ग्रामीण क्षेत्रों में मांग घटना चक्रीय नहीं, RBI ने सही आकलन नहीं किया : प्रणव सेन

नीति आयोग से 1994 से 15 साल तक जुड़े रहे पूर्व प्रधान आर्थिक सलाहकार प्रणव सेन से बातचीत की गई। भाषा के उनसे ‘पांच सवाल’ और उनके जवाब इस प्रकार हैं

ग्रामीण क्षेत्रों में मांग घटना चक्रीय नहीं, RBI ने सही आकलन नहीं किया : प्रणव सेन

फाइल फोटो

नई दिल्ली:

चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के वृद्धि दर के आंकड़े आ चुके हैं. इस दौरान वृद्धि दर पिछले छह साल में सबसे कम पांच प्रतिशत रही है. यदि एक साल पहले के इसी तिमाही के आंकड़े से इसकी तुलना की जाए तो यह तीन प्रतिशत नीचे आ गई है. इससे पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर आठ प्रतिशत थी. सरकार भी सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था को लेकर चिंतित है और पिछले दो सप्ताह के दौरान उसने आर्थिक मोर्चे पर एक के बाद एक कई उपायों की घोषणा की है। क्या इन उपायों से अर्थव्यवस्था का भला होगा? क्या सरकार के कदम सही दिशा में उठाये जा रहे हैं? इस बारे में तत्कालीन योजना आयोग (अब नीति आयोग) से 1994 से 15 साल तक जुड़े रहे पूर्व प्रधान आर्थिक सलाहकार प्रणव सेन से बातचीत की गई। भाषा के उनसे ‘पांच सवाल' और उनके जवाब इस प्रकार हैं:

प्रश्न : पहली तिमाही की आर्थिक वृद्वि दर के आंकड़े काफी नीचे रहे हैं. इसकी प्रमुख वजह क्या लगती है आपको? 
उत्तरः इसकी सबसे बड़ी वजह मांग का नहीं बढ़ना है. मांग क्यों नहीं बढ़ रही है, इसकी सबसे बड़ी वजह ग्रामीण क्षेत्र में पिछले दो- ढाई साल से जारी सुस्ती है. ग्रामीण क्षेत्रों में और खासकर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की आमदनी कम हुई है. पहले यह आमदनी बढ़ रही थी. ग्रामीण और यहां तक कि शहरी क्षेत्र में जो कमजोर तबका है उसकी मजदूरी नहीं बढ़ी है जिससे मांग भी नहीं बढ़ी है. इसके अलावा पूंजीगत सामान के मामले में मांग का अंतराल पैदा हुआ है. टीवी, फ्रिज, एसी, कूलर, यहां तक कि कारों की भी यदि बात की जाए तो एक बार की खरीदारी के बाद इनकी मांग में जो अंतराल बनता है, उसका असर इस समय दिखाई दे रहा है. 

प्रश्न : रिजर्व बैंक ने कहा है कि आर्थिक गतिविधियों में आई कमी की वजह चक्रीय है, कोई बड़ी बुनियादी वजह इसके पीछे नहीं है. आपका क्या मानना है? 
उत्तरः मेरा मानना है कि रिजर्व बैंक ने इस मामले में सही आकलन नहीं किया है. ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों की मांग घटना चक्रीय घटना नहीं है बल्कि इसके पीछे संरचनात्मक कारण हो सकते हैं. जो सीमित कमाई करने वाला तबका है, उसके खाने पीने के सामान में विस्तार नहीं हुआ है. दाल, चावल, रोटी तो उसे मिल पा रही है लेकिन उसका फल, सब्जी, मीट, मछली, अंडा, दूध का उपभोग नहीं बढ़ पा रहा है. सरकार ने किसानों को 6,000 रुपये साल भर में देने की घोषणा की थी लेकिन लगता है इस पर ठीक से अमल नहीं हो पा रहा है. ‘पीएम किसान' का ग्रामीण क्षेत्र मांग पर अनुकूल असर होता. पिछले बजट में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के लिये जो राशि रखी गई थी वह खर्च नहीं हो पाई. केवल घोषणा करना काफी नहीं है उस पर अमल भी करना होगा. अब पीएम किसान की बात भी नहीं हो रही है. 

