क्या भीड़ से तय होगा कि कौन गद्दार है?

अनुराग ठाकुर वित्त राज्य मंत्री हैं. दिल्ली की चुनावी सभा में अनुराग ठाकुर गोली मारने के नारे लगवा रहे हैं. उसके जवाब में दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी मानने वाली बीजेपी के कार्यकर्ता गोली मारने के नारे लगाते हैं.

क्या भीड़ से तय होगा कि कौन गद्दार है?

26 जनवरी को प्रधानमंत्री मोदी मन की बात में अंहिसा की बात करते हैं, 27 जनवरी को उनके ही मंत्री गोली मारने के नारे लगवाते हैं. ऐसा लगता है कि अहिंसा सिर्फ मन की बात बन कर रह गई है, ज़ुबान की बात कुछ और है. 25 जनवरी को राष्ट्रपति देश के युवाओं को गांधी की अहिंसा की याद दिलाते हैं. अगर राष्ट्रपति के संदेश और प्रधानमंत्री के मन की बात भारत सरकार के एक मंत्री तक नहीं पहुंच पा रही है तो प्रधानमंत्री को अनुराग ठाकुर से बात करनी चाहिए. अनुराग ठाकुर वित्त राज्य मंत्री हैं. दिल्ली की चुनावी सभा में अनुराग ठाकुर गोली मारने के नारे लगवा रहे हैं. उसके जवाब में दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी मानने वाली बीजेपी के कार्यकर्ता गोली मारने के नारे लगाते हैं. मंच पर वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर कई बार कहते हैं कि देश के गद्दारों को, जवाब में वही जवाब आता है. गोली मारो.. आगे का ज़िक्र हम नहीं कर सकते हैं. देश की राजधानी दिल्ली में गोली मारने के नारे लग रहे हैं.

अभी तक यह नारा नागरिकता संशोधन कानून के समर्थन की रैलियों में लगाया जा रहा था. पुलिस ने कभी नोटिस नहीं लिया. लाउड स्पीकर से गोली मारने के नारे लगाए गए. पहले रैलियों में इसे औपचारिक किया गया और अब मंत्री इसे बोलने लगे हैं. 1 फरवरी को बजट है. देश की अर्थव्यवस्था कई तरह के संकटों से गुज़र रही है. वित्त राज्य मंत्री गोली मारने के नारे लगा रहे हैं. एक केंद्रीय मंत्री की अपनी मर्यादा होती है. अगर मंत्री ही गोली मारने के नारे लगवाएंगे तो फिर चुनाव आयोग की निष्पक्षता का इम्तहान शुरू हो जाता है. उसका दायित्व बढ़ जाता है कि बगैर हिंसा के इस चुनाव को कैसे संपन्न कराया जाए. वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर जब नारे लगा रहे थे तब उनके साथ मंच पर एक और केंद्रीय मंत्री गिरीराज सिंह बैठे थे. अनुराग कह भी रहे हैं कि नारे ज़ोर से लगाएं ताकि गिरिराज सिंह सुन लें. गिरिराज सिंह पशुपालन और मत्स्य पालन मंत्री हैं. दोनों रिठाला से बीजेपी के उम्मीदवार मनीष चौधरी के लिए प्रचार कर रहे थे. मंच पर बीजेपी के सासंद हंस राज हंस भी बैठे थे.

