राम जन्मभूमि- बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला गुरुवार को

सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि 1994 के संविधान पीठ के फैसले, मस्जिद में नमाज इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं, पर पुनर्विचार की जरूरत है या नहीं

राम जन्मभूमि- बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला गुरुवार को

प्रतीकात्मक फोटो.

खास बातें

  • पुनर्विचार होने पर मामला पांच जजों की संविधान पीठ को भेजा जा सकता है
  • विचार की जरूरत नहीं हुई तो मामले में जमीन विवाद पर सुनवाई जल्द होगी
  • साल 1994 में राम जन्मभूमि में यथास्थिति बरकरार रखने का निर्देश दिया था
नई दिल्ली:

राम जन्मभूमि- बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को अहम फैसला सुनाएगा. सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि 1994 के संविधान पीठ के फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत है या नहीं. फैसले में कहा गया था कि मस्जिद में नमाज इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है.

अगर तीन जजों की पीठ यह तय करती है कि पुनर्विचार किया जाना चाहिए तो वह यह मामला पांच जजों की संविधान पीठ को भेज सकती है. इससे टाइटल सूट की सुनवाई में और देरी होगी. अगर पीठ कहती है कि उस फैसले पर विचार की जरूरत नहीं है तो राम जन्मभूमि- बाबरी मस्जिद जमीन विवाद पर सुनवाई जल्द हो सकती है.

20 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने इस पर फैसला सुरक्षित रखा कि संविधान पीठ के 1994 के फैसले पर फिर विचार करने की जरूरत है या नहीं.

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दरअसल सुप्रीम कोर्ट टाइटल सूट से पहले अब वह इस पहलू पर सुनवाई कर रहा था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है या नहीं. कोर्ट ने कहा था कि पहले यह तय होगा कि संविधान पीठ के 1994 के उस फैसले पर फिर से विचार करने की जरूरत है या नहीं कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का इंट्रीगल पार्ट नहीं है. इसके बाद ही टाइटल सूट पर विचार होगा.
 
साल 1994 में पांच जजों की पीठ ने राम जन्मभूमि में यथास्थिति बरकरार रखने का निर्देश दिया था ताकि हिंदू पूजा कर सकें. पीठ ने यह भी कहा था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का इंट्रीगल पार्ट नहीं है. सन 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला देते हुए जमीन का एक तिहाई हिंदू, एक तिहाई मुस्लिम और एक तिहाई हिस्सा राम लला को दिया था.

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मुस्लिम पक्ष की तरफ से बहस करते हुए राजीव धवन ने तालिबान द्वारा बुद्ध की मूर्ति तोड़े जाने का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्हें ये कहने में कोई संकोच नहीं कि 1992 में जो मस्जिद गिराई गई वह हिन्दू तालिबानियों द्वारा गिराई गई. मुस्लिम पक्ष की तरफ से उत्तर प्रदेश सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा गया कि सरकार को इस मामले में न्यूट्रल भूमिका रखनी थी लेकिन उन्होंने इसको तोड़ दिया.


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