बीजेपी निम्न सियासी हथियारों के जरिए 10 साल से बंगाल की सत्ता पर काबिज दीदी यानी ममता बनर्जी को अपदस्थ करने की कोशिश कर रही है. हालांकि, यह अलग बात है कि बीजेपी की तरफ से मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा, ये स्पष्ट नहीं है. पार्टी का मूल मकसद राज्य में सत्ता प्राप्ति है.
बंगाली पुनर्गौरव के बहाने हिन्दुत्व के तीर और ध्रुवीकरण की कोशिश:
पिछले महीने नवंबर के शुरुआत में जब अमित शाह राज्य दौरे पर गए थे, तब उन्होंने स्पष्ट किया था कि वो बंगाल के पुनर्गौरव की स्थापना करने की लड़ाई लड़ रहे हैं. उन्होंने कहा था कि पश्चिम बंगाल में तुष्टिकरण की राजनीति ने राष्ट्र की आध्यात्मिक चेतना को बनाए रखने की अपनी पुरानी परंपरा को चोट पहुंचाई है. इसी के साथ उन्होंने न केवल चैतन्य महाप्रभु, स्वामी विवेकानंद के गुणगान किए बल्कि जगतपुरी के दक्षिणेश्वर मंदिर में भी माथा टेका और सदियों पुराने मंदिर के गर्भगृह भी पहुंचे. वहां शंख बजाकर उनका स्वागत किया गया.
हालिया दो दिन के दौरे की शुरुआत भी शाह ने रामकृष्ण आश्रम से की. यानी अमित शाह सॉफ्ट हिन्दुत्व के रास्ते चलकर बंगाल में हिन्दू मतों के ध्रुवीकरण की शुरुआती कोशिशों में जुटे हैं जो चुनाव आते-आते आक्रामक हार्डकोर हिन्दुत्व की राह पकड़ सकता है. इस काम में आरएसएस का भी साथ मिल रहा है क्योंकि राज्य में 70 फीसदी हिन्दू मतदाता हैं जबकि 27 फीसदी ही मुसलमान हैं, जो तृणमूल के कैडर वोटर समझे जाते हैं.
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दलितों और ओबीसी को लुभाने की कोशिश:
राज्य के 70 फीसदी हिन्दू मतदाताओं में करीब 34 फीसदी मतदाता सिर्फ अनुसूचित जाति और जनजाति के हैं जो बड़ा हिस्सा है. बीजेपी लगातार इसे अपने पाले में करने की कोशिश करती रही है. 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी कुछ हद तक इसमें कामयाब होती दिखी है. तभी तो साल 2011 में बीजेपी को मात्र 4% वोट मिले थे जो 2016 में बढ़कर 17 फीसदी हो गया. लिहाजा, पार्टी का मानना है कि एससी, एसटी और ओबीसी समुदाय को अपने पाले में किया जाय. इसके लिए बीजेपी नेता लगातार कोशिश कर रहे हैं.
पिछले दौरे में अमित शाह ने न केवल बांकुड़ा में आदिवासियों के प्रतीक महापुरुष बिरसा मुंडा को श्रद्धांजलि दी बल्कि दलितों के घर जाकर भोजन भी किया था. बीजेपी अगले चरण में कई ओबीसी और दलित नेताओं की फौज बंगाल में उतारने जा रही है, इनमें कई केंद्रीय मंत्री और राज्यों के प्रभावी नेता हैं.
बागियों को पाले में कर दीदी को कमजोर करने की कवायद:
बीजेपी ममता बनर्जी के विरोधियों और तृणमूल कांग्रेस के बागियों को अपने पाले में कर लोगों को संदेश देना चाह रही है कि अब ममता बनर्जी से लोग ऊब चुके हैं. इसी कड़ी में अमित शाह की मौजूदगी में शनिवार को टीएमसी के कद्दावर नेता रहे सुवेंदु अधिकारी ने भाजपा का दामन थाम लिया. सालभर के अंदर करीब दर्जन भर से ज्यादा प्रभावशाली नेता टीएमसी को छोड़ चुके हैं.
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शरणार्थियों को साधने की रणनीति:
बीजेपी दलित शरणार्थियों का मुद्दा उठाकर उन्हें अपने पाले में करने की कोशिशों में जुटी है. पश्चिम बंगाल में भी, भाजपा 'मछुआरों' और 'मातुआ' के साथ जुड़ने का प्रयास कर रही है, जो बांग्लादेश में मूल रूप से एक दलित शरणार्थी समूह है और जिसका प्रभाव राज्य की 50 विधानसभा सीटों पर फैला हुआ है.
एंटी इनकमबेंसी और लचर कानून-व्यवस्था के बहाने बदलाव की अलख:
जे पी नड्डा के दौरे के दौरान उनके काफिले पर हुए हमले को बीजेपी भुनाने का मन बना चुकी है. इसीलिए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने न केवल राज्य के मुख्य सचिव और डीजीपी को तलब किया बल्कि तीन आईपीएस अफसरों को भी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर बुलाया है लेकिन ममता सरकार उसका विरोध कर रही है. बीजेपी चाहती है कि राज्य में यह एक मुद्दा बने और लोगों के बीच बिगड़ते कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर बदलाव की अलख जगे और अंतत: इसका लाभ ममता सरकार के खिलाफ बीजेपी को वोटों के रूप में मिल सके.