देश के गद्दारों को गोली मारो..... यह नारा सीधे-सीधे भीड़ तंत्र को मान्यता देने का नारा है. जवाब में गोली मारने के नारे लगाते हुए पार्टी के कार्यकर्ता सामान्य कार्यकर्ता नहीं रह जाते. वो उस भीड़ में बदलने लगते हैं और गोली मारने को अपना अधिकार समझने लगते हैं. अगर वाकई किसी ने इस तरह की घटना कर दी तो उसकी ज़िम्मेदारी किसकी होगी. क्या भीड़ से तय होगा कि कौन गद्दार है? चुनाव आयोग के नियम स्पष्ट हैं. धार्मिक भावना भड़काने पर उम्मीदवारी रद्द हो जाती है. गोली मारने के नारे पर चुनाव आयोग चुनाव से पहले फैसला लेगा या बाद तक चलता रहेगा, यह उसका भी इम्तहान है. हाल ही में बीजेपी के एक उम्मीदवार कपिल मिश्रा को चुनाव प्रचार से बाहर कर दिया गया. दिल्ली के मॉडल टाउन से बीजेपी के उम्मीदवार कपिल मिश्रा ने इतना ट्वीट कर दिया था कि 8 फरवरी को भारत बनाम पाकिस्तान का मैच होगा. इतने पर चुनाव आयोग ने कपिल मिश्रा को 48 घंटे के लिए चुनाव प्रचार से बाहर कर दिया. मुख्य चुनाव अधिकारी रणबीर सिंह के कहने पर दिल्ली पुलिस ने कपिल मिश्रा के खिलाफ एक एफआईआर भी की है. आरोप है कि यह बयान देकर दो समुदायों के बीच तनाव को उभारा जा रहा है. कपिल मिश्रा के ट्वीट को हटाने के भी आदेश दिए गए थे. अनुराग ठाकुर की नारेबाज़ी तो कपिल मिश्रा से भी गंभीर है. हमने फोन पर चुनाव आयोग के पूर्व कानूनी सलाहकार एस के मेंदीरत्ता जी से बात की. जानना चाहा कि अनुराग ठाकुर का गोला मारने का नारा लगवाना किस तरह के अपराध की श्रेणी में आता है.

हमारे सहयोगी अरविंद गुनाशेखर ने ख़बर दी है कि रिठाला विधानसभा के रिटर्निंग अफसर ने कहा है कि वहां मौजूद अफसर से अनुराग ठाकुर का वीडियो मिल गया है. वहां पर बीजेपी के उम्मीदवार भी मौजूद थे जब नारे लगाए गए. वीडियो की जांच हो रही है.

इस बीच ट्विटर पर लोग इस वीडियो को लेकर प्रधानमंत्री मोदी को टैग करने लगे हैं कि वे क्या एक्शन लेते हैं. लोग कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री अहिंसा की बात कर रहे हैं और अनुराग ठाकुर गोली मारने के नारे लगवा रहे हैं. अनुराग ठाकुर को भी टैग कर सवाल किया जा रहा है कि उन्होंने ऐसे नारे क्यों लगाए हैं. लोग लिख रहे हैं कि राजनीति इस हद तक गिर गई है. किसी ने वित्त मंत्री सीतारमण को टैग करते हुए लिखा है कि क्या आपको इस बात का गर्व है कि आपका वित्त राज्य मंत्री इस तरह के नारों का प्रायोजक है. पत्रकार भी ट्वीट कर इस नारे पर हैरानी जता रहे हैं. लोग पूछ रहे हैं कि चार दिनों बाद बजट आने वाला है, वित्त राज्य मंत्री की प्राथमिकताएं क्या हैं.

