दाभोल में बिजलीघर बनाने में हुए भ्रष्टाचार का मामला सुप्रीम कोर्ट में फिर खुलेगा

दाभोल में बिजलीघर बनाने के लिए एनरॉन को इजाज़त देने के सिलसिले में राजनीतिक भ्रष्टाचार का आरोप

दाभोल में बिजलीघर बनाने में हुए भ्रष्टाचार का मामला सुप्रीम कोर्ट में फिर खुलेगा

सुप्रीम कोर्ट.

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट में दाभोल में बिजलीघर बनाने में हुए भ्रष्टाचार का मामला फिर से खुलेगा. सुप्रीम कोर्ट ने 2001 से यह मामला पड़ा है.

2001 में सुप्रीम कोर्ट पहुंची याचिका के मुताबिक दाभोल में बिजलीघर बनाने के लिए एनरॉन को इजाज़त देने के सिलसिले में राजनीतिक भ्रष्टाचार का आरोप है. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने महाराष्ट्र सरकार की अर्ज़ी खारिज कर दी जिसमें इस मामले को बंद करने की अपील की गई थी.

कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को 13 मार्च तक अपनी इस दलील का तार्किक आधार बताने का आदेश दिया है. कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से पूछा कि गोडबोले समिति की सिफारिशों पर अब तक क्या कार्रवाई हुई?

कोर्ट ने कहा कि माधव गोडबोले की अगुआई वाली जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में इस मामले में राजनीतिज्ञों और नौकरशाहों के खिलाफ मिलीभगत से भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं. इन आरोपों पर चल रही जांच का नतीजे तक पहुंचना ज़रूरी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो  राजनीतिक भ्रष्टाचार के मुद्दों को तार्किक अंत तक ले जाने के इच्छुक हैं.
 
महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट  को ऊर्जा समीक्षा समिति की सिफारिशों के बाद उठाए गए कदमों की जानकारी दी. समिति ने पूरे एनरॉन पावर प्रोजेक्ट सौदे की न्यायिक जांच की सिफारिश की थी. समिति ने एनरॉन द्वारा नेताओं और नौकरशाहों को सौदा करने के लिए दिए गए धन के आरोपों को सही ठहराया था.

अमेरिकी बिजली कंपनी एनरॉन द्वारा दाभोल परियोजना से बाहर निकलने और दिवालिया हो जाने के बाद से संयंत्र 2001 में बंद हो गया था. प्लांट को फिर से शुरू करने के लिए SC में अपील की गई थी. 1997 में CITU ने सुप्रीम कोर्ट ने मामले में राजनीतिज्ञों और नौकरशाहों के घोटाले की जांच होनी चाहिए.

गोडबोले पैनल ने 2001 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी जिसमें कहा गया कि समिति ने पहली नजर में केंद्र और राज्य में लगातार सरकारों और एजेंसियों द्वारा वक्त वक्त पर  एनरॉन परियोजना के संबंध में लिए गए कई फैसलों में गडबड़ियों  को पाया है.

गोडबोले पैनल की रिपोर्ट में पूर्व मुख्यमंत्री शरद पवार (तब कांग्रेस के साथ), 13-दिवसीय बीजेपी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार की आलोचना की थी जिसने 1996 में शिवसेना सुप्रीमो बालासाहेब ठाकरे और मनोहर जोशी के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार में सौदे को फिर से शुरू किया था.

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जुलाई 1992 में एनरॉन ने महाराष्ट्र राज्य विद्युत बोर्ड MSEB के साथ सरकार के 'फास्ट ट्रैक' परियोजनाओं के हिस्से के रूप में 2,550 मेगावाट का स्टेशन स्थापित करने के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे.