काम करते-करते हो गए विकलांग, अब लॉकडाउन में कंपनियों ने छोड़ दिया इन मजदूरों का साथ

फरीदाबाद के कुछ असहाय मजदूरों का मामला सामने आया है, जहां कंपनी का काम करते-करते विकलांग हुए मजदूरों का साथ इन्हीं कंपनियों ने छोड़ दिया है. इस मंदी में अब उन मजदूरों को भी कंपनियां निकाल रही हैं जो कंपनी का काम करते हुए विकलांग हो गए हैं. 

खास बातें

  • फरीदाबाद के विकलांग मजदूरों का दर्द
  • कंपनी में काम करते हुए थे विकलांग
  • अब लॉकडाउन में इन कंपनियों ने ही कर दिया बेसहारा
फरीदाबाद:

लॉकडाउन के चलते सबसे ज्यादा मजदूरों और कामगारों की जिंदगी मुश्किल में पड़ी हुई है. देश में लाखों मजदूरों की नौकरियां एक झटके में चली गई हैं. हजारों कंपनियां बंद हुई हैं, जिसका असर लंबा जाएगा. ऐसे में फरीदाबाद के कुछ असहाय मजदूरों का मामला सामने आया है, जहां कंपनी का काम करते-करते विकलांग हुए मजदूरों का साथ इन्हीं कंपनियों ने छोड़ दिया है. इस मंदी में अब उन मजदूरों को भी कंपनियां निकाल रही हैं जो कंपनी का काम करते हुए विकलांग हो गए हैं. फरीदाबाद में कार की हैंडब्रेक बनाने वाली एक कंपनी ने अपने दो दर्जन से ज्यादा उन मजदूरों को निकाल दिया, जिनके हाथ या उंगलियां काम करने के दौरान कट चुके हैं. 

फरीदाबाद में प्रेम सिंह, जगदीश, प्यारे लाल और प्रेम सागर जैसे दो दर्जन से ज्यादा मजदूरों का पहले हाथ, फिर लॉकडाउन में नौकरी भी चली गई. प्रेसिंग मशीन में काम करते हुए किसी की उंगली कटी तो किसी का पूरा पंजा ही गायब है. जिंदगी भर के लिए विकलांग हो गए. हादसे के बाद पक्की नौकरी के आश्वासन पर ये उसी फैक्ट्री में काम करते रहे लेकिन अब कंपनी ने इन विकलांग हो चुके मजूदरों को भी निकाल दिया है. 

प्रेम सिंह ने बताया कि उनके साथ हुए हादसे के बदले में कोई मुआवजा भी नहीं मिला था. उन्होंने बताया, 'कोई मुआवजा भी नहीं मिला था. कंपनी ने कहा था या तो 25,000 रुपए मुआवजा ले लो या नौकरी. तो मुझे नौकरी की जरूरत थी. अब लॉकडाउन में निकाल दिया आप बताओ कौन नौकरी देगा हमें?'

शिवशंकर नाम के एक अन्य मजदूर की 18 साल की उम्र में कंपनी में काम करते हुए आठ अंगलियां कट गईं. अब 32 साल की उम्र में उनके कंधों पर परिवार में छह लोगों की जिम्मेदारी है. उन्होंने कहा, 'मैं तो विकलांग हो चुका हूंं अब सड़क पर बैठा हूंं कौन मुझे नौकरी देगा? आप लोगों से अपील है हमारी मदद करें.'

नौकरी नहीं, पेंशन के नाम पर भी मजाक

बता दें कि कंपनियों ने इस लॉकडाउन में निकाला ही है, ESI भी पेंशन के नाम पर इनसे मजाक कर रही है. शिवशंकर की आठ उंगली कटने पर 900 रुपए पेंशन और राजवीर के हाथों की दो अंगली कटने पर इनको 800 रुपए पेंशन मिलती है. राजवीर को पहले 500 रुपए पेंशन मिलता था, जो अब बढ़ाकर 800 किया गया है. प्यारे लाल नाम के एक अन्य मजदूर को ESI दो अंगुली गंवाने और सिर पर चोट लगने की पेंशन 600 रुपए दे रही है.

फरीदाबाद में करीब 18,000 छोटी-बड़ी फैक्ट्रियां हैं, जिनमें 7 लाख से ज्यादा लोग काम करते हैं. लॉकडाउन के दौरान निकाले गए मजदूरों के लिए प्रदर्शन कर रहे फरीदाबाद के विधायक नीरज शर्मा ने बताया कि छंटनी के नाम पर अब तक दो से ढाई लाख लोगों को निकाल दिया गया होगा. उन्होंने कहा, 'इनके अंगभंग हो गए. इनकी लड़ाई लड़ रहे हैं. लेबर कोर्ट में भी जाएंगे. लेकिन करोना का बहाना बनाकर इनको निकाल दिया, जबकि लॉकडाउन के दौरान इनका पास बना है.'

बाहरी राज्यों से आए मजदूर नौकरी जाने के बाद अपने गांव लौट गए हैं लेकिन सालों कंपनी के लिए खून-पसीना बहाने वाले ये मजदूर लेबर कमिश्नर से लेकर दूसरी कंपनियों में नौकरी के लिए धक्के खा रहे हैं.

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