गद्दार कहना भी संवैधानिक मर्यादाओं का अनादर है. इस कानून के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गई हैं. कोर्ट ने तो यह नहीं कहा कि विरोध में दायर याचिकाएं गद्दारों ने की हैं. संसद के बनाए कानून संसद में ही वापस लिए जा सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट में उसकी समीक्षा होती है. अदालतें रद्द कर देती हैं. इसलिए इस कानून का विरोध कहीं से गद्दारी नहीं है. बल्कि संविधान के दिए गए अधिकारों का इस्तमाल है. देश की चार विधानसभाओं केरल, पंजाब, राजस्थान और अब पश्चिम बंगाल ने इस कानून के खिलाफ प्रस्ताव पास किया है. क्या इन राजनीतिक गतिविधियों को गद्दार कहा जा सकता है? लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं से चुनी हुई पार्टी इसके विरोध करने वाले को गद्दार घोषित करती है. उनके मंत्री और सासंद गोली मारने के नारे लगवाते हैं और प्रधानमंत्री 26 जनवरी को अहिंसा का संदेश देते हैं. इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की चर्चा ज़रूरी है. जुलाई 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने भीड़ की हिंसा रोकने के लिए बकायदा गाइडलाइन बनाई थी और बकायदा नीचे से लेकर ऊपर तक के पुलिस अधिकारियों की जवाबदेही तय की थी कि भीड़ की हिंसा को लेकर सतर्क रहना है. यह भाषण दिल्ली पुलिस का भी इम्तहान है. सुप्रीम कोर्ट देखे कि अनुराग ठाकुर का गोली मारने का नारे लगाने पर दिल्ली पुलिस ने क्या कार्रवाई की है. देश की राजधानी दिल्ली में इस तरह के नारे लगवाए गए हैं. हम चाहते हैं कि एक बार आप फिर सुनें कि किस तरह अनुराग ठाकुर गोली मारने के नारे लगवा रहे हैं और अपने वरिष्ठ मंत्री गिरिराज सिंह को सुनवा देना चाहते थे.

गोली मारने की यह भाषा मंत्रियों तक सीमित नहीं है. न जाने कितनी रैलियों में गोली मारने के नारे लगाए गए हैं. क्या प्रधानमंत्री अनुराग ठाकुर की इस नारेबाज़ी को नज़रअंदाज़ कर देंगे या कार्रवाई करेंगे? बस इतनी सी कल्पना कर लीजिए कि अगर यही नारा नागरिकता कानून के विरोध में भीड़ छोड़िए, कोई एक आदमी लगाता हुआ दिख जाता तो क्या हाल होता. गोदी मीडिया अपने काम पर लग जाता. सारे आंदोलन को उस एक आदमी के बयान से जोड़ दिया जाता. उसे जेल भेज दिया जाता. राजद्रोह के मामले दर्ज हो जाते. लेकिन यहां तो नागरिकता संशोधन कानून के समर्थन में महीने भर से गोली मारने के नारे लग रहे हैं. यहां मंत्री गोली मारने के आरोप लगा रहे हैं. यही नहीं विश्वास नगर से बीजेपी के उम्मीदवार ओ पी शर्मा नगमा शहर के हम लोग में कहते हैं कि मुख्यमंत्री केजरीवाल आतंकवादी हैं.

मुख्यमंत्री को आतंकवादी कहा जा रहा है. क्या अरविंद केजरीवाल आतंकवादी है? यही ओ पी शर्मा थे जिन्होंने 2016 में पटियाला हाउस कोर्ट में अमीक जमाई पर हाथ उठा दिया था तब उन्होंने कहा था कि अगर उनके हाथ में बंदूक होती तो वे गोली मार देते. तब मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था कि ओ पी शर्मा के खिलाफ कार्रवाई की जाए. कोई कार्रवाई नहीं हुई. वे दोबारा उम्मीदवार हैं बल्कि अब तो अनुराग ठाकुर मंच से गोली मारने के नारे लगवा रहे हैं. पिछले ही हफ्ते इकोनमिस्ट पत्रिका के लोकतंत्र के सूचकांक पर भारत का स्थान 10 अंक नीचे गिरा है. इस पत्रिका ने भारत के लोकतंत्र के गिरते स्तर को लेकर लंबा सा लेख लिखा है. अब अगर भारत सरकार के मंत्री मंच से गोली मारने के नारे लगवाते देखे जाएंगे तो फिर क्या बचा रह जाएगा. यही नहीं, 29 और 30 जनवरी को यूरोपीय संघ के प्लेनरी सेशन में नागरिकता संशोधन कानून को लेकर चर्चा होने जा रही है. इस संबंध में छह प्रस्ताव तैयार किए गए हैं जिन पर बहस के बाद मतदान होगा. पांच प्रस्ताव विरोध में और एक समर्थन में रखा गया है मगर उसमें नागरिकता संशोधन कानून के विरोध के दौरान पुलिस हिंसा पर चिन्ता जताई गई है. यह बहस 29 और 30 जनवरी को होगी और मतदान होगा. दो महीने बाद प्रधानमंत्री मोदी ब्रसेल्स की यात्रा कर रहे हैं जहां पर ईयू की संसद है. यूरोपीयन संघ की संसद में 751 सांसद हैं, 559 सांसद हैं, जिन्होंने मिल कर 5 प्रस्ताव पेश किए हैं. नागरिकता संशोधन कानून के समर्थन में 66 सांसदों के ग्रुप ने प्रस्ताव पेश किया है. 182 सांसदों का सबसे बड़ा समूह यूरोपीयन पीपल्स पाटी ग्रुप के नाम से जाना जाता है.

नागरिकता संशोधन कानून भेदभाव करता है. अन्य धार्मिक समूहों को जो अधिकार मिले हैं, उन अधिकारों से मुसलमानों को बाहर करता है. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के प्रवक्ता ने कहा है कि नागरिकता संशोधन कानून अपनी प्रकृति में ही भेदभाव करता है. यह कानून के समान सभी के बराबर होने की भारत की प्रतिबद्धता को कमज़ोर करता है. एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी कहा है कि सीएए के तहत जो दूसरे सताए हुए अल्पसंख्यक हैं उन्हें शामिल नहीं किया गया है. बांग्लादेश के बिहारी मुसलमान, पाकिस्तान के अहमदिया और हज़ारा और बर्मा के रोहिंग्या को शामिल नहीं किया गया है.

पिपल्स पार्टी ग्रुप ने अपने प्रस्ताव में कहा है कि नागरिकता संशोधन कानून से भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि पर नकारात्मक असर पड़ेगा. उसकी आतंरिक स्थिरता भी प्रभावित होगी. अच्छी बात है कि भारत ने मुस्लिम बहुल पड़ोस में सताए गए धार्मिक समूहों को नागरिकता देने की पहली की है लेकिन खास तरह के धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए अलग तरह का कानून और दूसरों के लिए अलग तरह के कानून का असर अच्छा नहीं होगा. इसे भेदभावकारी ही माना जाएगा.

इस कानून के विरोध मे हुए प्रदर्शनों पर पुलिस ने जो बर्बरता की है, उसकी निंदा की गई है. कानून लागू करने वाली एजेंसियों से अपील की गई है कि वे सामाजिक दायित्व निभाएं और शांतिपूर्ण प्रदर्शनों की इजाज़त दें. भारत के सुप्रीम कोर्ट से उम्मीद जताई गई है कि कोर्ट इस मामले में अधिक स्पष्टता लाएगा.

154 सांसदों का एक दूसरा ग्रुप है. उसके प्रस्ताव में भी नागरिकता संशोधन कानून को लेकर विस्तार से कहा गया है. इस ग्रुप का नाम है Group of the Progressive Alliance of Socialists and Democrats, के प्रस्ताव में हुआ है. इस समूह के प्रस्ताव में कहा गया है कि इस कानून से दुनिया में सबसे बड़ा राज्यविहीन संकट पैदा हो जाएगा.

नागरिकता कानून भारत के संविधान के आर्टिकल 14 के अनुकूल नहीं है जो धर्म, जाति, लिंग और जन्म के स्थान के आधार पर किसी से भेदभाव न होने की गारंटी देता है. भारत ने इस कानून को लाकर मानवाधिकार कानून के प्रति अपनी अंतरराष्ट्रीय जवाबदेही को भी कम किया है.

