बिहार चुनाव: उपेन्द्र कुशवाहा भी छोड़ेंगे महागठबंधन? जानें- तेजस्वी यादव क्यों नहीं दे रहे भाव? क्या है नया प्लान?

कुशवाहा चाहते थे कि महागठबंधन उन्हें नीतीश के मुकाबले सीएम कैंडिडेट प्रोजेक्ट करे लेकिन राजद सीएम उम्मीदवार का चेहरा तो दूर कुशवाहा की पार्टी को 10 -12 से ज्यादा सीट देने को भी तैयार नहीं है.

बिहार चुनाव: उपेन्द्र कुशवाहा भी छोड़ेंगे महागठबंधन? जानें- तेजस्वी यादव क्यों नहीं दे रहे भाव? क्या है नया प्लान?

जीतनराम मांझी के बाद अब उपेंद्र कुशवाहा महागठबंधन से अलग हो सकते हैं.

खास बातें

  • उपेंद्र कुशवाहा ने दिए महागठबंधन छोड़ने के संकेत, हो सकते है NDA में वापस
  • बोले- नीतीश कुमार से लड़ने की क्षमता तेजस्वी में नहीं
  • लोकसभा चुनाव के बाद से ही तेजस्वी ने भाव देना कम कर दिया था
नई दिल्ली:

बिहार विधान सभा चुनाव (Bihar Assembly Election) की तारीखों का एलान हो चुका है. उधर महागठबंधन में एक नई दरार पड़ती दिख रही है. जीतनराम मांझी के बाद अब उपेंद्र कुशवाहा महागठबंधन से अलग हो सकते हैं. राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के अध्यक्ष कुशवाहा ने इसके संकेत दिए हैं कि वो सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे. गुरुवार (24 सितंबर) को पार्टी पदाधिकारियों के साथ बैठक में कुशवाहा ने इसके संकेत दिए. साथ ही यह खुले तौर पर कहा कि नीतीश कुमार (Nitish Kumar) से मुकाबला करने की क्षमता तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) में नहीं है.

दरअसल, कुशवाहा चाहते थे कि महागठबंधन उन्हें नीतीश के मुकाबले सीएम कैंडिडेट प्रोजेक्ट करे लेकिन राजद सीएम उम्मीदवार का चेहरा तो दूर कुशवाहा की पार्टी को 10 -12 से ज्यादा सीट देने को भी तैयार नहीं है. राजद ने स्पष्ट कर दिया है कि तेजस्वी यादव ही उनके नेता हैं.

अचानक नहीं बदला तेजस्वी का रुख

ऐसा नहीं है कि राजद या तेजस्वी के रुख में कुशवाहा के प्रति अचानक बदलाव आया है. माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव 2019 के बाद से ही तेजस्वी ने कुशवाहा को भाव देना कम कर दिया था क्योंकि आम चुनावं में उपेंद्र कुशवाहा अपने समाज (कोयरी-कुशवाहा जाति) का वोट यूपीए को ट्रांसफर कराने में नाकाम रहे थे.  राज्य में 8 फीसदी कोयरी-कुशवाहा का वोट शेयर है लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में यूपीए को मात्र 23.22 फीसदी (राजद को 15.36 और कांग्रेस को 7.86 फीसदी) वोट ही मिल सके थे.

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कोयरी-कुशवाहा का 8% है वोट शेयर

माना जाता है कि इस समाज के लोगों ने एनडीए को वोट दिया. 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को 23.58 फीसदी और जेडीयू को 21.81 फीसदी वोट मिले थे. लोजपा को 7.86 फीसदी वोट मिले थे. राज्य में पिछड़ा और अत्यंत पिछड़ा वर्ग समूह की आबादी 51 फीसदी के करीब है. राजद माय समीकरण (मुस्लिम 17 फीसदी और यादव 14 फीसदी) के अपने पारंपरिक वोट के सहारे राजनीति करता रहा है. उसे उम्मीद थी कि कोयरी-कुशवाहा के आठ फीसदी वोट शेयर मिलने से अधिक सीटें जीती जा सकती हैं, मगर ऐसा नहीं हुआ. ऐसा ही जीतनराम मांझी के साथ भी हुआ.

उपेंद्र कुशवाहा के पास दो विकल्प?

महागठबंधन से अलग होने की सूरत में कुशवाहा के पास दो विकल्प बचते हैं. पहला यह कि वो एनडीए में वापसी करें और दूसरा राज्य में तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट को हवा दें और थर्ड फ्रंट बनाने में अहम भूमिका निभाएं. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक उपेंद्र कुशवाहा की अंदरखाने नीतीश कुमार की जेडीयू से बातचीत चल रही है. उन्हें वाल्मीकि नगर से चुनाव लड़ने का प्रस्ताव भी मिल चुका है. इस सीट से जेडीयू विधायक बैद्यनाथ महतो का निधन हो चुका है और सीट खाली पड़ी है. इसके अलावा रालोसपा को जेडीयू की तरफ से पांच से सात सीटों की भी पेशकश की गई है. दिसंबर 2018 में कुशवाहा एनडीए से अलग हो गए थे.

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मुकेश साहनी साथ नहीं

दूसरी संभावना है कि उपेंद्र कुशवाहा तीसरा मोर्चा बनाएं. तेजस्वी समझते हैं कि तीसरा मोर्चा बनाने की सूरत में उपेंद्र कुशवाहा एनडीए के ही वोट बैंक में सेंध लगाएंगे. ऐसे में सभी सीटों पर उनके उम्मीदवारों की जीत आसान हो जाएगी. कुशवाहा थर्ड फ्रंट के लिए मुकेश साहनी को भी साथ लाना चाह रहे लेकिन साहनी अभी भी तेजस्वी के वफादार साथी की भूमिका में नजर आ रहे हैं. 

नई सोशल इंजीनियरिंग पढ़ रहे तेजस्वी?

तेजस्वी माय समीकरण के 31 फीसदी वोट के साथ-साथ दलितों के 10 फीसदी वोट बैंक पर उम्मीद लगाए हुए हैं. इस खातिर उन्होंने पूर्व स्पीकर उदय नारायण चौधरी और पूर्व मंत्री श्याम रजक समेत कई दलित नेताओं को पार्टी में एंट्री दी है. इसके अलावा वो बीजेपी के वोट बैंक (सवर्ण जातियों के 15 फीसदी वोट) में सोशल इंजीनियरिंग के जरिए सेंधमारी करने की फिराक में जुटे हैं. वो अगड़ी जाति के युवा उम्मीदवारों को भी टिकट देने की रणनीति बना रहे हैं. समाजवादी पार्टी ने तेजस्वी को मजबूती देने के लिए राज्य में कैंडिडेट नहीं उतारने का एलान किया है. सपा राजद को सपोर्ट करेगी. पिछले विधानसभा चुनाव में सपा को एक फीसदी वोट मिले थे.

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