बैठकों के मामले में संसद से भी खराब रिकॉर्ड है विधानसभाओं का

पिछले 10 साल में लोकसभा की बैठकों का औसत 66 और राज्यसभा की बैठकों का औसत 65.5 है लेकिन अगर आप हमारी विधानसभाओं के रिकॉर्ड पर नज़र डालें तो वह इससे कहीं अधिक खराब है.

बैठकों के मामले में संसद से भी खराब रिकॉर्ड है विधानसभाओं का

नई दिल्‍ली:

गुजरात चुनाव से पहले संसद के शीतकालीन सत्र की बैठक न बुलाने पर विपक्ष ने सवाल खड़ा किया. यह सवाल भी लगातार उठता रहता है कि संसद की बैठकें कम हो रही हैं. लेकिन बैठकों के मामले में देश की विधानसभाओं का रिकॉर्ड और भी खराब है. पिछले 10 साल में लोकसभा की बैठकों का औसत 66 और राज्यसभा की बैठकों का औसत 65.5 है लेकिन अगर आप हमारी विधानसभाओं के रिकॉर्ड पर नज़र डालें तो वह इससे कहीं अधिक खराब है. हमने देश की विधानसभाओं के पिछले 6 साल के आंकड़ों को देखा तो पता चला कि इक्का दुक्का विधानसभाओं में ही 50 बैठकें हो पाईं. उत्तर प्रदेश का औसत 24.3 दिन सालाना बैठकों का रहा है. हरियाणा में 13.6 दिन और सीपीएम शासित त्रिपुरा में तो सालाना 11.7 बैठकें ही हुई हैं. दिल्ली में पिछले 6 साल में बैठकों का औसत 16.3 है. साल में करीब 52 बैठकों के साथ केरल का रिकॉर्ड सबसे अच्छा है और फिर दूसरे नंबर पर कर्नाटक है जिसका सालाना रिकॉर्ड 40 बैठकों का है.

अगर सभी राज्यों की बैठकों के औसत का औसत निकालें वह 29.8 आता है यानी सालाना 30 बैठकों से भी कम. यह रिकॉर्ड इसलिये चिंता पैदा करता है क्योंकि संविधान में राज्यों के ऊपर शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर कानून बनाना और बजट पास कराने समेत कई मुद्दों पर चर्चा करना है. बिल अक्सर जल्दबाज़ी में पास होते हैं और अहम मुद्दों पर चर्चा नहीं होती.

संविधान के जानकार और PRS लैजिस्लेटिव रिसर्च के चक्षु रॉय कहते हैं, "देश के संविधान में ये तय है कि केंद्र में एक संसद होगी और और राज्यों में विधानसभाएं होंगी जो कई मुद्दों पर अपने राज्य के लिये कानून बनाते हैं. अगर मैं औसतन देखूं तो सारी ही विधानसभाएं संसद से कम बैठती हैं. कुछ 25 से 30 दिन बैठती हैं और कुछ 30 से 40 दिन लेकिन अधिकतर 50 दिन से कम ही बैठती हैं."

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संविधानिक कमेटियां पहले ही कह चुकी हैं कि जो विधानसभा जितनी अधिक बड़ी हो उसे उतनी अधिक बैठकें करनी चाहिये. यानी यूपी की तुलना उत्तराखंड की बैठकों और तमिलनाडु की तुलना पुद्दुचेरी से नहीं हो सकती.


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