यूपी चुनाव : सौगंध राम की खाते हैं से गंगा की सौगंध तक...

यूपी चुनाव : सौगंध राम की खाते हैं से गंगा की सौगंध तक...

चुनाव प्रचार के दौरान अखिलेश यादव...

नई दिल्ली:

यूपी चुनाव अपने लेवल पर आ गया है. भाषा के मामले में हमारे नेता उसी क्लास से पढ़कर आए हैं, जिसका मास्टर कभी क्लास लेता ही नहीं था. हर चुनाव में राजनीति में भाषा के गिरते स्तर पर बात होती है. उसके अगले चुनाव में भाषा का स्तर और गिर जाता है. मगर यूपी चुनाव का इतना भी लेवल नहीं गिरा है. सीएनएन और बीबीसी ठीक से कवर नहीं कर रहे हैं तो क्या हुआ, ट्रंप और पुतिन की नज़र है कि यूपी में इस बार जाटव किसे वोट देंगे और जाट किसे. बुंदेलखंड के बबीना में उमा भारती ने कहा है कि ट्रंप और पुतिन भी देख रहे हैं कि अगर भारत को महान शक्ति बनना है तो यूपी को पिछड़ा नहीं रहना चाहिए. उमा भारती जी को किसने ये बात बताई, इस सवाल का कोई मतलब नहीं है. मुझे यकीन है कि ट्रंप और पुतिन रात अंधेरे बबीना आए होंगे. सर्वे करने! व्हाइट हाउस में छड़ी लेकर दुनिया के नक्शे में बबीना खोज रहे होंगे.

वाकई ट्रंप ने अगर यूपी चुनाव में भाषा का स्तर देख लिया तो उनके और नीचे आने की उम्मीद की जा सकती है. ट्रंप का असर दुनिया में हो रहा है, कहीं उन पर यूपी का असर न हो जाए. वो क़ब्रिस्तान, श्मशान, होली, दीवाली न बड़बड़ाने लगे. निगेटिव दलित मैन, बहनजी संपत्ति पार्टी न बोलने लग जाएं. सुपर पावर, ग्रेट पावर, महाशक्ति, विश्व शक्ति इन सबसे बचिए. 15 प्रतिशत ग़रीबी है अमेरिका में. अमेरिका में जिनती टैक्स चोरी होती है, उतनी भारत में होने लगे तो ग़रीबों को महाशक्ति बनने पर सिर्फ लेख लिखने को ही मिलेगा. ये भी तो हो सकता है कि बबीना वाले यूपी चुनाव का कवरेज़ देखना छोड़कर, ट्रंप और पुतिन के कारनामे के बारे में जानने लग जाएं.

दोस्तों, गंगा फिर आ गई है. जब भी चुनाव में गंगा आती है, क़समों, सौगंधों का ढेर लगा देती है. 2014 में तो मां गंगा ने बुला लिया था, जिनको मां गंगा ने बुलाया था, वो कहने लगे कि यूपी ने गोद लिया है. जब मां ने बुलाया था तो गोद किसने ले लिया. क्या पता यूपी में बच्चा चोरी की घटनाएं भी होती हों. मैंने राष्ट्रीय अपराध शाखा ब्यूरों के आंकड़े नहीं देखे हैं. बहरहाल, जिन्हें गंगा मां ने बुलाया था, उनसे अखिलेश यादव कह रहे हैं कि गंगा जल लेकर क़सम खाएं कि बनारस में 24 घंटे बिजली नहीं आती है. गंगा जल को लेकर यह भी तो क़सम खाई जा सकती है कि गंगा जल कितना साफ हुआ. अखिलेश ने इस पर चुनौती नहीं दी, मोदी जी ने इस पर कुछ नहीं कहा. गंगा जल प्रकाश झा की फिल्म थी मगर गंगा जल उनकी नहीं है, इसलिए प्रकाश झा घर बैठें और यूपी में न कूदें. ये बिहार नहीं है.

काशी में क्योटो कितना पहुंचा है, ये तो काशी वाले बता सकते हैं. हम तो गए ही नहीं बनारस. क्योटो कहां हैं. बबीना कहां है. बहुत कंफ्यूज़न है. क्योटो क्यों नहीं है इस चुनाव में. कहीं तो बोर्ड लगा होगा कि जापान का यह शहर काशी वालों का काशी में स्वागत करता है. कम से कम काशी वाले काशी के लिए न सही,क्योटो की क़सम तो खा सकते हैं. बात गंगा के सौगंध की हो रही थी. तो जनाब क़समों में दो क़समें श्रेष्ठ बताई गई हैं. एक विद्या क़सम, इसके टूटने से सातों विद्या नाश हो जाती है. सातों विद्या कौन-कौन सी हैं, मुझे नहीं मालूम. गंगा क़सम भी कम सीरियस नहीं है. इसलिए खाने खिलाने वाले जानते हैं कि वे क्या कर रहे हैं.

