संतों ने राम मंदिर निर्माण के लिए सरकार से अध्यादेश लाने या काननू बनाने की मांग की

हिंदू साधु-संतों ने रविवार को यहां संत समागम में रविवार को अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए सरकार से अध्यादेश लाने या कानून बनाने की मांग की.

संतों ने राम मंदिर निर्माण के लिए सरकार से अध्यादेश लाने या काननू बनाने की मांग की

नई दिल्ली:

हिंदू साधु-संतों ने रविवार को यहां संत समागम में रविवार को अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए सरकार से अध्यादेश लाने या कानून बनाने की मांग की. संतों ने इस बात पर जोर दिया कि अदालत को भी जन-भावनाओं का आदर करना चाहिए. यहां आयोजित दो दिवसीय संत समागम का रविवार को समापन हो गया. समागम में राम मंदिर निर्माण के लिए आगे की रणनीति तय की गई, जिसके अनुसार, अयोध्या, दिल्ली, बेंगलुरू और नागपुर समेत विभिन्न शहरों में अगले दो महीने तक विशाल जनसभाओं का आयोजन कर जनभावना जगाई जाएगी. 

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कार्यक्रम के आयोजक अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय सचिव जितेंद्रानंद सरस्वती ने मीडिया से बातचीत में कहा, "संतों ने घोषणा की है कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए या तो कानून बनाया जाए या अध्यादेश लाया जाए. हमें दोनों शर्ते मंजूर हैं." उन्होंने कहा, "लोकतंत्र में जनता का आदेश बड़ा कारक है. अगर जनता की राय से सरकार बन सकती है तो फिर जनता की राय बनाने के लिए हम रैलियां और जनसभाएं करने को तैयार हैं."

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मामले के शीर्ष अदालत में विचाराधीन होने और सर्वोच्च न्यायालय के अगले साल जनवरी में इसपर सुनवाई करने के सवाल पर संत ने कहा कि जनभावनाएं उभरती है तो दुनियाभर की अदालतें मसले पर रातभर में विचार करती हैं.  उन्होंने कहा, "सरकार व्यवस्था बनाती है. अदालत का काम कानून की व्याख्या करना है न कि उसका निर्माण." आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर ने कहा कि जन-भावनाओं के प्रति संवदेनशील बनने की जरूरत है. वह अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण चाहते हैं. 

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श्रीश्री ने कहा, "संपूर्ण संत समाज के पास तीन विकल्प हैं. पहला यह कि बातचीत हो. हमें बातचीत जारी रखनी चाहिए. दूसरा, अदालत के फैसला का इंतजार करें और अदालत से जल्द फैसला देने का आग्रह करें. तीसरा विकल्प यह है कि हम सरकार से इस संबंध में कुछ उपाय करने को कहें." उन्होंने कहा, "संत को मंदिर की जरूरत नहीं है. उनके पास मंदिर है जहां वे बैठते हैं. जनता भव्य राम मंदिर का निर्माण चाहती है. उनकी यह उम्मीद है. हमें उनकी उम्मीदों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए."

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