चीन से लगी भारतीय सीमा की छह दशकों से सुरक्षा करने वाली आईटीबीपी ने योद्धा श्वानों को लद्दाख के नए सामरिक स्थानों से जुड़े नाम दिए हैं. इन श्वान (कुत्तों) का जन्म हाल ही में हुआ है. वेस्टर्न नामों की जगह भारत तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) ने पहली बार किसी भी सशस्त्र बल में अपने श्वानों को देसी नाम दिए हैं. आईटीबीपी की मशहूर के-9 विंग के इन श्वानों (Malinois Dogs) का पंचकुला के एक समारोह में नामकरण किया गया.
नेशनल ट्रेनिंग सेंटर फॉर डॉग्स (एनटीसीडी) आईटीबीपी ने दो महीने पहले पैदा हुए इन मैलिनोईस श्वानों के नाम रखे . इन 17 श्वानों के पिता का नाम गाला और माताओं का नाम ओलगा और ओलिशिया हैं. उनके नए नाम हैं- आने-ला, गलवान, ससोमा, सिरिजाप, चिप चाप, सासेर, चार्डिंग, रेजांग, दौलत, सुल्तान-चुस्कू, इमिस, रांगो, युला, मुखपरी, चुंग थुंग, खार्दुंगी और श्योक. इन के-9 योद्धाओं को 100% लद्दाख के इलाकों के नाम दिए गए हैं, जहां आईटीबीपी सुरक्षा में तैनात रहती है.
बर्फीले इलाकों में बेहद कारगर
आजादी के बाद पहली बार अब आईटीबीपी में केनाइन विंग के श्वानों को देसी विरासत और नामों से जाना जाएगा. श्वानों के जो परंपरागत पाश्चात्य नाम जैसे सीजर, ओलगा, एलिजाबेथ, बेट्टी, लीजा आदि होते थे. अब आईटीबीपी (ITBP) के डॉग हैंडलर इन्हें देसी नाम से पुकारेंगे. भारत तिब्बत सीमा पर आईटीबीपी की तैनाती होती है और बहुत ही कठिन परिस्थितियों में ये हिमवीर अपनी ड्यूटी करते हैं. आईटीबीपी ने तय किया है कि आगे भी इन नवजात श्वानों को कराकोरम पास से जचेप ला तक 3488 किलोमीटर लंबी भारत चीन सीमा के प्रसिद्ध स्थानों के नामों पर श्वानों को नामित किया जाएगा.
सुरक्षा बलों में मैलिनोईस कुत्तों की भारी मांग
नक्सल रोधी अभियानों में ITBP ने पहली बार एक दशक पूर्व मैलिनोईस श्वानों (Malinois Dogs) को तैनात किया था. सुरक्षाबलों में इन श्वानों की बढ़ती मांग को देखते हुए आईटीबीपी ने इनकी वैज्ञानिक पद्धति से ब्रीडिंग भी प्रारंभ कर दी है . कई अन्य सुरक्षा बलों ने आईटीबीपी से इन श्वानों की उपलब्धता के लिए अनुरोध किया है.1962 में भारत चीन सीमा संघर्ष के दौरान गठित आईटीबीपी में फिलहाल लगभग 90000 जवान हैं. सीमा सुरक्षा के अलावा आईटीबीपी कई अन्य सुरक्षा कर्तव्यों में तैनात है .
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