DG रैंक के अफसरों में कोई बना सीधे डिप्टी सीएम तो कोई गवर्नर, जानें- 10 पूर्व DGP का सियासी सफर

कुछ पूर्व अफसरों को सफलता हाथ लगी तो कुछ को असफलता. सफल होने वाले एक अफसर तो सीधे उप मुख्यमंत्री की कुर्सी तक जा पहुंचे, जबकि एक संसद के रास्ते फिर दो-दो राज्यों के गवर्नर बने.

DG रैंक के अफसरों में कोई बना सीधे डिप्टी सीएम तो कोई गवर्नर, जानें- 10 पूर्व DGP का सियासी सफर

पूर्व IAS, IPS अफसरों का राजनीति में आना नई बात नहीं है, इनमें कुछ सफल हो पाते हैं, कुछ असफल.

खास बातें

  • निखिल कुमार बिहार के बड़े राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखते हैं.
  • 1980 के दशक में बिहार के आंखफोड़वा कांड में मशहूर हुए थे वीडी राम
  • मणिपुर के पूर्व डीजीपी रहे राय ने तो बीजेपी को ही झकझोर दिया था
नई दिल्ली:

बिहार के डीजीपी रहे गुप्तेश्वर पांडेय (Gupteshwar Pandey) की संभावित राजनीतिक एंट्री सोशल मीडिया पर सुर्खियां बनी हुई है लेकिन यह पहला मौका नहीं है जब किसी डीजीपी ने इस्तीफा देकर या रिटायरमेंट के बाद राजनीति की राह पकड़ी हो. इससे पहले भी दर्जन भर से ज्यादा डीजी रैंक के आईपीएस अधिकारियों ने राजनीति ज्वाइन की मगर कुछ को सफलता हाथ लगी तो कुछ को असफलता. सफल होने वाले एक अफसर तो सीधे उप मुख्यमंत्री की कुर्सी तक जा पहुंचे, जबकि एक संसद के रास्ते फिर दो-दो राज्यों के गवर्नर बने.

निखिल कुमार: 
1963 बैच के आईपीएस अफसर रहे निखिल कुमार बिहार के बड़े राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखते हैं. उनके पिता सत्येंद्र नारायण सिंह बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. सिंह औरंगाबाद लोकसभा सीट से छह बार सांसद भी रहे. निखिल साल 2001 में पुलिस सेवा से रिटायर हुए. उससे पहले वो NSG, ITBP और RPF के डीजी रह चुके हैं. रिटायरमेंट के बाद निखिल 2004 में कांग्रेस में शामिल हुए. उसी साल लोकसभा चुनाव में पिता के क्षेत्र औरंगाबाद से लड़कर संसद पहुंचे. 2009 में उन्हें यूपीए सरकार ने नागालैंड का गवर्नर बनाया. बाद में 2013 में वो केरल के भी राज्यपाल बनाए गए. 2014 में औरंगाबाद संसदीय सीट से उन्हें हार का सामना करना पड़ा.

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युमनाम जयकुमार सिंह:
1976 बैच के आईपीएस अफसर रहे युमनाम जयकुमार सिंह की गिनती मणिपुर समेत पूर्वोत्तर में  एक तेज-तर्रार नेता के रूप में होती है. वो 2007 से 2012 तक मणिपुर के डीजीपी रहे. रिटायरमेंट के पांच साल बाद उन्होंने 2017 में राजनीति की राह पकड़ी और पहली बार ही राज्य के उरिपोक असेंबली सीट से न केवल विधायक चुने गए बल्कि राज्य की एन वीरेन सिंह सरकार में डिप्टी चीफ मिनिस्टर भी बने. हालांकि, इस साल उन्होंने नौ एमएलए के साथ अपनी ही सरकार के खिलाफ बगावत कर दी और वीरेन सरकार को गिराने की कोशिश की लेकिन ऐसा नहीं हो सका. उन्हें उप मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी.

विष्णुदयाल राम:
झारखंड के डीजीपी रहे विष्णुदयाल राम खासे चर्चित आईपीएस अफसर रहे हैं. 1973 बैच के आईपीएस अफसर रहे दयाल दो बार झारखंड के डीजीपी रहे. संयुक्त बिहार में 1980 के दशक में वो बिहार के भागलपुर के एसपी थे, जब वहां अंखफोड़वा कांड हुआ था. आरोप था कि 30 से ज्यादा अपराधियों की आंखों में तेजाब डाल दिया गया था. इस मामले में सीबीआई जांच भी हुई थी लेकिन इनके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिल सका था. इसी कांड पर गंगाजल फिल्म भी बनी है. राम ने 2014 में बीजेपी का दामन थाम लिया और झारखंड के पलामू से सांसद बने. 2019 में भी दोबारा संसद पहुंचने में कामयाब रहे.

आर नटराज:
1975 बैच के तमिलनाडु कैडर के आईपीएस अधिकारी आर नटराज 2011 तक राज्य के डीजीपी रहे. तीन साल बाद उन्होंने एआईएडीएमके (AIADMK) पार्टी ज्वाइन की और 2016 के विधानसभा चुनावों में जीतकर विधानसभा पहुंचे. वो फिलहाल राज्य की सत्ताधारी पार्टी के विधायक हैं.

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एएक्स अलेक्जेंडर:
आर नटराज की देखा-देखी में उनसे पहले राज्य के डीजीपी रहे ए एक्स अलेक्जेंडर ने भी राजनीति की बागडोर थामी और उसी पार्टी यानी AIADMK में शामिल हो गए लेकिन नटराज जैसा वो भाग्यशाली नहीं रहे. 1970 बैच के इस आईपीएस अधिकारी को पार्टी ने टिकट नहीं दिया। इसके बाद उन्होंने तुरंत पार्टी भी छोड़ दी.

डी के पांडेय:
2015 से 2019 तक झारखंड के डीजीपी रहे डी के पांडेय भी तमिलनाडु के पूर्व डीजीपी अलेक्जेंडर की तरह अनलकी रहे. उन्हें उम्मीद थी कि 2019 में हुए झारखंड विधान सभा चुनाव में बीजेपी  टिकट देगी. मार्च में रिटायर होने के बाद ही उन्होंने बीजेपी ज्वाइन की थी लेकिन तत्कालीन सीएम रघुवर दास के करीबी होने के बावजूद उनका टिकट कट गया. पांडेय 1984 बैच के आईपीएस अफसर थे.

प्रकाश मिश्रा:
1977 बैच के आईपीएस अधिकारी और ओडिशा के डीजीपी रहे प्रकाश मिश्रा की कहानी दिलचस्प है. 2012 से 2014 तक वो डीजीपी रहे. सितंबर 2014 में उन पर निगरानी जांच बैठी और पद से भी हाथ धोना पड़ा. मामला कोर्ट में पहुंचा. जून 2015 में कोर्ट ने उन्हें राहत दी. इसके बाद वो 2016 तक सीआरपीएफ के डीजी रहे. रिटायरमेंट के बाद 2019 में उन्होंने बीजेपी का झंडा थामा और कटक लोकसभा सीट से मैदान में उतरे लेकिन बीजू जनता दल के भतृहरि महताब से एक लाख वोटों से पीछे रह गए.

सुनील कुमार:

इसी तरह, बिहार के पूर्व डीजी (होमगार्ड, फायर सर्विसेज) सुनील कुमार ने पिछले ही दिनों जेडीयू की सदस्यता ली है. उम्मीद है जेडीयू उन्हें गोपालगंज से चुनाव लड़ाएगी. वो नीतीश कुमार के पसंदीदा अफसरों में एक रहे हैं.

अजीत सिंह भटोरिया:

हरियाणा के पूर्व डीजी अजीत सिंह भटोरिया ने भी 2005 में बीजेपी का दामन थामा था. 1968 बैच के अधिकारी रहे भटोरिया ने पांच साल बाद 2010 में बीजेपी छोड़ दिया और कांग्रेस का हाथ थाम लिया. 2014 में उन्होंने फिर आम आदमी पार्टी का झाड़ू उठा लिया लेकिन कहीं भी सियासत में सफल नहीं हो सके.

हरियाणा के एक और पूर्व डीजीपी रहे विकास नारायण राय ने भी राजनीति की राह पकड़ी. 1977 बैच के अधिकारी राय 2012 में रिटायर हुए. इसके बाद 2014 में वो आप में शामिल हो गए.

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