सुप्रीम कोर्ट ने रद्द की गोवा में सारी माइनिंग लीज

कोर्ट ने गोवा में 88 कंपनियों की लीज दोबारा रिन्यू करने को कानून का और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन माना है. 2014-2015  में बीजेपी सरकार ने 88 कंपनियों की लीज रिन्यू की थी. इसके कुछ वक्त बाद ही माइनिंग को लेकर नया कानून लाया गया, जिसमें नीलामी को अनिवार्य बनाया गया.

सुप्रीम कोर्ट ने रद्द की गोवा में सारी माइनिंग लीज

सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

खास बातें

  • कोर्ट ने कहा कि 15 मार्च के बाद कोई भी कंपनी माइनिंग नहीं करेंगी.
  • गोवा सरकार को नए कानून के तहत नई लीज के लिए फिर से नीलामी करनी होगी
  • इस मामले में नया पर्यावरण एनओसी देना होगा
नई दिल्ली:

गोवा सरकार को बुधवार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका मिला है. कोर्ट ने गोवा में सारी माइनिंग लीज रद्द कर दी है. कोर्ट ने कहा कि 15 मार्च के बाद कोई भी कंपनी माइनिंग नहीं करेंगी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गोवा सरकार को नए कानून के तहत नई लीज के लिए फिर से नीलामी करनी होगी. कोर्ट ने कहा कि पर्यावरण मंत्रालय को इस मामले में नया पर्यावरण एनओसी देना होगा. 

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कोर्ट ने गोवा में 88 कंपनियों की लीज दोबारा रिन्यू करने को कानून का और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन माना है. 2014-2015  में बीजेपी सरकार ने 88 कंपनियों की लीज रिन्यू की थी. इसके कुछ वक्त बाद ही माइनिंग को लेकर नया कानून लाया गया, जिसमें नीलामी को अनिवार्य बनाया गया.

सुप्रीम कोर्ट ने पहले से गठित एसआईटी को जल्द जांच पूरी करने को कहा है. दरअसल नवंबर 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने गोवा सरकार से कहा था कि वह खुद पर लगे इस आरोप का अदालत में औपचारिक रूप से जवाब दे कि उसने राज्य में खत्म हो गए 88 माइनिंग लीज को नीलामी के नियमों का उल्लंघन कर रिन्यू किया था. एनजीओ गोवा फाउंडेशन ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी थी कि गोवा सरकार का यह कदम 2014 में सुप्रीम कोर्ट की एक रूलिंग का भी उल्लंघन है, जिसमें अदालत ने राज्य से नए सिरे से लीज देने और शाह कमीशन की रिपोर्ट में दोषी बताए गए पक्षों को लीज रिन्यू न करने को कहा था. शाह कमीशन ने गोवा में अवैध माइनिंग के मामलों की जांच की थी. 

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एनजीओ ने लौह अयस्क की माइनिंग से जुड़ी लीज को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी और कोर्ट ने इन लीज को खारिज कर दिया था. एनजीओ ने आरोप लगाया कि राज्य की प्रशासनिक मशीनरी माइनिंग लॉबी से सांठगांठ कर ऐसी लीज रिन्यू कीं, जिन्हें एक्सपायर्ड घोषित कर दिया गया था. एनजीओ ने दावा किया कि इन लीज रिन्यूअल्स से राज्य सरकार को स्टांप ड्यूटी के रूप में महज 15 पर्सेंट रॉयल्टी मिलेगी जबकि करीब 79,836 करोड़ रुपये का नुकसान सरकारी खजाने को होगा. 

एनजीओ की ओर से बात रखते हुए वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट की 2014 की रूलिंग का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि ये लीज 50 वर्षों से ऑपरेशनल हैं और इन्हें 2007 में खत्म माना जाएगा. कोर्ट ने यह भी कहा था कि इन लीज का रिन्यूअल असाधारण स्थितियों में ही किया जा सकता है और इसकी वजहें लिखित तौर पर बतानी होंगी. एनजीओ ने कहा कि राज्य सरकार ने रूलिंग को दरकिनार करते हुए लीज फिर से बढ़ा दी और किसी भी मामले पर विचार नहीं किया. 

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एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार तब लगाई, जब बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक आदेश में कुछ तकनीकी वजहों से लीज को अनुमति दे दी थी. वेदांता ग्रुप की कंपनियों के पास इनमें से 22 लीज हैं. सालगावकर ग्रुप के पास 10, फोमेंटो के पास 7 और चौगुले एंड कंपनी के पास 10 लीज हैं. राज्य सरकार ने हाई कोर्ट के 13 अगस्त 2014 के आदेश को चुनौती नहीं दी थी. भूषण ने 2015 में राज्य सरकार की ओर से जारी माइनिंग ऑर्डिनेंस के तहत बनाए गए ऑक्शन रूल और 2जी केस में प्रेसिडेंशियल रेफरेंस जजमेंट का हवाला देकर दावा किया कि जिन प्राकृतिक संसाधनों की तंगी हो, उन्हें किसी न किसी तरह की कॉम्पिटीटिव बिडिंग के बिना प्राइवेट कंपनियों को नहीं दिया जा सकता है. 

VIDEO: गोवा में सभी माइनिंग लीज रद्द


एनजीओ ने आरोप लगाया कि 14 सितंबर 2014 को जिस आदेश के जरिए सभी पर्यावरण मंजूरियों को सस्पेंड किया गया था, उन्हें 20 मार्च 2015 के एक आदेश के जरिए बहाल कर पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने कोर्ट के आदेश का उल्लंघन किया. राज्य सरकार ने 10 सितंबर 2012 को हर तरह की माइनिंग पर रोक लगा दी थी. हाई कोर्ट की रूलिंग के बाद इसने रोक हटा ली. लीज रिन्यूअल करते हुए राज्य ने इनमें से 56 माइंस में कामकाज शुरू करने की अनुमति दी थी.
 


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