प्रश्न : सरकार ने आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिये जिन उपायों की घोषणा की है, उनसे क्या फायदा होगा? 
उत्तरः मुझे नहीं लगता इन घोषणाओं का ज्यादा लाभ होगा. सरकार के उपायों का जोर आपूर्ति बढ़ाने की तरफ है जबकि समस्या मांग बढ़ाने की है. आज जरूरत मांग बढ़ाने की है. आपूर्ति बढ़ाने की नहीं. देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक के चेयरमैन ने कहा है कि उनके पास पूंजी उपलब्ध है लेकिन उसके लिये मांग नहीं आ रही है. सरकार को मांग बढ़ाने पर ध्यान देना होगा. ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसी योजनाओं पर अमल करना चाहिये जिनसे ग्रामीणों के हाथ में पैसा आये. ‘पीएम किसान' इस दिशा में अच्छी पहल है लेकिन उसका क्रियान्वयन ठीक से नहीं हो रहा है. 


प्रश्न : आपके मुताबिक अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़ाने के लिये क्या कदम उठाये जाने चाहिये? 
उत्तरः मैं पहले भी कह चुका हूं कि मांग बढ़ाने की आवश्यकता है. ग्रामीण क्षेत्र में मांग बढ़नी चाहिये. ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में आर्थिक रूप से कमजोर तबकों की आय बढ़नी चाहिये. पीएम किसान योजना का धन किसानों के पास पहुंचना चाहिये. राज्य अगर इसमें अड़चन खड़ी कर रहे हैं तो उनसे बात कीजिये. बजट में इसके लिये जितना आवंटन रखा गया है, उसे खर्च कीजिये. ग्रामीण स्तर पर आय बढ़ाने वाली छोटी परियोजनाओं को आगे बढ़ाना चाहिये. ऐसी परियोजनायें जिनमें स्थानीय ठेकेदार हों, स्थानीय लोगों को मजदूरी मिले और उनकी आय बढ़े. इस मामले में ग्रामीण सड़कों के निर्माण में तेजी लानी चाहिये. ग्रामीण आवासीय योजनाओं पर अमल हो. लघु सिंचाई योजनाओं को आगे बढ़ाया जाना चाहिये. छोटे एवं मझोले उद्योगों की समस्या दूर होनी चाहिये. ग्रामीण क्षेत्र में पूरा कृषि कारोबार नकद में होता रहा है. आज उनके पास नकदी की कमी है. व्यापारी के पास पैसा नहीं है, उनकी समस्या को समझा जाना चाहिये. नोटबंदी का असर बना हुआ है. जीएसटी रिफंड में देरी हो रही है. छोटे निर्यातकों को इसका खामियाजा झेलना पड़ रहा है. 

प्रश्न : अगली तिमाही में आर्थिक वृद्वि दर कितनी रहेगी, पूरे वित्त वर्ष के दौरान आर्थिक वृद्वि कहां तक पहुंचेगी? 
उत्तरः मेरा मानना है कि जुलाई सितंबर की दूसरी तिमाही में आर्थिक वृद्वि दर में ज्यादा सुधार नहीं होगा और यह पांच प्रतिशत के आसपास ही रहेगी. जहां तक पूरे साल की आर्थिक वृद्वि की बात है तो यह भी 5.5 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होगी. 

अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते व्यापारिक तनाव के असर के बारे में उन्होंने कहा कि इसका थोड़ा बहुत असर हो सकता है लेकिन पंचवर्षीय योजनाओं का उनका अनुभव बताता है कि देश की खुद की क्षमता इतनी है कि सात प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि हासिल की जा सकती है. लेकिन इसके लिये जरूरी है कि जो आर्थिक रूप से कमजोर तबका है, ग्रामीण भारत है वहां मांग बढ़नी चाहिये. अगर इस क्षेत्र की मांग बढ़ती है तो आर्थिक सुस्ती की नौबत नहीं आयेगी.

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