बता दें, बुधवार को उच्चतम न्यायालय (Ayodhya Hearing) में दलील दी गयी कि करोड़ों श्रद्धालुओं की ‘अटूट आस्था' ही यह साबित करने के लिये पर्याप्त है कि अयोध्या में समूचा विवादित स्थल ही भगवान राम का जन्म स्थान है. शीर्ष अदालत ने जोर देकर कहा कि अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि पर कब्जा होने संबंधी हिन्दू पक्षकारों का दावा साबित करने के लिये राजस्व रिकार्ड, अन्य दस्तावेज और मौखिक दस्तावेज ‘बहुत ही महत्वपूर्ण साक्ष्य' होंगे. इस विवाद में एक पक्षकार ‘राम लला विराजमान' की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता के. परासरन ने कहा कि राम जन्मभूमि अपने आप में ही हिन्दुओं के लिये मूर्ति का आदर्श और पूजा का स्थान हो गया है. उन्होंने पीठ से जानना चाहा कि इतनी सदियों के बाद इस स्थान पर ही भगवान राम का जन्म होने के बारे में सबूत कैसे पेश किया जा सकता है.
Exclusive : अयोध्या पर मध्यस्थता क्यों फेल हुई? सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड जमीन छोड़ने को तैयार था
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष बहस करते हुये परासरन ने सवाल किया, ‘इतनी सदियों के बाद हम यह कैसे साबित करेंगे कि भगवान राम का जन्म यहां हुआ था.' पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, अयोध्या की तरह किसी धर्म स्थल को लेकर क्या कोई विवाद दुनिया की किसी अदालत में कभी आया?
परासरन ने कहा, ‘करोड़ों उपासना करने वालों और श्रद्धालुओं की अटूट आस्था अपने आप में इस बात का साक्ष्य है कि यह स्थान ही भगवान राम का जन्म स्थान है.' उन्होंने कहा कि वाल्मीकि रामायण में भी इस बात का उल्लेख है कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ था. संविधान पीठ ने परासरन से सवाल किया कि क्या पहले कभी इस तरह के किसी धार्मिक व्यक्तित्व के जन्म के बारे में किसी अदालत में ऐसा कोई सवाल उठा था.
अयोध्या विवाद : 1934 से पहले मुसलमान वहां नियमित रूप से नमाज पढ़ते थे, हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था : सुप्रीम कोर्ट
पीठ ने पूछा, ‘क्या बेथलेहम में ईसा मसीह के जन्म जैसा विषय दुनिया की किसी अदालत में उठा और उस पर विचार किया गया.' इस पर परासरन ने कहा कि वह इसका अध्ययन करके न्यायालय को सूचित करेंगे. परासरन ने अयोध्या में छह दिसंबर, 1992 में विध्ंवस की घटना से सालों पहले विवादित ढांचे के भीतर मूर्तियां रखे जाने से संबंधित अनेक सवालों के जवाब दिये.
अयोध्या मामले की सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग की मांग सुप्रीम कोर्ट ने ठुकराई, गोविंदाचार्य ने की थी मांग
उन्होंने कहा कि मूर्तियों का रखना सही था या गलत, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि यह ढांचा मंदिर था या मस्जिद. उन्होंने कहा, ‘यदि यह गलत (मूर्तियां रखना) था, यह मान लिया जाये कि ऐसा करना लगातार गलत था तो यह सतत गलती उस समय खत्म हो गयी जब अदालत ने हस्तक्षेप किया और एक रिसीवर नियुक्त कर दिया. अदालत के आदेश पर रिसीवर द्वारा संपत्ति अपने कब्जे में रखना सतत गलती नहीं हो सकता.' परासरन ने कहा कि विवादित ढांचे के मंदिर या मस्जिद होने के बारे में सिर्फ इस आधार पर ही फैसला हो सकता है कि वहां कौन पूजा करता था. उन्होंने दलील दी कि मूर्तियां आज भी वहां विराजमान हैं. उन्होंने कहा, ‘‘भीतरी बरामदा या बाहरी बरामदा प्रासंगिक नहीं है. हम कहते हैं कि पूरा क्षेत्र ही रामजन्मभूमि है.'
राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर CM योगी आदित्यनाथ बोले, पता था कि मध्यस्थता प्रयास विफल होगा
VIDEO: रवीश कुमार का प्राइम टाइम: थोड़ा समय बढ़ाने पर मध्यस्थता कामयाब होती?
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)