बच्‍चों की सफलता के लिए बेहद जरूरी हैं स्‍वामी विवेकानंद के ये प्रमुख विचार

बच्‍चों की सफलता के लिए बेहद जरूरी हैं स्‍वामी विवेकानंद के ये प्रमुख विचार

नई दिल्‍ली:

कहा जाता है कि किताबें हमेशा जिंदा रहती हैं और किताबों के अक्षर ज्ञान का प्रतीक हैं. कहा जाता है कि किताबों से प्रेरणा लेकर इंसान किसी भी हालात का सामना करा सकता है. 2 अप्रैल को इंटरनेशन चिल्‍ड्रेन्‍स बुक डे है. इस मौके पर हम बच्‍चों के लिए ऐसी ही ज्ञान की बातें बता रहे हैं जो बच्‍चों के लिए प्रेरणा बन सकती हैं.

स्वामी विवेकानंद को दुनिया भर में युवाओं के लिए एक मिसाल माना जाता है और उनका नाम आते ही मन में श्रद्धा और स्‍फूर्ति दोनों का संचार होने लगता है. स्‍वामी विवेकानंद से जुड़ी कई कहानियां और किस्‍से हैं जो जीवन और उद्देश्य बदलने के लिए प्रेरणा बन सकती हैं.

स्‍वामी विवेकानंद के विचार, जिन्‍हें पढ़ बदल जाएगी आपकी सोच...

संस्कृति वस्त्रों में नहीं चरित्र में

एक बार स्वामी जी विदेश गए. उनका भगवा वस्त्र और पगड़ी देख लोगों ने पूछा, आपका बाकी सामान कहां हैं? स्वामी जी बोले, बस यहीं है. इस पर लोगों ने व्यंग किया. फिर स्वामी जी बोले, हमारी संस्कृति आपकी संस्कृति से अलग है. आपकी संस्कृति का निर्माण आपके दर्जी करते हैं और हमारा चरित्र करता है.

रोटी इस पेट में नहीं, किसी और के पेट में सही
स्वामीजी अपना खाना खुद बनाते थे. वे एक बार अमेरिका में एक महिला के यहां रुके थे और खाना बना रहे थे कि कुछ भूखे बच्चे आ गए. उन्होंने सारी रोटियां उन्हें दे दी. महिला ने आश्चर्य होकर पूछा आपने सारी रोटियां उन्हें दे दी, आप क्या खाएंगे? स्वामीजी ने जवाब दिया रोटी तो पेट की ज्वाला शांत करने वाली है. इस पेट में न सही, उस पेट में ही सही.

जानें सच्चे पुरुषार्थ को
एक विदेशी महिला स्वामीजी से बोली, मै आपसे शादी करना चाहती हूं. स्वामीजी बोले, मैं संन्यासी हूं. महिला ने कहा, मैं आपके जैसा गौरवशाली पुत्र चाहती हूं, ये तभी संभव है जब आप मुझसे विवाह करेंगे. स्वामीजी बोले, आज से मैं ही आपका पुत्र बन जाता हूं. महिला स्वामीजी के चरणों में गिर गई और बोली, आप साक्षात ईश्वर हैं. सच्चे पुरुष वो ही हैं जो नारी के प्रति मातृत्व की भावना रखे.

गंगा नदी नहीं हमारी मां है
एक बार अमेरिका में कुछ पत्रकारों ने स्वामीजी से भारत की नदियों के बारे में प्रश्न पूछा, आपके देश में किस नदी का जल सबसे अच्छा है? स्वामीजी बोले- यमुना. पत्रकार ने कहा आपके देशवासी तो बोलते हैं कि गंगा का जल सबसे अच्छा है. स्वामी जी का उत्तर था, कौन कहता है गंगा नदी हैं, वो तो हमारी मां हैं. यह सुनकर सभी लोग स्तब्ध रह गए.

डर से मत भागो, डटकर सामना करो
एक बार स्वामीजी को बहुत सारे बंदरों ने घेर लिया. खुद को बचाने के लिए वे भागने लगे, पर बंदर उन्हें दौड़ाने लगे. पास खड़े एक संन्यासी ने स्वामीजी को रोका और बोला, रुको और उनका सामना करो. ऐसा करते ही बंदर डरकर भाग गए. स्वामीजी को सीख मिली. कुछ सालों बाद उन्होंने एक संबोधन में कहा भी, अगर किसी चीज से डर हो तो उससे भागो मत, उसका सामना करो.

सिर्फ लक्ष्य पर ध्यान लगाओ
स्वामी विवेकानंद ने एक बार पुल पर खड़े कुछ लड़कों को नदी में बह रहे अंडे के छिलकों पर निशाना लगाते देखा. किसी का एक भी निशाना सहीं नहीं लग रहा था. उन्होंने एक लड़के की बंदूक ली और लगातार 12 सही निशाने लगाए. ये देख लड़कों ने पूछा आप ये कैसे कर लेते हैं? स्वामीजी बोले, जो भी करो पूरा ध्यान अपने लक्ष्य पर रखो. तुम भी कभी नहीं चूकोगे.

मां से बड़ा धैर्यवान कोई नहीं
स्वामीजी से एक व्यक्ति ने प्रश्न किया, मां की महिमा संसार में क्यों गाई जाती है? स्वामीजी बोले, 5 सेर का पत्थर अपने पेट पर बांध लो और 24 घंटे बाद मेरे पास आना. उस व्यक्ति ने ऐसा ही किया. जब वह थका हारा आया तो स्वामीजी बोले, यह बोझ तुमसे कुछ घंटे भी नहीं उठाया गया. मां अपने गर्भ में शिशु को नौ माह तक ढोती है और सारा काम करती है. संसार में मां के सिवा कोई इतना धैर्यवान नहीं हो सकता.

दूसरों के पीछे ना भागो
एक बार एक व्यक्ति स्वामीजी से बोला, काफी मेहनत के बाद भी मै सफल नहीं हो पा रहा. स्वामीजी बोले, तुम मेरे कुत्ते को सैर करा लाओ. जब वह वापस आया तो कुत्ता थका हुआ था और उसका चेहरा चमक रहा था. स्वामीजी ने कारण पूछा तो उसने बताया, कुत्ता गली के कुत्तों के पीछे भाग रहा था, जबकि मैं सीधे रास्ते चल रहा था. स्वामीजी बोले यहीं तुम्हारा जवाब है. तुम अपनी मंजिल पर जाने के बजाय दूसरों के पीछे भागते रहते हो.

हमेशा सच बोलना चाहिए
एक बार स्वामीजी क्लास में दोस्तों को कहानी सुना रहे थे. तभी मास्टरजी आए और पढ़ाना शुरू कर दिया. जब मास्टरजी छात्रों से प्रश्न पूछने लगे तो कोई उत्तर नहीं दे सका, पर स्वामीजी ने उत्तर दे दिया. उन्हें छोड़ सभी को सजा मिली, तब स्वामीजी बोले मैं ही इनसे बात कर रहा था. सच बोलने की हिम्मत देख मास्टर जी बहुत प्रभावित हुए.


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