साहित्य

न्यूयॉर्क टाइम्स की वर्ष 2020 की 100 उल्लेखनीय किताबों की सूची में तीन भारतीय लेखक शामिल

न्यूयॉर्क टाइम्स की वर्ष 2020 की 100 उल्लेखनीय किताबों की सूची में तीन भारतीय लेखक शामिल

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प्रतिष्ठित अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने इस वर्ष की 100 उल्लेखनीय किताबों की सूची जारी की है, जिसमें आलोचकों की प्रशंसा पा चुके तीन भारतीय लेखकों की किताबें भी शामिल हैं. इस सूची में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बाराक ओबामा का संस्मरण ‘ए प्रॉमिस्ड लैंड’ भी शामिल है.

Book Review: सादतपुर के हरिपाल त्यागी

Book Review: सादतपुर के हरिपाल त्यागी

Book Review: बड़ी मुखानी, हल्द्वानी, नैनीताल उत्तराखंड से निकलती आधारशिला पत्रिका अपने को साहित्य, कला, संस्कृति की अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका कहती है. अपने दो सौवें अंक को विश्वश्रमिक दिवस 2019 को कला परिदृश्य से अनंत यात्रा पर निकल जानेवाले कलाकार हरिपाल त्यागी पर केंद्रित किया.

डगलस स्टुअर्ट के उपन्यास ‘शग्गी बैन’ को मिला 2020 का बुकर पुरस्कार

डगलस स्टुअर्ट के उपन्यास ‘शग्गी बैन’ को मिला 2020 का बुकर पुरस्कार

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न्यूयॉर्क में बसे स्कॉटलैंड के लेखक डगलस स्टुअर्ट को बृहस्पतिवार को उनके पहले उपन्यास ‘शग्गी बैन’ के लिए उन्हें 2020 का बुकर पुरस्कार मिला है. ‘शग्गी बैन’ की कहानी में ग्लासगो की पृष्ठभूमि है. दुबई में बसी भारतीय मूल की लेखिका अवनी दोशी का पहला उपन्यास ‘बर्नंट शुगर’ भी इस श्रेणी में नामित था. कुल छह लोगों के उपन्यास नामित थे.

पाउलो कोएलो की नई पुस्तक चुनौतियों का सामना करने को प्रेरित करती है

पाउलो कोएलो की नई पुस्तक चुनौतियों का सामना करने को प्रेरित करती है

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बेस्टसेलिंग लेखक पाउलो कोएलो (Paulo Coelho) की नवीनतम किताब “द आर्चर” (The Archer) पाठकों को जोखिम उठाने, साहस दिखाने और किस्मत की अप्रत्याशित चुनौतियों को पूरे साहस से गले लगाने को प्रेरित करती है. प्रकाशन कंपनी पेंगुइन ने मंगलवार को यह जानकारी दी.  क्रिस्टोफ नीमन द्वारा डिजाइन की गई तस्वीरों वाली इस किताब का पुर्तगाली से अंग्रेजी में अनुवाद मार्गरेट जुल कोस्टा ने किया है.

अल्लामा इक़बाल: कवि, समाज सुधारक और राजनीतिक कार्यकर्ता की शख्सियत

अल्लामा इक़बाल: कवि, समाज सुधारक और राजनीतिक कार्यकर्ता की शख्सियत

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सर अल्लामा मुहम्मद इकबाल (9 नवंबर 1877- 21 अप्रैल 1938) एक कवि, लेखक, दार्शनिक, समाज सुधारक, राजनीतिक कार्यकर्ता और कल्पना से परे शख्सियत थे. हालांकि वह पेशे से वकील थे और उनके 106 मामलों को तारीखी ( landmark) रूप में बताया जाता है, जो आज तक का रिकॉर्ड है. सियालकोट में जन्मे इकबाल की प्रारंभिक शिक्षा मदरसे और बाद में गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर से हुई. उस समय के प्रतिष्ठित विद्वानों, मीर हसन और थॉमस वॉकर अर्नोल्ड का उनके विचारों पर गहरा प्रभाव था उनकी कानून और पीएचडी (दर्शनशास्त्र) की उच्च शिक्षा क्रमशः इंग्लैंड और जर्मनी में हुई. इकबाल को कई विश्वविद्यालयों द्वारा प्रोफेसर के रूप में रखने की पेशकश की गई थी, लेकिन वह ऐसी नौकरियों से मुक्त होने और रचनात्मक लेखन पर ध्यान केंद्रित करना पसंद करते थे.

Lamhi Book Review: रेणु के पाठ की तैयारी

Lamhi Book Review: रेणु के पाठ की तैयारी

Lamhi Book Review: संपादकीय के अलावा इस अंक में कुल अड़तीस आलेख हैं. निर्मल वर्मा, सुरेंद्र चौधरी और नित्यानंद तिवारी के प्रसिद्ध लेख तो इस अंक में शामिल हैं ही, साथ ही नलिन विलोचन शर्मा का वह कालजयी लेख भी है, जिसमें मैला आंचल के प्रकाशन के तुरंत बाद उन्होंने रेणु के बारे में कहा था कि मैला आंचल की भाषा से हिंदी समृद्ध हुई है.

अपनी अलग कथा-प्रविधि गढ़ता एक लेखक

अपनी अलग कथा-प्रविधि गढ़ता एक लेखक

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वह कहानी जिसकी चर्चा के बिना यह टिप्पणी अधूरी रहेगी. दरअसल यह कहानी जितनी लेखक के लिए चुनौती भरी है उतनी ही आलोचक के लिए भी. ‘एक राजा था जो सीताफल से डरता था’ नाम की यह कहानी हालांकि संग्रह के प्रकाशन से पहले भी चर्चित हो चुकी है. यह पूरी तरह फंतासी से पैदा हुई कथा है- इसमें कुछ लोककथा का रंग शामिल है, लेकिन यह लोककथा नहीं है.

किताब की बात: क्या बिहार में मरते रहेंगे बच्चे, बिकती रहेंगी बेटियां?

किताब की बात: क्या बिहार में मरते रहेंगे बच्चे, बिकती रहेंगी बेटियां?

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बीते साल बिहार में नीतीश कुमार ने खादी के एक मॉल का उद्घाटन किया. इसमें शक नहीं कि खादी बिकनी चाहिए. लेकिन क्या गांधी ने खादी की कल्पना एक ऐसे कपड़े के रूप में की थी जो मॉल में बिके? गांधी की खादी बिक्री के लिए नहीं, बुनकरी के लिए थी, गरीबों के लिए थी. बताने की ज़रूरत नहीं कि गांधी की खादी का यह बाज़ारीकरण दरअसल उस नई सत्ता संस्कृति का द्योतक है जिसके तहत सारा विकास एक ख़ास वर्ग को संबोधित होता है और उसे बाज़ार की कसौटी पर खरा उतरना होता है.

हिन्दुस्तान, हिन्दुस्तानी बच्चे, और हिन्दी की हालत...

हिन्दुस्तान, हिन्दुस्तानी बच्चे, और हिन्दी की हालत...

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जो बच्चा आज उनतालीस, उनचास, उनसठ, उनत्तर और उनासी के बीच फर्क नहीं समझेगा, उसके लिए आने वाले दिनों में आम देशवासियों से बात करना, और देश के गौरव को समझना क्योंकर मुमकिन होगा... सो, आइए, भाषागत राजनीति में उलझे बिना ऐसे काम करें, जिससे हिन्दी और समृद्ध, और सशक्त हो...

हिन्दी दिवस 2020: खेलिए यह हिन्दी क्विज़, और जांचिए, कितनी हिन्दी जानते हैं आप...

हिन्दी दिवस 2020: खेलिए यह हिन्दी क्विज़, और जांचिए, कितनी हिन्दी जानते हैं आप...

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हिन्दी दिवस (14 सितंबर) के अवसर पर हम आपके लिए लाए हैं, हिन्दी के 25 ऐसे शब्द, जिन्हें आमतौर पर, या कहिए, बहुधा गलत वर्तनी (यानी spellings) के साथ लिखा जाता है... सो आप हमें बताइए, इन शब्दों की सही वर्तनी क्या है, क्योंकि इस क्विज़ से इससे न सिर्फ हम जान पाएंगे, हमारे कितने पाठक हिन्दी के कितने अच्छे ज्ञाता हैं, बल्कि आप खुद भी जान पाएंगे, आपका हिन्दी ज्ञान कितना बढ़िया है...

