. यहां सालों से मंदिर - मस्जिद आसपास रहे हैं और धर्म के नाम पर यहां कभी ऐसी कट्टरता नहीं देखी गई लेकिन इस बार रामवनमी का एक जुलूस मुस्लिम बहुल इलाके से क्या गुज़रा, दो गुटों के बीच हिंसा शुरू हो गई. देखते ही देखते कुछ दुकानों को आग लगा दी गई. हिंसा में एक गांववाले की मौत हो गई, तीन पुलिसवाले घायल हो गए. हिंसा करने वालों ने कई मोटरसाइकिलों को आग लगा दी और स्थानीय बाज़ार में पुलिसवालों पर हमला किया. हिंसक घटना में आसनसोल-दुर्गापुर के डीसीपी अरिंदम दत्ता चौधरी घायल हो गए. दंगाइयों के फेंके एक बम से उनका एक हाथ चला गया. अस्पताल में उनकी हालत स्थिर बनी हुई है. घटना के बाद डरे हुए कई लोग इलाका छोड़कर जा रहे हैं. सारा मामला एक फार्मूले की तरह होता है. स्थानीय स्तर पर तनाव को भड़काना और फिर उसे बहस और बयानबाज़ी के ज़रिए बड़े स्तर पर ले जाना ताकि चर्चा के नाम पर लोगों का खर्चा चलता रहे.

इस खेल के खिलाड़ियों को पता है, राम का नाम लेकर कुछ भी किया जा सकता है. बहस जीती जा सकती है या हारने पर इस शर्त पर जीती जा सकती है कि क्या इस देश में राम का नाम लेना गुनाह है. मगर जो तरीका है उसके पीछे की नीयत है उसे सावधानी से देखिए. बंगाल के पुरुलिया में भी रामनवमी के मौके पर निकले जुलूस के बाद झड़प शुरू हो गई. इस झड़प में एक आदमी की मौत हो गई और पांच पुलिसवाले घायल हो गए. पुलिस के मुताबिक सरकार की पाबंदी के बावजूद बीजेपी समर्थकों ने कई जगह तलवारें हाथ में लेकर जुलूस निकाले.

मुर्शिदाबाद के कांडी में भी रामनवमी के मौके पर एक हथियारबंद भीड़ पुलिस थाने में घुस गई. पुलिस को जवाबी कार्रवाई में लाठीचार्ज कर उग्र भीड़ को वहां से भगाना पड़ा. बर्धमान में रामनवमी के मौके पर एक पूजा पांडाल पर हमला हुआ. रामनवमी वैसे पश्चिम बंगाल में कभी बड़ा त्योहार नहीं रहा लेकिन बीते दो साल से बीजेपी और उससे जुड़े संगठन इस मौके पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. उधर बिहार के औरंगाबाद में रामनवमी के जुलूस के बाद सोमवार दोपहर सांप्रदायिक झड़पें हुईं.

बताया गया कि रामनवमी के जुलूस पर शहर के नवाडीह इलाके में पत्थरबाज़ी की गई जिसके बाद हिंसा शुरू हुई. हिंसा के दौरान ओल्ड जीटी रोड पर क़रीब पचास दुकानों को दंगाइयों ने आग लगा दी. इन हिंसक झड़पों में साठ से ज़्यादा लोग घायल हो गए जिनमें बीस पुलिसवाले भी शामिल हैं जो पत्थरबाज़ी में घायल हुए. हिंसा रोकने के लिए पुलिस को देखते ही गोली मारने के आदेश दिए गए और इलाके में कर्फ़्यू लगा दिया गया. मंगलवार को भी यहां तनाव बना हुआ था हालांकि कर्फ़्यू उठा लिया गया. फिर भी काफ़ी कम ही लोग सड़कों पर उतरे. सुरक्षा बलों की भारी तैनाती के कारण कोई अप्रिय घटना नहीं हुई. औरंगाबाद की हिंसा में बीजेपी के स्थानीय सांसद सुशील सिंह की भूमिका संदिग्ध बताई जा रही है जो क्रिया की प्रतिक्रिया की बात कर रहे हैं.

इसी को मैं हिन्दू मुस्लिम डिबेट कहता हूं. ताकि माहौल गरम रहे. बहस चलती रहे. रामनवमी की शुभकामनाएं, राम के नाम पर जो यह सब किया जा रहा है, उसके लिए शुभकामानाएं बिल्कुल नहीं.


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