Movie Review: अच्‍छे विषय पर भी धीमी है अक्षय कुमार की 'टॉयलेट एक प्रेम कथा'

फिल्‍म के पहले हिस्से में केशव और जया की प्रेम कहानी काफी वक्‍त ले लेती है, उसके अलावा थोड़ा हास्य डालने के लिए अक्षय और दिव्येन्दु के कुछ सीन हैं जो फिल्‍म की लम्बाई बढ़ाते हैं.

Movie Review: अच्‍छे विषय पर भी धीमी है अक्षय कुमार की 'टॉयलेट एक प्रेम कथा'

'टॉयलेट एक प्रेम कथा' का सीन.

खास बातें

  • फिल्‍म की परेशानी है कि यह काफी लंबी हो गई है
  • ब्रज भाषा बोलते नजर आ रहे हैं अक्षय और भूमि
  • हमारी तरफ से इस फिल्‍म को मिलते हैं 2.5 स्‍टार
नई दिल्‍ली:

'टॉयलेट एक प्रेम कथा' स्वच्छ भारत जैसे संदेश को बल देती है, फिल्‍म कि कहानी में केशव ( अक्षय कुमार) को जाया (भूमि  पेडणेकर) से प्‍यार हो जाता है जो की नयी सोच की पढ़ी लिखी लड़की है, लेकिन जब जया केशव से शादी करके घर आती है तो उसे पता लगता है की केशव के घर में शौचालय नहीं है. बस यहीं से शुरू होती है शौचालय के लिए जया और केशव की लड़ाईं जिसके चलते जया केशव को छोड़ कर चली जाती है. इसके बाद केशव अकेले ही यह लड़ाई लड़ता है और कोशिश करता है अपनी पत्‍नी को वापिस लाने की. इस फिल्‍म में अक्षय और भूमि पेडणेकर के अलावा दिव्येन्दु शर्मा, सुधीर पाण्डेय और अनुपम खेर मुख्‍य भूमिका में नजर आएंगे.

 
toilet ek prem katha

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करीब दो साल पहले एक अखबार में यह खबर आयी थी कि घर में शौचालय न होने की वजह से एक पत्नी ने अपने पति से तलाक लेने की ठान ली और उसी से प्रेरित है 'टॉयलेट एक प्रेम कथा'. लेकिन यहां असली परेशानी यह है कि जब इसे फिल्‍म में तब्दील किया गया है तो यह काफी लम्बी हो गयी है. यानी फिल्‍म खिंचने लगी. फिल्‍म के पहले हिस्से में केशव और जया की प्रेम कहानी काफी वक्‍त ले लेती है, उसके अलावा थोड़ा हास्य डालने के लिए अक्षय और दिव्येन्दु के कुछ सीन हैं जो फिल्‍म की लम्बाई बढ़ाते हैं.

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इस फिल्‍म में ब्रज भाषा का इस्तेमाल किया है पर कहीं-कहीं फिल्‍म के किरदार भाषा की पटरी से उतर जाते हैं. फिल्‍म इंटरवेल के बाद भी स्‍पीड नहीं पकड़ती है और यहां भी आप कुर्सी पर बैठकर थोड़ा बेचैन होने लगते है. मुझे लगता है इस फिल्‍म की लम्बाई थोड़ी कम होती और स्क्रिप्ट थोड़ी कसी होती तो ये एक बेहतरीन फिल्‍म साबित हो सकती थी.
 
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खू‍बियों की बात करें तो फिल्‍म का विषय अपने आप में अच्छा है और लेखक और निर्देशक ने फिल्‍म में कई ऐसे पहलू डाले हैं जो दर्शकों के लिए नए होंगे मसलन सरकार अगर शौचालय बनाए तो कितने दफ्तारों से फाइल गुजरती है, पूरी प्रक्रिया में कितना वक्‍त लगता है, शौचालय न बनाने के पीछे धार्मिक कारण वगैरह-वगैरह और वह भी हास्य के साथ. अक्षय, दिव्येन्दु और भूमि का अभिनय भी अच्छा है पर आप पर छाप छोड़ते हैं सुधीर पाण्डेय, फिल्‍म के गाने और संगीत भी ठीक है और मेरी तरफ से इस फिल्‍म को मिलते हैं 2.5 स्‍टार.

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