इन प्रस्तावों में जेएनयू की भी चर्चा है. यूपी में 19 दिसंबर के प्रदर्शन के दौरान मारे गए लोगों और पुलिस की हिंसा का भी ज़िक्र किया गया है. 20 जनवरी से ही ये प्रस्ताव लिस्ट हो रहे हैं. 108 सीटों वाले उदारवादी सांसदों के प्रस्ताव में कश्मीर की चर्चा की गई है. वहां सेना की तैनाती, इंटरनेट बंद करने, चुने हुए नेताओं के साथ हज़ारों लोगों को जेल में बंद करने का भी ज़िक्र किया गया है. इंडियन एक्सप्रेस में विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने कहा है कि यह भारत का आतंरिक मामला है. उम्मीद है कि यूरोपीयन संसद ऐसा कुछ नहीं करेगी जिससे लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार की स्वायतत्ता को चोट पहुंचे. हाल ही में 15 देशों के राजनयिकों को श्रीनगर ले जाया गया था. अमरीका और उरुग्वे के थे. इस यात्रा में यूरोपीयन संघ के राजनयिकों को भी जाना था मगर जाने से इंकार कर दिया गया. उनका कहना था कि ये गाइडेड टुअर है. अगर ज़रूरत होगी तो बाद में जाकर लोगों से मिलेंगे.

भारत सरकार भले ही इसे आतंरिक मामला बता कर नज़रअंदाज़ कर रही है लेकिन नागरिकता संशोधन कानून का विरोध दुनिया के कई शहरों में पहुंच गया है. शहर शहर मार्च हो रहे हैं. समर्थन में भी मार्च होने लगे हैं. अमरीका के कैलिफोर्निया में भारतीय कॉन्सुलेट के बाहर समर्थक और विरोधी दोनों आमने सामने हो गए और जम कर नारेबाज़ी हुई. अमरीका की राजधानी वाशिंगटन डीसी में भी भारतीय दूतावास के सामने इस कानून के विरोध मार्च लेकर गए. अटलांटा में टेलिविज़न नेटवर्क सीएएन बिल्डिंग के बाहर प्रदर्शन हुआ है. न्यूयॉर्क में भी बड़ी रैली निकली है. 26 जनवरी को अमरीका के 30 शहरों में इस कानून के विरोध में मार्च निकला है. इन सभी में इस कानून को विभाजनकारी बताया गया है और वापस लेने की मांग की गई है. अमरीका के अलावा कनाडा के मांट्रियाल, टोरांटो में भी विरोध में रैली हुई है. ये सारे वीडियो लोगों ने वहां से हमें भेजे हैं. स्कॉटलैंड, ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न, जर्मनी के बर्लिन, पोलैंड और स्विट्ज़लैंड के बर्न में भी प्रदर्शन हुआ है. ब्रिटेन के कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के छात्रों ने भी विरोध में प्रदर्शन किया है. इन सभाओं में भारतीय मूल के लोग तो हैं ही, अमरीकी नागरिक और नेताओं ने भी संबोधित किया है.

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शाहीन बाग जैसा प्रदर्शन अब सिर्फ दिल्ली में नहीं हो रहा है. दिल्ली में भी कई जगहों पर हो रहा है. दिल्ली से बाहर कई शहरों में शाहीन बाग की तर्ज पर धरना शुरू हो गया है. क्या शाहीन बाग दिल्ली का चुनावी मुद्दा होने जा रहा है? बीजेपी ने आज इसे बड़ा बनाने का प्रयास किया. शाहीन बाग को तरह तरह से चित्रित किया जा रहा है. लेकिन चुनावी मुद्दा दिल्ली के शाहीन बाग को बनाया जा रहा है. दिल्ली चुनाव के लिए मतदान में 10 दिन बाकी हैं जबकि दिल्ली के शाहीन बाग का प्रदर्शन 45 दिनों से चल रहा है. अब जाकर बीजेपी को लगा है कि इसे मुद्दा बनाया जाना चाहिए.