झाड़ियों में घुसकर चूमते प्रेमियों को पकड़ने वाले समाज में अंकित की मौत अंतिम नहीं

काश, हम अंकित के प्यार को जवान होते देख पाते. मरने से पहले भी दोनों मौत की आशंका में ही प्यार कर रहे थे.

झाड़ियों में घुसकर चूमते प्रेमियों को पकड़ने वाले समाज में अंकित की मौत अंतिम नहीं

दिल्ली के ख्याला क्षेत्र के रघुवीर नगर में अंकित सक्सेना का कत्ल कर दिया गया था...

अंकित सक्सेना. चुपचाप उसकी ख़ुशहाल तस्वीरों को देखता रहा. एक ऐसी ज़िंदगी ख़त्म कर दी गई, जिसके पास ज़िंदगी के कितने रंग थे. वह मुल्क कितना मायूस होगा, जहां प्रेम करने पर तलवारों और चाकुओं से प्रेमी काट दिया जाता है. इस मायूसी में किसी के लिखे का वही इंतज़ार कर रहे हैं, जो पहले से ख़ून के प्यासे हो चुके हैं. अलार्म लेकर बैठे रहे कि कब लिख रहा हूं, अब लिख रहा हूं या नहीं लिख रहा हूं. गिद्धों के समाज में लिखना हाज़िरी लगाने जैसा होता जा रहा है.

काश, हम अंकित के प्यार को जवान होते देख पाते. मरने से पहले भी दोनों मौत की आशंका में ही प्यार कर रहे थे. अंकित की माशूका ने तो अपने ही मां-बाप को घर में बंद कर दिया. हमेशा के लिए भाग निकलने का फ़ैसला कर लिया. भारत में बग़ावत के बग़ैर मोहब्बत कहां होती है. आज भी लड़कियां अपने प्यार के लिए भाग रही हैं. उनके पीछे-पीछे जाति और धर्म की तलवार लिए उनके मां-बाप भाग रहे हैं.

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उस प्रेमिका पर क्या बीत रही होगी, जिसने अपने अंकित को पाने के लिए अपने घर को हमेशा के लिए छोड़ दिया. उस मेट्रो की तरफ़ भाग निकली, जिसके आने से आधुनिक भारत की आहट सुनाई देती है. दूसरे छोर पर अंकित की मां की चीखती तस्वीरें रुला रही हैं. दोनों तरफ बेटियां हैं, जो तड़प रही हैं, बेटा और प्रेमी मार दिया गया है.

अंकित भी भागकर उसी मेट्रो स्टेशन के पास जा रहा था, जहां वह इंतज़ार कर रही थी. काश वह पहुंच जाता. उस रोज़ दोनों किसी बस में सवार हो जाते. ग़ुम हो जाते नफ़रतों से भरे इस संसार में, छोड़कर अपनी तमाम पहचानों को. मगर कमबख़्त उसकी कार प्रेमिका की मां की स्कूटी से ही टकरा गई. अख़बारों में लिखा है कि मां ने जानबूझकर टक्कर मार दी. अंकित घिर गया. उसका गला काट दिया गया.

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अंकित सक्सेना हिन्दू था. उसकी प्रेमिका मुस्लिम है. प्रेमिका की मां मुसलमान हैं. प्रेमिका का भाई मुसलमान है. प्रेमिका का बाप मुसलमान है. प्रेमिका का चाचा मुसलमान है. मुझे किसी का धर्म लिखने में परहेज़ नहीं है. मैं न भी लिखूं तो भी नफ़रत के नशे में ट्रोल समाज को कोई फर्क नहीं पड़ता है. उसे सिर्फ हिन्दू दिखेगा, मुसलमान दिखेगा. ग़र यही कहानी उल्टी होती. प्रेमिका हिन्दू होती, प्रेमी मुसलमान होता और दोनों के मां-बाप राज़ी भी होते, तब भी अंकित की हत्या पर सियासी रस लेने वाला तबका घर के बाहर हंगामा कर रहा होता. अभी तो ऐसे ट्रोल कर रहा है, जैसे दोनों की शादी के लिए ये बैंड-बारात लेकर जाने वाले थे. ऐसी शादियों के ख़िलाफ़ नफ़रत रचने वाले कौन हैं...?