अख़िलेश की चुनौती पर मोदी जी ने एक रास्ता निकाल लिया. ऊंचाहार में प्रधानमंत्री ने गंगा की क़सम ख़ुद नहीं खाई. लोगों से खिलवा दी. अब अगर बात झूठ निकलेगी तो लोगों को क़सम तोड़ने की रस्म उठानी पड़ेगी. पर एक बात है कि मोदी जी गंगा क़सम से डरते हैं. वर्ना चुनौती तो अखिलेश ने उन्हें दी थी, लोगों से क्यों क़सम खिलवाई. प्रधानमंत्री ने कहा कि  “हम मानते हैं कि अगर गांव का ग़रीब का किसान गंगा की तरफ़ हाथ करके क़सम खाता है तो सच ही बोलता है, बताओ, जिसको काशी ने चुनकर भेजा है, हमें उस पर कितना भरोसा करना चाहिए. “

लो कल्लो बात. क़सम का लोड भी जनता के सर. अखिलेश यादव ने कहा था कि “ मोदी को पता नहीं है. वह सच बोलें. वाराणसी के सबसे बुज़ुर्ग विधायक हमारे दादा श्यामदेव चौधरी जी के कहने पर हमने काशी में 24 घंटे बिजली दी थी. हम प्रधानमंत्री से कहेंगे कि आप गंगा मैया के बेटे हैं तो उसकी क़सम खाएं और ख़ुद से पूछें कि सपा वाराणसी में 24 घंटे बिजली दे रही है या नहीं.“  पर गंगा के बेटे ने ख़ुद क़सम क्यों नहीं खाई यह सवाल बाहुबली फिल्म के सवाल जैसा है कि कटप्पा को किसने मारा. भाई, गंगा के बेटे ने कसम नहीं खाई तो नहीं खाई. ऊंचाहार के ग़रीब किसानों ने खा ली. लेकिन सवाल था कि बिजली आती है या नहीं, मोदी ने क़सम इस पर खिलवा दी कि जिसे काशी ने चुनकर भेजा है, उस पर भरोसा है या नहीं. सवाल बदलकर, किसी और से क़सम की कला नई है. सौगंध राम की खाते हैं वाली बात पुरानी हो गई है. गंगा की सौगंध नई है.

उम्मीद है अब अखिलेश यादव गंगा जल लेकर पूछेंगे कि ये साफ हुआ है. मोदी जी भी लोगों से कहेंगे कि आप ही गंगा जल लेकर क़सम खाइये कि साफ़ हुआ है या नहीं. यानी बात ग़लत निकली तो अंजाम क़सम खाने वाला भुगतेगा. हम लोग गांव में यही करते थे. विद्या क़सम खाने से डरते थे तो पास के खजूर के पेड़ की क़सम खा लेते थे. मरेगा तो ये पेड़ मरेगा क्योंकि हमें पता था कि हम सही नहीं हैं तो सही क़सम क्यों खाएं. कम से कम ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल को डेटा लेकर आ जाना चाहिए कि प्रधानमंत्री जी खा लीजिए क़सम. अखिलेश यादव की बात झूठी है. पीयूष गोयल के मंत्रालय की वेबसाइट garv.gov.in पर है कि यूपी में 31.1.2017 तक सिर्फ 12 गांव ही बचे हैं जहां बिजली नहीं पहुंची है. 2013 तक ही यूपी के 97 हज़ार से अधिक गांवों में से 87 हज़ार से अधिक गांवों में बिजली पहुंच गई थी. ये आंकड़े बताते हैं. हमारे लिए कंकड़ पत्थर हैं. बेहतर यूपी वाले ही बता सकते हैं कि वे अपने अपने गांव में कब से बिजली देख रहे हैं.

बहरहाल, चलते चलते, क़सम पर दो गाने बताता हूं. उपकार फिल्म के गाने के बोल हैं, क़समें वादे, प्यार वफा सब,वादे हैं वादों का क्या.... अनिल कपूर की एक फिल्म आई थी, क़सम. इसके एक गाने के बोल हैं, क़सम क्या होती है, क़सम वो होती है, जो तोड़ी न जाए... क़सम एक गीता है, क़सम एक सीता है, राजमहल का छोड़ के सुख जो अंगारों पर सोती है.... यूपी चुनाव है भाई. राजमहल पाने के लिए सच बोलने का सुख छोड़ा जा रहा है. तीन चरण ही बीते हैं, यूपी में 109 करोड़ ज़ब्त हुए हैं. 2012 की तुलना में तीन गुना ज्यास्ती हो गया है. काला धन तीन गुना? ना ना. वो तो मिट गया है. एक और गाना बताऊं. रिलैक्स हो जाएंगे. क़समें वादे निभाएंगे हम, मिलते रहेंगे जनम-जनम. राजनीति और काला धन का रिश्ता बना रहे! आमीन.

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