सत्ता में आने के 3 दिन के भीतर कर्नाटक सरकार ने रद्द किया ‘टीपू जयंती’ समारोह

पूर्ववर्ती मैसूर साम्राज्य के 18वीं सदी के विवादित शासक टीपू सुल्तान की जयंती पर आयोजित होने वाले वार्षिक समारोह को कनार्टक की भाजपा सरकार ने मंगलवार को रद्द कर दिया.

सत्ता में आने के 3 दिन के भीतर कर्नाटक सरकार ने रद्द किया ‘टीपू जयंती’ समारोह

कर्नाटक मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा (BS Yediyurappa) - फाइल फोटो

खास बातें

  • कर्नाटक सरकार ने रद्द किया टीपू जयंती समारोह
  • कांग्रेस शासन के दौरान हुआ था शुरू
  • इस समारोह का आयोजन 2015 से हो रहा था
नई दिल्ली:

पूर्ववर्ती मैसूर साम्राज्य के 18वीं सदी के विवादित शासक टीपू सुल्तान की जयंती पर आयोजित होने वाले वार्षिक समारोह को कनार्टक की भाजपा सरकार ने मंगलवार को रद्द कर दिया. कांग्रेस शासन के दौरान शुरू हुए इस समारोह का आयोजन 2015 से हो रहा था. बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व वाली नयी सरकार ने सत्ता में आने के तीन दिन के भीतर ‘टीपू जयंती' समारोह को रद्द करने से संबंधित आदेश पारित किया. भाजपा और दक्षिणपंथी संगठनों के विरोध के बीच सिद्धरमैया के नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने 2015 में टीपू जयंती के अवसर पर 10 नवंबर को वार्षिक समारोह के आयोजन की शुरुआत की थी.

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एच डी कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली कांग्रेस-जद (एस) की गठबंधन सरकार ने भी इसे जारी रखा. सदन में 23 जुलाई को विश्वासमत हासिल नहीं कर पाने के कारण कुमारस्वामी की सरकार गिर गयी थी जिससे राज्य में भाजपा की सरकार बनने का रास्ता बना. भाजपा सरकार ने सोमवार को विश्वासमत हासिल कर लिया था. आधिकारिक आदेश के अनुसार विराजपेट के विधायक के. जी. बोपैया ने येदियुरप्पा को पत्र लिखकर राज्य के कन्नड़ एवं संस्कृति विभाग द्वारा टीपू जयंती के अवसर पर आयोजित किए जाने वाले वार्षिक समारोहों को रद्द करने का अनुरोध किया. 

पत्र में उन्होंने ऐसे समारोह को लेकर विशेषकर कोडागू जिले में होने वाले विरोध की ओर ध्यान आकृष्ट किया. विधायक ने कहा था कि विगत में समारोह के दौरान हिंसा की घटनाएं हुई हैं और इसे दोहराया नहीं जाना चाहिए. येदियुरप्पा ने पत्रकारों को बताया कि मंत्रिमंडल में विचार-विमर्श के बाद यह फैसला किया गया कि यहां टीपू जयंती नहीं मनायी जानी चाहिए और इस संदर्भ में एक सरकारी आदेश पारित किया गया है. 

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वर्ष 2015 में इसके पहले आधिकारिक आयोजन के दौरान कोडागू जिले में व्यापक प्रदर्शनों और हिंसा में विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के कार्यकर्ता कटप्पा की मौत हो गयी थी. भाजपा और दक्षिणपंथी संगठन टीपू को ‘धार्मिक कट्टरपंथी' बताते हुए जयंती समारोहों का कड़ा विरोध करते रहे हैं, जिसके कारण अधिकारी हर साल कड़ी सुरक्षा व्यवस्था में राज्यव्यापी कार्यक्रम का आयोजन कराते थे. इस बीच, भाजपा सरकार के इस फैसले को बड़ा अपराध बताते हुए पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने कहा कि टीपू कोई ऐसी शख्सियत नहीं थे जो सिर्फ अल्पसंख्यक समुदाय के थे, बल्कि वह तो मैसूर के राजा थे जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ाई लड़ी. वह एक महान देशभक्त थे.

उन्होंने कहा कि टीपू ने तत्कालीन मैसूर राज्य के विकास के लिए काम किया. केआरएस बांध की नींव उनके ही शासन में रखी गयी थी और उन्होंने उद्योगों, कृषि तथा कारोबार के विकास के लिए भी काम किया था. सिद्धरमैया ने कहा, ‘‘...चूंकि वह एक स्वतंत्रता सेनानी थे, इसी मंशा से हमने इसे (जयंती) मनाने का फैसला किया था. भाजपा ने दुर्भावना से प्रेरित होकर और अल्पसंख्यकों के प्रति अपनी नफरत की भावना के कारण ही ऐसा किया है. मैं इस कदम का विरोध करता हूं.''

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पूर्ववर्ती मैसूर साम्राज्य के शासक टीपू ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के कट्टर शत्रु माने जाते थे. मई 1799 में श्रीरंगपट्टनम में अपने किले को बचाने के क्रम में ब्रिटिश बलों के खिलाफ लड़ते हुए उनकी मौत हो गयी थी. टीपू सुल्तान को हालांकि कोडागू जिले में विवादित शख्सियत माना जाता है क्योंकि कोडावस (कुर्गीज) समुदाय के लोगों का मानना है कि टीपू के शासन के दौरान हजारों कोडावस पुरुषों एवं महिलाओं को यातनाएं दी गईं, उनकी हत्याएं की गईं और उन्हें जबरन इस्लाम कबूल कराया गया. 

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टीपू पर दीपावली के दिन मांड्या जिले में मेलकोट शहर के मंदिर में मांडयम अयंगर को फांसी देने का भी आरोप है, क्योंकि उन्होंने मैसूर के तत्कालीन महाराज का समर्थन किया था. हालांकि कई इतिहासकर टीपू को एक धर्मनिरपेक्ष एवं आधुनिक शासक मानते हैं जिसने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जंग लड़ी. कुछ कन्नड़ संगठन उन्हें ‘‘कन्नड़ विरोधी'' मानते हैं. उनका आरोप है कि टीपू ने स्थानीय भाषा की जगह फारसी को तवज्जो दी थी.



(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)