सरकारी स्कूल के बच्चों के पास नहीं थी खुद की स्कूल बिल्डिंग, रेल कर्मियों ने ट्रेन कोच को ही बना डाला क्लासरूम

कर्नाटक के मैसूर की एक कक्षा के छात्र ट्रेन के कोच में पढ़ेंगे, जिसका श्रेय दक्षिण-पश्चिम रेलवे के कर्माचारियों को जाता है.

सरकारी स्कूल के बच्चों के पास नहीं थी खुद की स्कूल बिल्डिंग, रेल कर्मियों ने ट्रेन कोच को ही बना डाला क्लासरूम

दक्षिम पश्चिम रेल कर्मियों ने खराब कोच का क्लासरूम में बदल दिया है.

खास बातें

  • दक्षिण पश्चिम रेलवे कर्मियों ने ट्रेन कोच को क्लारूम में किया तब्दील
  • बच्चों के पास नहीं थी स्कूल बिल्डिंग
  • गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों के बच्चे पढ़ेंगे इन क्लासरूम में
बेंगलुरू:

बच्चों का स्कूलों के प्रति आकर्षण बढ़े और बच्चे स्कूल आएं इसके लिए सरकारें न जाने क्या-क्या प्रयास करती रहती हैं. इनमें स्कूल को आकर्षक रंगों से रंगना, दीवारों पर कार्टून बनाना, जानवर बनाना, खेलने की चीजें बनाने जैसी चीजें शामिल रहती हैं. आमतौर पर स्कूलों को टॉय ट्रेन की शक्ल देनी की कोशिश की जाती है जिससे बच्चों को स्कूल आना अच्छा लगे. बच्चों के लिए क्लासरूम की दीवारों को लाल, पीले नीले रंग में रंगा जाता है जिससे बच्चों को ऐसा लगे कि वे वाकई ट्रेन में हैं. क्लारूम को ट्रेन के कम्पार्टमेंट की शक्ल देने की कोशिश की जाती है. लेकिन कर्नाटक के मैसूर की एक कक्षा के छात्र वाकई ट्रेन के कोच में ही पढ़ेंगे. जिसका श्रेय दक्षिण-पश्चिम रेलवे के कर्माचारियों को जाता है. दरअसल, रेलवे कर्मचारियों ने दो ट्रेन कोच को क्लारूम में तब्दील कर दिया है. जिसके बाद इन क्लास रूम रूपी ट्रेन कोच को रेलवे कॉलोनी प्राथमिक विद्यालय मैसूर को दान कर दिया गया है.  

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इन ट्रेन कोच का नाम 'नली कली' रखा गया है जिसका अर्थ होता है खुशी से सीखना. टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक इन क्लास रूम का उद्घाटन पिछले हफ्ते किया गया है. इन कोच पर नया पेंट किया गया है और पंखे लगाए गए हैं. इन कोच को क्लासरूम की शक्ल पी श्रीनिवासू और उनके साथियों की कार्यशाला में दी गई है. श्रीनिवासू ने बताया," हमने कोच को क्लारूम बनाने में तकरीबन 50 हजार रुपये खर्च किए हैं. यह हम सबका सामूहिक प्रयास है और इसे कॉरपोरेट सोशल रिस्‍पॉन्‍सबिलिटी के तहत किया गया है. ये क्लासरूम जिन बच्चों के लिए बनाया गया है वे गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों से आते हैं." 

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बता दें कि सरकारी स्कूल के पास खुद की कोई इमारत नहीं थी. जिसके चलते बीते 20 सालों से छात्र एक वर्कशॉप में ही पढ़ रहे थे. एक रेल कर्मी ने बताया कि नए क्लासरूम से शिक्षक और छात्रों को प्रोत्साहन मिलेगा. श्रीनिवासू ने बताया कि कोच में क्लारूम बनाने के लिए पंखे और लाइट की बढ़िया व्यवस्था की गई है जिससे छात्रों के पढ़ने के लिए माहौल बन सके. इसके अलावा कोच में दो बायो टॉयलेट बनाए गए हैं. एक ट्रेन कोच में टीचिंग एड की व्यवस्था की गई है जहां चौथी और पांचवीं के छात्र पढ़ेंगे. इसके अलावा एक कोच में छात्रों को एक्टिविटी कराई जाएगी. कोच के बाहरी हिस्से को ईकोलॉजिकल थीम के साथ पेंट किया गया है.