पुस्तक समीक्षाः जीवन के साथ विसंगतियों से रू-ब-रू कराती हैं ‘पिघली हुई लड़की’ की कहानियां

पुस्तक समीक्षाः जीवन के साथ विसंगतियों से रू-ब-रू कराती हैं ‘पिघली हुई लड़की’ की कहानियां

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पिघली हुई लड़की कहानी समाज में आए दिन होने वाले एसिड अटैक के मद्देनज़र लिखी गई है. आकांक्षा ने दो किशोरियों के माध्यम से अपनी कहानी कही है.

Book Review: डर को हराने का तरीका है एम्ब्रेस योर फीयर

Book Review: डर को हराने का तरीका है एम्ब्रेस योर फीयर

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'डर के आगे जीत है' यह बात आपने खूब सुनी होगी. लेकिन अपने डर को कैसे हराना है इसे बहुत कम ही लोग बाया करते हैं. हाल ही में सारा खान की लिख किताब एम्ब्रेस योर फीयर का विमोचन किया गया.

हिंदी का मुकाबला अंग्रेजी से नहीं, खुद हिंदी से ही है: प्रभात रंजन

हिंदी का मुकाबला अंग्रेजी से नहीं, खुद हिंदी से ही है: प्रभात रंजन

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आज की हिंदी नई और आत्मविश्वास से भरी हुई दिखाई देती है. पहले अधिकतर लेखक हिंदी विभागों से निकलते थे, आज अलग-अलग पृष्ठभूमियों के लेखक बड़ी संख्या में सामने आ रहे हैं. मुझे यह अधिक उत्साहवर्धक दिखता है कि आज हिंदी किताबों को पढ़ना शर्म की बात नहीं समझी जाती, हिंदी के लेखकों को बहुत जल्दी पहचान मिल जाती है. समाज के अलग अलग तबकों में हिंदी लेखकों को लेकर आकर्षण बढ़ गया है. यह देखकर अच्छा तो लगता ही है. लेकिन एक बात है कि अधिकतर लेखक आज बाज़ार को ध्यान में रखकर लिख रहे हैं, बिक्री के मानकों पर खरा उतरने के लिए लिख रहे हैं.

लॉकडाउन में घर में बैठे लोगों के लिए सौरभ शुक्ला जैसे हस्तियों ने फेसबुक लाइव से शेयर किए अपने अनुभव

लॉकडाउन में घर में बैठे लोगों के लिए सौरभ शुक्ला जैसे हस्तियों ने फेसबुक लाइव से शेयर किए अपने अनुभव

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कोरोनावायरस के चलते देशभर में 21 दिन का लॉकडाउन देशभर में लागू है. लोग अपने घरों में कैद हैं और सोशल मीडिया का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं. ऐसे में सेलेब्स जहां एक ओर सोशल अकाउंट्स के जरिए अपने अनुभव साझा कर रहे हैं तो वहीं लेखक भी इससे इतर नहीं.

निर्मल वर्मा की जिंदगी और लेखनी में झांकने की खिड़की है 'संसार में निर्मल वर्मा'

निर्मल वर्मा की जिंदगी और लेखनी में झांकने की खिड़की है 'संसार में निर्मल वर्मा'

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'ससार में निर्मल वर्मा' में करण थापर से बातचीत के दौरान निर्मल वर्मा अपने जीवन से जुड़ी कई अहम जानकारी देते हैं. जैसे उन्होंने 11 साल की उम्र में पहली कहानी लिखी थी...

पुस्तक समीक्षाः तीखे और कसैले हैं 'कबीरा बैठा डिबेट में' के व्यंग्य

पुस्तक समीक्षाः तीखे और कसैले हैं 'कबीरा बैठा डिबेट में' के व्यंग्य

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Book Review: 'कबीरा बैठा डिबेट में' (Kabira Baitha Debate Mein) किताब के लेखक पीयूष खुद मीडिया से जुड़े हैं. ऐसे में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के हर चेहरे को उन्होंने बखूबी व्यंग्यों में पेश किया है. कई व्यंग्यों में कबीरदास को टीवी डिबेट का भाग बनाया गया है. और इसके साथ ही साथ कई मीडिया और समाज की विसंगतियों को कहीं तीखे, तो कहीं कसैले तड़के लगाए गए हैं. 

