
दत्तात्रेय जयंती (Dattatreya Jayanti) को दत्त जयंती (Datta Jayanti 2019) के नाम से भी जाना जाता है. यह हिंदुओं का एक त्योहार है, जिसे भगवान दत्तात्रेय के जन्म के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. भगवान दत्तात्रेय को ब्रह्मा, विष्णु और शिव का अवतार मनाया जाता है. दत्तात्रेय, अत्रि और अनुसूया के पुत्र थे और उनका जन्म प्रदोष काल में हुआ था. भगवाना दत्तात्रेय को ''स्मृतिमात्रानुगन्ता'' और ''स्मर्तृगामी'' भी कहा जाता है क्योंकि वह स्मरणमात्र करने पर ही अपने भक्तों के पास पहुंच जाते हैं. माना जाता है कि भगवान दत्तात्रेय ने 24 गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की थी.
कब मनाते हैं दत्तात्रेय जयंती?
दत्तात्रेय जंयती हिंदू पंचाग के अनुसार मार्गशीर्ष (अग्रहायण) महीने की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है. ऐसा माना जाता है कि इसी दिन सती अनुसूया के पुत्र दत्तात्रेय का जन्म प्रदोष काल में हुआ था. साल 2019 में दत्तात्रेय जयंती बुधवार 11 दिसंबर को मनाई जा रही है. बता दें, भगवान दत्तात्रेय को समर्पित मंदिर पूरे भारत में हैं लेकिन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण पूजा स्थल कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और गुजरात में स्थित हैं.
दत्तात्रेय जयंती की तिथि और शुभ मुहूर्त
दत्तात्रेय जयंती की तिथि: 11 दिसंबर 2019
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 11 दिसंबर 2019 को सुबह 10 बजकर 59 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 12 दिसंबर 2019 को सुबह 10 बजकर 42 मिनट तक
कैसे मनाएं दत्तात्रेय जयंती?
दत्तात्रेय जयंती पर श्रद्धालु सुबह-सुबह स्नान करतें हैं और उपवास रखते हैं. भगवान दत्तात्रेय की पूजा फूल, धूप, दीप और कपूर से की जाती है. इस दिन भगवान के प्रवचन वाली अवधूत गीता और जीवनमुक्ता गीता जैसी पवित्र पुस्तकें पढ़ी जाती हैं. इस अवसर पर महाराष्ट्र में कई स्थानों पर मेलों का भी आयोजन किया जाता है.
भगवान दत्तात्रेय की जन्म कथा
पौराणिक कथा के मुताबिक, एक बार तीनों देवियों (सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती जी) को अपने पतिव्रता धर्म पर अभिमान हो गया. तब भगवान विष्णु ने एक लीला रची. इसके बाद नारद मुनी तीनों लोगों का भ्रमण करते हुए देवी सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती जी के पास पहुंचे और अनुसूया के पतिव्रता धर्म की प्रशंसा करने लगे. इस पर तीनों देवियों ने अपने पतियों से अनुसूया के पतिव्रता धर्म की परीक्षा लेने की हठ की. इसके बाद त्रिदेव, ब्राह्मण का वेश धारण कर के महर्षि अत्रि के आश्रम पहुंचे, उस वक्त महर्षि अत्रि अपने घर पर नहीं थे. तीनों ब्राह्मणों को देखर अनुसूया उनके पास आईं और उनका आदर-सत्कार करने के लिए आगे बढ़ी लेकिन तब ब्राह्मणों ने कहा कि जब तक वो उनको अपनी गोद में बैठाकर भोजन नहीं कराएंगी, तक तक वो उनका आतिथ्य स्वीकार नहीं करेंगे.
ब्राह्मणों की इस शर्त को सुन कर अनसूया काफी चिंतित हो गईं और फिर वह अपने तपोबल से ब्राह्मणों की सत्यता जान गईं. भगवान विष्णु और अपने पति अत्रि को याद करने के बाद अनुसूया ने कहा कि यदि उनका पतिव्रता धर्म सत्य है तो तीनों ब्राह्मण 6 महीने के शिशु बन जाएं. अनुसूया ने अपने तपोबल से त्रिदेवों को शिशु बना दिया और फिर अपनी गोद में लेकर दुग्धपान कराया और तीनों को पालने में रख दिया.
उधर तीनों देवियां अपने पतियों के वापस न आने से चिंतित हो गईं. तब नारद जी उनके पास पहुंचे और सारा घटनाक्रम बताया. इसके पश्चात तीनों देवियों को अपने किए पर बहुत पछतावा हुआ. इसके बाद तीनों देवियों ने अनुसूया से माफी मांगी और अपने पतियों को मूल स्वरूप में लाने का आग्रह किया.
तब अनुसूया, अपने तपोबल से त्रिदेवों को उनके पूर्व स्वरूप में ले आईं. इसके बाद त्रिदेव ने उनसे वरदान मांगने को कहा और तब अनुसूया ने उन तीनों देवों को पुत्र स्वरूप में पाने के की मांग रखी. इसके बाद माता अनुसूया के गर्भ से दत्तात्रेय ने जन्म लिया और इसलिए कहा जाता है कि भगवान दत्तात्रेय की पूजा करने से तीनों देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं