10 दिन में 'अयोध्या' सहित 4 ऐतिहासिक फैसले सुनाकर CJI रंजन गोगोई बहुत कुछ बदल सकते हैं भारत में

सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई 17 नवंबर को रिटायर हो जाएंगे और उनकी जगह पर 18 नवंबर को जस्टिस शरद  अरविंर बोबडे भारत के नए प्रधान न्यायाधीश बन जाएंगे. लेकिन इन 10 दिनों में जस्टिस गोगोई को कई ऐसे फैसले सुनाने हैं जिससे भारत में बहुत कुछ बदल जाएगा या इन फैसलों का असर काफी 'प्रभावकारी' हो सकता है.

10 दिन में 'अयोध्या' सहित 4 ऐतिहासिक फैसले सुनाकर  CJI रंजन गोगोई बहुत कुछ बदल सकते हैं भारत में

प्रधान न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई 17 नवंबर को रिटायर होंगे

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई 17 नवंबर को रिटायर हो जाएंगे और उनकी जगह पर 18 नवंबर को जस्टिस शरद  अरविंद बोबडे भारत के नए प्रधान न्यायाधीश बन जाएंगे. लेकिन इन 10 दिनों में जस्टिस गोगोई को कई ऐसे फैसले सुनाने हैं जिससे भारत में बहुत कुछ बदल जाएगा या इन फैसलों का असर काफी 'प्रभावकारी' हो सकता है. जब हम नवंबर महीने में आने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की बात करते हैं तो सबसे पहले दिमाग में अयोध्या विवाद आता है.  इस मामले की सुनवाई खत्म हो चुकी है और जस्टिस गोगोई ने काफी पहले ही कहा था कि अगर इस पर सुनवाई तय समय में पूरी हो जाती है तो वह नवंबर में  इस पर फैसला सुना सकते हैं. अयोध्या विवाद 100 सालों से ज्यादा पुराना है. सुप्रीम कोर्ट में जहां विवादित जमीन के मालिकाना हक को लेकर सुनवाई हो रही थी तो वहीं आम जनता के लिए यह आस्था का सबसे बड़ा प्रश्न बन गया है. इस विवाद को लेकर कई पार्टियां सत्ता के शीर्ष तक पहुंची तो कई ऐसी भी पार्टियां रहीं जो हिंदूवादी राजनीति के उभार में अपनी जमीन खो बैठीं. इस विवाद पर फैसला सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच सुना सकती है जिसकी अगुवाई प्रधान न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई कर रहे हैं.

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इस फैसले के पीछे की संवेदनशीलत को वह लोग काफी अच्छे समझ सकते हैं जिन्होंने 90 के दशक का दौर देखा हो. पीएम मोदी भी अपने मंत्रियों से अपील कर चुके हैं कि इसको लेकर गैर जरूरी बयानबाजी न करें. वहीं राज्य सरकारें भी कानून व्यवस्था को दुरुस्त करने में जुटी हुई हैं. 

सबरीमाला विवादसबरीमाला केस: पुनर्विचार याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित, केरल सरकार ने कहा- फैसले पर दोबारा विचार की जरूरत नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 28 सितंबर को केरल के सबरीमाला मंदिर में 4-1 के बहुमत से फैसला सुनाते हुए मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश की इजाजत दी थी. कोर्ट ने 10 से 50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी को लिंग आधारित भेदभाव बताते हुए निरस्त कर दिया था. करीब 54 पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल कर कोर्ट को इस फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग की गई है. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर फैसला सुरक्षित रख लिया है. सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ तय करेगी कि 28 सितंबर के फैसले को बदला जाए या नहीं. 28 सितंबर 2018  को जिस संविधान पीठ ने यह फैसला दिया था उसमें सीजेआई रंजन गोगोई की अगुवाई में जस्टिस आर. फली नरीमन, जस्टिस एएम खानविल्कर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा शामिल थीं.

राफेल विवादराफेल सौदे में एफआईआर या सीबीआई जांच का कोई सवाल ही नहीं है : केंद्र
लोकसभा चुनाव से राफेल मुद्दे पर कांग्रेस को उस समय बड़ा झटका लगा था जब  14 दिसंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने इस डील में कथित घोटाले के आरोपों पर मोदी सरकार को क्लीनचिट दी थी. लेकिन इसके बाद इस पर भी कई पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल की गई थीं. 10 मई, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने इन याचिकाओं पर अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था. दरअसल राफेल पर 14 दिसंबर के फैसले पर चार याचिकाएं दाखिल की गई हैं. पहली संशोधन याचिका केंद्र सरकार द्वारा दाखिल की गई जिसमें कहा गया है कि कोर्ट के फैसले में 'कैग (CAG) रिपोर्ट संसद के सामने रखी गई' की टिप्पणी को ठीक करें. केंद्र का कहना है कि कोर्ट ने सरकारी नोट की गलत व्याख्या की है. प्रशांत भूषण, यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी ने पुनर्विचार याचिका में अदालत से राफेल मामले पर आदेश की समीक्षा करने के लिए कहा है जिसमें कहा गया कि सरकार ने राफेल जेट का अधिग्रहण करने के लिए निर्णय लेने की सही प्रक्रिया का पालन किया है. प्रशांत भूषण की चौथी याचिका में सरकार द्वारा दिए गए नोट में अदालत को गुमराह करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई चाही गई है. इसमें लिखा गया है कि CAG ने राफेल पर संसद को अपनी रिपोर्ट सौंपी. इस पर फैसला भी 17 नवंबर से पहले आ सकता है क्योंकि इस मामले की जो पीठ सुनवाई कर रही है उसकी अगुवाई जस्टिस रंजन गोगोई कर रहे हैं इसमं जस्टिस एसके कौल और जस्टिस केएम जोसेफ भी हैं.

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जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली जिसमें जस्टिस एनवी रामन्ना, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना शामिल हैं, इस पर फैसला सुनाएंगे कि क्या सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश सूचना के अधिकार के दायरे में आते हैं या नहीं.