SC का बड़ा फैसला: हर उस जिले में बनाया जाए विशेष पॉक्सो कोर्ट, जहां 100 से ज्यादा मामले लंबित, 60 दिन में बनाएगी केंद्र सरकार

केंद्र सरकार देश के हर जिले में विशेष पॉक्सो कोर्ट बनाएगी जहां 100 से ज्यादा पॉक्सो मामले लंबित हैं.

SC का बड़ा फैसला: हर उस जिले में बनाया जाए विशेष पॉक्सो कोर्ट, जहां 100 से ज्यादा मामले लंबित, 60 दिन में बनाएगी केंद्र सरकार

प्रतीकात्मक तस्वीर

खास बातें

  • सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
  • बच्चों संग यौन प्रताड़ना को लेकर सख्त हुई SC
  • मामलों की जल्द सुनवाई को लेकर किया ये फैसला
नई दिल्ली:

केंद्र सरकार देश के हर जिले में विशेष पॉक्सो कोर्ट बनाएगी जहां 100 से ज्यादा पॉक्सो मामले लंबित हैं. इन अदालतों के लिए फंड केंद्र सरकार देगी. केंद्र सरकार 60 दिन में ये कोर्ट बनाएगी. देश भर में बच्चों से रेप पर जनहित याचिका है. कोर्ट मित्र ने कहा कि सिर्फ दिल्ली में ही विशेष पॉक्सो अदालत बनाई गई हैं. दिल्ली की साकेत कोर्ट में बच्चों से संबंधित यौन उत्पीड़न को लेकर दो अदालतों का गठन हो सकता है. बच्चों के लिए फ्रेंडली माहौल बनाया जा सकता है.

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आर्किटेक्चर में भी बच्चों के हिसाब से बदलाव किया जा सकता है, JJ एक्ट और पॉक्सो एक्ट में इसका प्रावधान है. दिल्ली में एक विशेष जज के पास एक साल में करीब 400 केस सुनवाई के लिए आते हैं, इसलिए उन पर केसों का बोझ रहता है. CJI ने कोर्ट मित्र से पूछा कि पूरे देश में जिले के हिसाब से पॉक्सो के अंतर्गत कितने मामले दर्ज है इसकी जानकारी है? इस पर कोर्ट मित्र ने कहा कि हर जिले में नंबर अलग-अलग है, लेकिन हर जिले में औसतन 250 केस हैं.

यानी देशभर के हर जिले में एक साल में 250 मामले बच्चों से यौन उत्पीड़न के दर्ज होते है. जिलों में स्पेशल जज नहीं हैं तो ट्रायल कोर्ट को ये दिए जाते हैं. फोरेंसिक रिपोर्ट के अभाव में ही केस 6-9 महीने लेट हो जाता है. कोर्ट मित्र ने कहा DNA टेस्ट लैब ज्यादातर जिलों में नहीं है. कई मामलों में तो ऐसा होता है कि FSL ये कहता है कि सैंपल डैमेज हो चुका है, लिहाजा इसकी जांच नहीं हो सकती.

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कोर्ट मित्र वी. गिरी ने कोर्ट को बताया कि ज्यादातर राज्यों मे पॉक्सो के प्रावधान के तहत अपराध की पहचान और तेजी से जांच के इंतजाम नहीं किए गए हैं. स्कूलों में काउंसलर नियुक्त किए जा सकते हैं जो बच्चों, उनके अभिभावकों से लगातार बात कर शिक्षित कर सकते हैं. राज्यों में फॉरेंसिक लैब की कमी है. ज्यादातर मामलों में ट्रायल में देरी होने का मुख्य कारण फोरेंसिक लैब की कमी है.

सुप्रीम कोर्ट ने नाबालिग बच्चों दे यौन उत्पीड़न को लेकर चिंता जाहिर की. CJI जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि बच्चों से यौन उत्पीड़न के मामले में जांच, मामले की सुनवाई और केस के जल्द निपटारे को लेकर चिंतित है. सुप्रीम कोर्ट ने कोर्ट मित्र से पूछा, आखिर बच्चों से यौन उत्पीड़न के मामले में जांच और केस के ट्रायल के पीछे क्या ड्रॉ बैक है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र पर भी नाराजगी जताई. कोर्ट ने पूछा कि SG कहां हैं?

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CJI ने विशेष अदालतों का गठन ना होने पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा- विशेष अदालतें नहीं बनाई गई हैं. क्या हो रहा है, आपके पास एक जज है और जब एक विशेष काम होता है और आप उसे वो काम भी दे देते हैं और आप उसे काम के बोझ के नीचे दबा देते हैं. फिर आप कहते हैं कि मुकदमे में देरी हो रही है. संसद में कानून में संशोधन पारित होने पर मीडिया में बड़े बयान दिए जाते हैं, लेकिन जब वास्तविक काम की बात आती है तो कुछ भी नहीं किया जा रहा है. हमें हर जिलों में विशेष  POCSO अदालतों की आवश्यकता है.

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