ग़ाज़ियाबाद में हिन्दू लड़की के पिता ने कितनी हिम्मत दिखाई. वे लोग बवाल करने आ गए, जिन्हें न हिन्दू लड़की ने कभी देखा, न कभी मुस्लिम लड़के ने. फिर भी पिता ने अपनी बेटी की शादी की और उसी शहर में रहते हुए की. शादी के दिन घर के बाहर लोगों को लेकर एक पार्टी का जिला अध्यक्ष पहुंच गया. हंगामा करने लगा. बाद में उसकी पार्टी ने अध्यक्ष पद से ही हटा दिया. कौन किससे प्रेम करेगा, इसके ख़िलाफ़ सियासी शर्तें कौन बना रहा है, उन शर्तों का समाज के भीतर कैसा असर हो रहा है, कौन ज़हर से भरा जा रहा है, कौन हत्या करने की योजना बना रहा है, आप ख़ुद सोच सकते हैं. नहीं सोच सकते हैं, तो कोई बात नहीं. इतना आसान नहीं है. आपके भीतर भी हिंसा की वे परतें तो हैं, जहां तक पहुंचकर आप रुक जाते हैं.

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इस माहौल ने सबको कमज़ोर कर दिया है. बहुत कम हैं, जो ग़ाज़ियाबाद के पिता की तरह अपनी कमज़ोरी से लड़ पाते हैं. कोई ख़्याला के मुस्लिम मां-बाप की तरह हार जाता है और हत्यारा बन जाता है. काश, अंकित की प्रेमिका के माता-पिता और भाई कम से कम अपनी बेटी और बहन को जागीर न समझते. न अपनी, न किसी मज़हब की. नफ़रत ने इतनी दीवारें खड़ी कर दीं, हमारे भीतर हिंसा की इतनी परतें बिठा दी हैं कि हम उसी से लड़ते-लड़ते या तो जीत जाते हैं या फिर हारकर हत्यारे बन जाते हैं.

कोयम्बटूर की कौशल्या और शंकर तो हिन्दू ही थे. फिर शंकर को क्यों सरेआम धारदार हथियार से मारा गया...? क्यों कौशल्या के माता-पिता ने उसके प्रेमी शंकर की हत्या की साज़िश रची. शंकर दलित था. कौशल्या अपर कास्ट. दोनों ने प्यार किया. शादी कर ली. ख़रीदारी कर लौट रहे थे, कौशल्या के मां-बाप ने गुंडे भेजकर शंकर को मरवा दिया. वह वीडियो ख़तरनाक है. यह घटना 2016 की है.

कौशल्या पहले दिन से ही कहती रही कि उसके मां-बाप ही शंकर के हत्यारे हैं. एक साल तक इस केस की छानबीन चली और अंत में सज़ा भी हो गई. इतनी तेज़ी से ऑनर किलिंग के मामले में अंज़ाम तक पहुंचने वाला यह फ़ैसला होगा. आप इस केस की डिटेल इंटरनेट से खोजकर ग़ौर से पढ़िएगा. बहुत कुछ सीखेंगे. ईश्वर अंकित की प्रेमिका को साहस दे कि वह भी कौशल्या की तरह गवाही दे. उन्हें सज़ा की अंतिम मंज़िल तक पहुंचा दे. उसने बयान तो दिया है कि उसके मां-बाप ने अंकित को मारा है.

