आंध्र प्रदेश के सीएम जगनमोहन रेड्डी इस तरह पहुंचे फर्श से अर्श तक, सब्र और संघर्ष से भरा है ये सफर

पिता राजशेखर रेड्डी के अचानक निधन के बाद कांग्रेस आलाकमान की उपेक्षा और आय से अधिक संपत्ति मामले में जेल जाने से लेकर नई पार्टी वाईएसआर कांग्रेस के गठन तक जगनमोहन रेड्डी ने जीवन में काफी उतार-चढ़ाव देखा.

आंध्र प्रदेश के सीएम जगनमोहन रेड्डी इस तरह पहुंचे फर्श से अर्श तक, सब्र और संघर्ष से भरा है ये सफर

खास बातें

  • सब्र और संघर्ष ने जगनमोहन रेड्डी को मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचा दिया
  • कांग्रेस की उपेक्षा का शिकार हुए और आय से अधिक संपत्ति मामले में जेल गए
  • 2009 में हेलीकॉप्टर दुर्घटना में उनके पिता की मौत के बाद बदल गया जीवन
नई दिल्ली:

पिता राजशेखर रेड्डी के अचानक निधन के बाद कांग्रेस आलाकमान की उपेक्षा और आय से अधिक संपत्ति मामले में जेल जाने से लेकर नई पार्टी वाईएसआर कांग्रेस (YSR Congress Party) के गठन तक जगनमोहन रेड्डी (Jaganmohan Reddy) ने जीवन में काफी उतार-चढ़ाव देखा लेकिन आखिरकार उनके सब्र और संघर्ष ने उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचा दिया. छोटे कारोबारी से शक्तिशाली नेता तक के दो दशक लंबे अपने करियर में वाईएसआर कांग्रेस अध्यक्ष जगनमोहन रेड्डी ने अच्छे और बुरे दिन दोनों देखे हैं. कारोबारी के रूप में रेड्डी का एक दशक तक का करियर बिना किसी परेशानी वाला था लेकिन दूसरे दशक में राजनीति में आने के बाद उनकी जिन्दगी काफी उथल-पुथल भरी रही. तमाम बाधाओं के बावजूद उन्होंने आंध्र प्रदेश में शानदार जीत हासिल की और गुरुवार को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. रेड्डी ने विजयवाड़ा के आईजीएमसी स्टेडियम में आयोजित समारोह में पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं की उपस्थिति में दोपहर 12 बजकर 23 मिनट पर तेलुगू भाषा में शपथ ली. 

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उनकी पार्टी वाईएसआर कांग्रेस ने आम चुनावों के साथ हुए आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव में 175 में से 151 सीटें जीती हैं. इतना ही नहीं, उनकी पार्टी ने राज्य की 25 लोकसभा सीटों में से 22 पर जीत दर्ज की है. वाईएसआर कांग्रेस ने पांच साल पहले तेलंगाना के गठन के बाद आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने एन. चन्द्रबाबू नायडू की तेदेपा को बुरी तरह हराया है. दरअसल 10 साल के इंतजार के बाद यह खुशी का पल 47 वर्षीय नेता के जीवन में आया है. आंध्र प्रदेश (अविवाभाजित) के पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत वाई एस राजशेखर रेड्डी के इकलौते बेटे जगनमोहन रेड्डी ने अपना कारोबारी करियर 1999-2000 में पड़ोसी राज्य कर्नाटक में संदूर नाम की एक पावर कंपनी स्थापित कर शुरू किया था. इस कंपनी को उन्होंने पूर्वोत्तर भारत तक पहुंचाया. उनके पिता राजशेखर रेड्डी के 2004 में मुख्यमंत्री बनने के बाद उनका कारोबार फलने-फूलने लगा और उन्होंने सीमेंट संयंत्र, मीडिया और विनिर्माण क्षेत्र में भी प्रसार शुरू किया.

जगन की राजनीतिक महत्वाकांक्षा का पहली बार 2004 में पता चला. उन्होंने कडप्पा से सांसद बनने की कोशिश की थी लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने उनकी इस इच्छा को वहीं दफन कर दिया. इसके बाद उन्हें अपना सपना पूरा करने के लिए 2009 तक प्रतीक्षा करनी पड़ी और आखिरकार कडप्पा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में जीत दर्ज कर उन्होंने राजनीति में कदम रखा. लेकिन 2009 में हेलीकॉप्टर दुर्घटना में उनके पिता की मौत के बाद उनके लिए सब कुछ बदल गया. रेड्डी मुख्यमंत्री बनने के लिए सोनिया गांधी से भी मिले लेकिन उनकी बात नहीं बनी. उन्हें पिता की मौत के बाद राज्य में श्रद्धांजलि यात्रा तक निकालने की अनुमति नहीं मिली. हालात ऐसे हो गए कि 177 में से 170 विधायकों ने उन्हें अपना समर्थन दे दिया. इसके बावजूद कांग्रेस ने सबकुछ नजरंदाज कर रोसैय्या को राज्य का नया मुख्यमंत्री बना दिया. इस फैसले से नाराज रेड्डी ने कांग्रेस से अलग होकर नयी पार्टी के गठन का ऐलान किया.

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रेड्डी ने साल 2011 में वाईएसआर कांग्रेस का गठन किया और अपने बूते पर राजनीतिक संघर्ष शुरू कर दिया. 18 कांग्रेस विधायकों के कांग्रेस छोड़कर वाईएसआर में आने के बाद वहां इन सीटों पर साल 2012 में उपचुनाव हुए. इस उपचुनाव में जगहमोहन रेड्डी की पार्टी ने सबको चौंका दिया और 18 में से 15 सीटों पर जीत दर्ज कर ली. इसके बाद रेड्डी कांग्रेस और चंद्रबाबू नायडू की पार्टी तेदेपा से टक्कर लेते रहे जिस दौरान उन्हें जेल तक जाना पड़ा. इस दौरान वह 2014 के चुनाव में तेदेपा के हाथों हार गए. राजनीति का गणित समझने में रेड्डी के लिए उनकी 341 दिन की पदयात्रा बेहद महत्वपूर्ण रही. 2014 की हार के बाद रेड्डी ने जनता तक पहुंचने और लोगों से मिलकर उन्हें समझने और समझाने के लिए नवंबर 2017 से कडप्पा जिले के इडुपुलापाया से पदयात्री शुरू की. इस दौरान वह राज्य के 134 विधानसभा क्षेत्रों में गए जहां उन्होंने करीब दो करोड़ लोगों से मुलाकात की. उनकी इस यात्रा ने लोगों को उनसे जोड़ा. उनकी पदयात्रा जनवरी 2019 में समाप्त हुई. (इनपुट: भाषा)