कृषि सुधार के लिए लाए गए विधेयकों पर मध्यप्रदेश के किसानों की राय बंटी हुई

युवा किसान बिल के खिलाफ हैं, लेकिन पुरानी पीढ़ी को लगता है ये किसानों के लिए अच्छा, कारोबारी कार्पोरेट कंपनियों के आने की आशंका से चिंतित

कृषि सुधार के लिए लाए गए विधेयकों पर मध्यप्रदेश के किसानों की राय बंटी हुई

कृषि सुधार विधेयकों को लेकर मध्यप्रदेश के सीहोर जिले के किसानों की राय अलग-अलग है.

नई दिल्ली:

केंद्र सरकार खेती-किसानी के क्षेत्र में सुधार के लिए तीन विधेयक (Agri Reform Bills) लाई है, जो लोकसभा-राज्यसभा से पारित हो चुके हैं. इन विधेयकों से पंजाब और हरियाणा समेत कुछ राज्यों में किसान नाराज हैं. उन्हें अपनी उपज पर मिलने वाले न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)  की चिंता है. मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के मुख्यमंत्री कह चुके हैं कि जो विरोध कर रहे हैं वो जबरन किसानों को भड़का रहे हैं. ऐसे में मध्यप्रदेश के किसान क्या सोचते हैं? 

सीहोर में ब्रिजेश नगर के किसान गंगा प्रसाद वर्मा मंडी को सुरक्षित मानते हैं.  वे कहते हैं कि मंडी में जो माल बेचता है, वो सुरक्षित है मंडी, मंडी है... फिर थोड़ी देर रुककर कहते हैं, वैसे ज्यादा व्यापारी रहेंगे तो फायदा होगा. वहीं सवाई सिंह ने कहा कि हमें और कीमत मिलना चाहिए. जैसे गेंहू का समर्थन मूल्य कम से कम 2500 से 3000 तो होना चाहिए. चौपाल पर साथ बैठे घीसीलाल मेवाड़ा ने भी हामी भरी.
      
लेकिन हर किसान खुश है, ऐसा भी नहीं, इसी गांव के चैन सिंह ने कहा मुझे इस कानून से डर है... अभी भी कोई 1400 कोई 1500 का भाव गेंहू का देता है... बड़ा व्यापारी गांव आएगा तो वो मनमाना भाव लगाएगा.

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हम अक्सर ये सुनते आए हैं कि कृषि अर्थव्यवस्था का इंजिन है, लेकिन हकीकत क्या है? रामनगर में युवा किसान बिल के खिलाफ हैं, लेकिन पुरानी पीढ़ी को लगता है ये किसानों के लिए अच्छा है. राजेन्द्र मीणा के पास 30 एकड़ खेत है. वे कहते हैं कि पिछले साल उन्होंने गेंहू 2000 में बेचा, इस साल 1400 रुपये मिले, एमएसपी नहीं मिला. उन्हें निजी कंपनियों के आने का डर है. राकेश मीणा ने भी यही डर साझा किया.लेकिन इसी गांव में उम्रदराज किसान प्रेम नारायण कहते हैं कि हमें फायदा मिलेगा. हम अपना उत्पाद दूसरे राज्यों में भी ले जाकर बेच सकते हैं.

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इछावर में तेज सिंह जैसे बड़े किसानों का कहना है कि यह बिल किसानों के खिलाफ है. वे साफ कहते हैं कि यह गलत है, किसानों के पक्ष में नहीं है. मंडी में हम मंडी बोर्ड से शिकायत करते थे, अब हम नहीं जानते कहां अपनी बात लेकर जाएंगे. व्यापारी गांव में नहीं आएगा, इसका कोई फायदा नहीं है.

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कन्हेरिया गांव में किसान न तो डरे हुए हैं, न ही सुधारों को लेकर आशान्वित हैं. उनकी तकलीफ कुछ और है.  62 साल के कालूराम 7-8 एकड़ में खेती करते हैं. वे साफ कहते हैं कि नए कानून से हम डरे नहीं हैं. वैसे भी हम सिर्फ इतना कमाते हैं कि पेट भर सकें. सरकार से कभी कोई मदद नहीं मिली है, ना कोई उम्मीद है. वहीं लाड सिंह का कहना है कि हम अपने गांव में सिर्फ पानी की कमी से परेशान हैं.

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कारोबारियों का दावा है कि सरकार यह सब बड़ी कंपनियों के दबाव में कर रही है. सीहोर मंडी में बड़े अनाज कारोबारी जयंत पटेल का कहना है कि पहले भी ऐसे प्रयोग हुए. किसानों से कहा आंवला लगाओ, फिर लेने कोई नहीं आया. एक्ट में एमएसपी का जिक्र नहीं है. हम 50-100 वर्षों से व्यापार कर रहे हैं. हम कहां जाएंगे. इसमें कुल मिलाकर किसान का नुकसान है. छोटे व्यापारी को हटाकर मल्टीनेशनल का एकाधिकार करना चाहते हैं.

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सरकार का दावा है कि कृषि क्षेत्र में इन सुधारों से किसानों का जीवन सुधरेगा, उन्हें उपज का उचित मूल्य मिलेगा, आय बढ़ेगी, जीवन स्तर सुधरेगा, कृषि के बुनियादी ढांचे में सुधार होगा. विरोध-समर्थन अपनी जगह है, लेकिन एक तथ्य ये भी है कि इन सुधारों के प्रति किसानों को ना बहुत ज्यादा जागरूक बनाया गया, ना उन्हें कुछ बताया गया.