आप जितनी बार चाहें, नाम के आगे हिन्दू लगा लें, मुस्लिम लगा लें, उससे समाज के भीतर मौजूद हिंसा की सच्चाई मिट नहीं जाएगी. सांप्रदायिक फायदा लेने निकले लोग कुछ दिन पहले अफ़राज़ुल को काटकर और जलाकर मार दिए जाने वाले शंभु रैगर के लिए चंदा जमा कर रहे थे. ये वे लोग हैं, जिन्हें हर वक्त समाज को जलाने के लिए जलावन की लकड़ी चाहिए.

ऑनर किलिंग. इसका कॉकटेल नफ़रत की बोतल में बनता है, जिसमें कभी धर्म का रंग लाल होता है, तो कभी जाति का, तो कभी बाप का, तो कभी भाई का. ऑनर किलिंग सिर्फ प्रेम करने पर नहीं होती. बेटियां जब भ्रूण के आकार की होती हैं, तब भी वे इसी ऑनर किलिंग के नाम पर मारी जाती हैं. यह किस धर्म के समाज की सच्चाई है...? यह किस देश के समाज की समाज की सच्चाई है...? यह किस देश का नारा है, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ. हमें किनसे बचाना है अपनी बेटियों को...? हर बेटी के पीछे कई हत्यारे खड़े हैं. पहला हत्यारा तो उसके मां और बाप हैं.

धर्म और जाति ने हम सबको हमेशा के लिए डरा दिया है. हम प्रेम के मामूली क्षणों में गीत तो गाते हैं, परिंदों की तरह उड़ जाने के, मगर पांव जाति और धर्म के पिंजड़ें में फड़फड़ा रहे होते हैं. भारत के प्रेमियों को प्रेम में प्रेम कम, नफ़रत ज़्यादा नसीब होती है. इसके बाद भी सलाम कि वे प्रेम कर जाते हैं. जिस समाज में प्रेम के ख़िलाफ़ इतने सारे तर्क हों, उस समाज को अंकित की हत्या पर कोई शोक नहीं है, वह फ़ायदे की तलाश में है. अंकित के पिता ने कितनी बड़ी बात कह दी. उनकी बेटे की मौत के बाद इलाके में तनाव न हो.

कोई शांत नहीं हुआ है, कोई तनाव कम नहीं हुआ है. 'लव जिहाद' और 'एन्टी रोमियो दल' बनाकर निकले दस्तों ने बेटियों को क़ैद कर दिया है. उनके लिए हर हत्या उनके लिए आगे की हत्याओं की ख़ुराक है. जो हत्यारे हैं, वही इस हत्या को लेकर ट्रोल कर रहे हैं कि कब लिखोगे. ज़रा अपने भीतर झांक लो कि तुम क्या कर रहे हो. तुम वही हो न, जो पार्कों से प्रेमियों को उठाकर पिटवाते हो. क्या तुम मोहब्बत की हत्या नहीं करते...? क्या तुम रोज़ पार्कों में जाकर ऑनर किलिंग नहीं करते...? झाड़ियों में घुसकर किसी को चूमते पकड़ने वाले हर तरफ कांटों की तरह पसर गए हैं.

मेरे नाम के आगे मुल्ला या मौलाना लिखकर तुम वही कर रहे हो, जिसके ख़िलाफ़ लिखवाना चाहते हो. तुम्हारी नफ़रत की राजनीति और घर-घर में मौजूद प्रेम को लेकर मार देने तक की सोच ख़तरनाक साबित हो रही है. सनक सवार होती जा रहा है. थोड़ा आज़ाद कर दो, इस मुल्क को. इसके नौजवान सपनों को. जो नौजवान प्रेम नहीं करता, अपनी पसंद से शादी नहीं करता, वह हमेशा-हमेशा के लिए बुज़दिल हो जाता है, डरपोक हो जाता है. हम ऐसे करोड़ों असफल प्रेमियों और डरपोक प्रेमियों के समाज में रहते-रहते हत्यारे हो चुके हैं. पहले हम अपनी मोहब्बत की हत्या करते हैं, फिर किसी और की...

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