खतरनाक निपाह से बचने के कुछ सरल उपाय
क्या होते हैं इंसेफलाइटिस के लक्षण (Encephalitis: Types, Symptoms)
- ज्यादातर मामलों में हल्का फ्लू जैसे लक्षण होते हैं.
- ज्यादातर मामलों में हल्का फ्लू जैसे लक्षण होते हैं.
- शरीर का तापमान 100.4 या इससे ज्यादा हो भी सकता है.
- इस रोग में सर दर्द, मिर्गी का दौरा.
- गर्दन में दर्द.
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मस्तिष्क रोग में जरूरी जांच (Encephalitis Treatment, Diagnosis & Contagious Period)
एंसिफलाइटिस के लिए डॉक्टर एमआरआ या सीटी स्कैन करा सकते हैं. इसके अलावा खून या पेशाब की जांच से भी रोग का पता लगाया जा सकता है. प्राइमरी एंसिफलाइटिस के मामलों में लंबर पंक्चर यानी रीढ़ की हड्डी से द्रव्य का सेंपल लेकर जांच की जाती है. इसके अलावा दिमाग की मस्तिष्क की बायोप्सी भी की जा सकती है.
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क्यों कहा जाता है चमकी बुखार
इस बारे में भी हमने डॉक्टर स्वाति भारद्वाज से बातचीत की तो पता चला कि चमकी बुखार या एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम (एसईएस) के में बेहोशी, ऐंठन (Convulsion) जिसे चमकी भी कहा जाता है के लक्षण होते हैं. इस संक्रमण से ग्रस्त रोगी का शरीर अचानक ही सख्त हो जाता है और मस्तिष्क व शरीर में ऐठन शुरू हो जाती है. आम भाषा में इसी ऐठन को चमकी कहा जाता है. लेकिन ऐठन या चमकी होने का मतलब यह नहीं कि चमकी बुखार ही हुआ हो. यह टिटनेस जैसे रोगों में भी होती है.
क्या लीची खाने से होता है यह रोग (Is Lychee, a probable reason for acute encephalitis syndrome?)
वहीं रवीश कुमार के ब्लॉग (मुजफ्फरपुर में 100 से ज़्यादा बच्चों की मौत का ज़िम्मेदार कौन?) से ली जानकारी के अनुसार ''जेकब जॉन और अरुण शाह का पेपर बताता है कि मुज़फ्फरपुर में होने वाली मौत का संबंध लीची से है. ग़रीबी से है और कुपोषण से है. इन्होंने 2012 में रिकॉर्ड देखा तो पता चला कि ज्यादातर बच्चों को सुबह के 6 से 7 बजे के बीच दौरे पड़ते हैं. दौरे पड़ने का मतलब साधारण ज़ुबान में यह हुआ कि बच्चों का दिमाग सुन्न होने लगा. होता यह है कि लीची सुबह 4 बजे तोड़ी जाती है. तोड़ने वाले गरीब मज़दूर होते हैं. रात को कम खाया होता है. खाली पेट मां बाप और बच्चे पहुंच जाते हैं और लीची तोड़ते वक्त खा लेते हैं. जब कमज़ोर शरीर वाला और खाली पेट वाला बच्चा लीची खाता है तो वह एक्यूट एंसिफलाइटिस की चपेट में आ जाता है. वैसे इसे एंसीफेलोपैथी बोलते हैं. दिमागी बीमारी के लिए इस शब्द का इस्तेमाल होता है. ध्यान रखिए कि फलाइटिस और पैथी में अंतर होता है.
क्या है बचाव का तरीका
इस रोग के लिए इलाज असमंजस बना हुआ है. एक ओर जहां बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने ट्वीट कर कहा कि इस बीमारी का इलाज नहीं है. वहीं हम आपको बता दें कि प्रिवेंशन यानी रोकथाम भी इलाज माना जाता है. तो रोकथाम ही बचाव है. डॉक्टर स्वाति भारद्वाज सलाह देती हैं कि खुद को तनाव से दूर रख कर, सही आहार लेकर और शॉक से दूर रहकर इस रोग के खतरे को कम किया जा सकता है. वहीं, लीची के संबंध में भी पूरी बात को समझ लेना जरूरी है. लीची में एक ऐसा तत्व होता है जो कुपोषण वाले खाली शरीर में ग्लूकोज का बनना बंद कर देता है. ग्लूकोज बंद होते ही दिमाग काम करना बंद कर देता है और तेज़ी से ब्रेन के बाद लीवर पर असर होता है. बच्चा मर जाता है. रिसर्च में यह सुझाया गया है कि अगर बच्चे को तुरंत ही ग्लूकोज दिया जाए तो उसे बचाया जा सकता है. ग्लूकोज़ देने से शरीर में इंसूलिन बनने लगता है और वह ब्रेन यानी दिमाग में ग्लूकोज़ बनाने वाले तत्वों को सक्रिय कर देता है. यह बात पब्लिक में है. यही लीची जब स्वस्थ्य शरीर का कोई भी खाएगा तो उसे कुछ न ही होगा. हम आप खाएंगे तो कुछ नहीं होगा. लेकिन कुपोषण का शिकार बच्चा खाएगा तो उसके लिए घातक हो सकता है.
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