'बदलाव और निरंतरता वाला शहर है दिल्ली'

'बदलाव और निरंतरता वाला शहर है दिल्ली'

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दिल्ली भारत की राजधानी के अलावा तेजी से बढ़ता हुआ एक शहर है. इस शहर की अपनी एक संस्कृति है, एक अलग रंग है, एक अलग बनावट है. दिल्ली के अलग-अलग क्षेत्रों पर कई किताबे लिखी जा चुकी है. लेकिन पूरे दिल्ली के इतिहास को एक जगह समग्र रुप में नहीं लिखा गया था. दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास की प्रोफेसर डॉ. मनीषा चौधरी ने दिल्ली के इतिहास पर अपनी एक किताब लिखी है(Delhi A History).

नाट्य समीक्षा : भारत रंग महोत्सव में आज के हालात का स्वाद देने वाले 'सुदामा के चावल'

नाट्य समीक्षा : भारत रंग महोत्सव में आज के हालात का स्वाद देने वाले 'सुदामा के चावल'

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भगवान कृष्ण और सुदामा की मित्रता की पौराणिक कथा दोस्ती की मिसाल के रूप में उद्धृत की जाने वाली कहानी है. लेकिन इस सीधी सपाट कहानी में सुदामा के चरित्र का कोई प्रतिपक्ष भी हो सकता है. द्वापर युग के सुदामा के चरित्र की यदि कलयुग की परिस्थितियों में कल्पना की जाए तो उसमें आज की दूषित मानसिकता भी दिखाई दे सकती है. कहानी वही है, चरित्र भी वही हैं लेकिन इन चरित्रों का आचार-विचार वह है जो आज के आम जीवन में देखा जाता है. नाटक 'सुदामा के चावल' में इस पौराणिक कथा की प्रभावी प्रस्तुति हुई. राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के प्रतिष्ठित आयोजन 'भारत रंग महोत्सव' के तहत रविवार को दिल्ली के कमानी थिएटर में हुई इस शानदार नाट्य प्रस्तुति का प्रेक्षकों ने जमकर आनंद लिया. प्रस्तुति के दौरान हाल कई बार तालियों और ठहाकों से गूंजा.

पद्मश्री से सम्मानित और ‘पहला गिरमिटिया’ के लेखक गिरिराज किशोर का निधन

पद्मश्री से सम्मानित और ‘पहला गिरमिटिया’ के लेखक गिरिराज किशोर का निधन

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गिरिराज का जन्म आठ जुलाई 1937 को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फररनगर में हुआ था. उनके पिता ज़मींदार थे. गिरिराज ने कम उम्र में ही घर छोड़ दिया और स्वतंत्र लेखन किया. वह जुलाई 1966 से 1975 तक कानपुर विश्वविद्यालय में सहायक और उपकुलसचिव के पद पर सेवारत रहे तथा दिसंबर 1975 से 1983 तक आईआईटी कानपुर में कुलसचिव पद की जिम्मेदारी संभाली. राष्ट्रपति द्वारा 23 मार्च 2007 में साहित्य और शिक्षा के लिए गिरिराज किशोर को पद्मश्री पुरस्कार से विभूषित किया गया.

इस बार जयपुर में समानांतर साहित्य उत्सव में गांधी और युवाओं पर होंगे विशेष सत्र

इस बार जयपुर में समानांतर साहित्य उत्सव में गांधी और युवाओं पर होंगे विशेष सत्र

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आमतौर पर इसका आयोजन जयपुर लिटरेचर फेस्टीवल (JLF) के साथ किया जाता है, लेकिन इस बार यह लगभग एक महीने बाद 21 से 23 फरवरी को होगा. इस बार आयोजन स्थल भी रविंद्र मंच के बजाय जवाहर कला केंद्र का शिल्पग्राम होगा. संघ के मुख्य संयोजक ईशमधु तलवार ने बताया कि इस बार PLF में पांच मंचों पर लगभग सौ सत्र तीन दिन में आयोजित किए जाएंगे.

 
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