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This Article is From May 29, 2018

पाकिस्‍तान और कश्‍मीर को लेकर भारत सरकार के मंत्रालयों की अलग-अलग राय

सीमा पार से लगातार हो रहे युद्धविराम उल्लंघन और कश्मीर में चल रही मुठभेड़ों के बीच सरकार का रुख़ क्या है? इस सवाल का जवाब अलग-अलग मंत्रालय अलग-अलग दे रहे हैं.

पाकिस्‍तान और कश्‍मीर को लेकर भारत सरकार के मंत्रालयों की अलग-अलग राय
फाइल फोटो
नई दिल्ली: सीमा पार से लगातार हो रहे युद्धविराम उल्लंघन और कश्मीर में चल रही मुठभेड़ों के बीच सरकार का रुख़ क्या है? इस सवाल का जवाब अलग-अलग मंत्रालय अलग-अलग दे रहे हैं. ये साफ दिखता है कि नीतियों को लेकर सरकार के भीतर एक राय नहीं है.केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह की कौन सुनता है? कम से कम विदेश मंत्री सुषमा स्वराज तो नहीं. पिछले कुछ दिनों में राजनाथ पाकिस्तान के साथ बातचीत को लेकर नरम दिखे हैं. उन्होंने कहा कि अगर पाकिस्तान चाहे तो उससे बात हो सकती है. मगर सुषमा कुछ और कहती हैं. उन्‍होंने कहा कि पाकिस्तान जब तक आतंकवाद का मार्ग नहीं छोड़ता, उसके साथ समग्र वार्ता नहीं हो सकती है लेकिन ट्रैक टू (अनौपचारिक) कूटनीति जैसे संवाद तथा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) स्तर की बैठकें होंगी. 

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उन्होंने पाकिस्तान के प्रति भारत के रुख में नरमी से इनकार करते हुए कहा, ‘हमने एनएसए वार्ता को समग्री द्विपक्षीय वार्ता से अलग कर दिया है क्योंकि हमने कहा है कि आतंक और वार्ता साथ साथ नहीं चल सकते लेकिन आतंकवाद पर वार्ता होनी चाहिए. एनएसए स्तर की व्यवस्था में आतंकवाद पर बातचीत होती है.’ 

इसी तरह हुर्रियत के साथ बातचीत करने के राजनाथ सिंह के उत्साह पर पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने पानी फेर दिया. राजनाथ सिंह ने कहा था कि यदि अलगाववादी वार्ता करने के लिए आगे आते हैं तो हुर्रियत कॉन्फ्रेंस नेतृत्व के साथ बातचीत करने के लिए उनकी सरकार तैयार है. वहीं अमित शाह ने कहा कि जो भी बातचीत होगी, संविधान के दायरे में होगी. जबकि हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गीलानी ने भी साफ़ कर दिया है कि बातचीत तभी हो सकती है जब कश्मीर को विवादित इलाक़ा करार दिया जाए. सभी राजनीतिक क़ैदियों को रिहा किया जाए. साथ ही रिहाइशी इलाक़ों से सेना को निकला जाए और सख़्त AFPSA और PSA जैसे कानूनों को ख़त्म किया जाए. 

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कश्मीर के राजनीतिक दल हालांकि चाहते है कि हुर्रियत अपना अड़ियल रवैया छोड़ दे. सरकार की मंशा संघर्ष विराम को लेकर भी साफ़ नहीं हो पा रही है क्यूंकि अलग अलग विभागों से अलग-अलग राय आ रही है, जिससे सरकार तय नहीं कर पाई है कि इसे सिर्फ़ रमज़ान के दौरान रखे या फिर अमरनाथ यात्रा के वक़्त भी लागू रखे.

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प्रधानमंत्री मोदी कश्मीर के डेढ़ दर्जन दौरे कर चुके है. कभी 80 हजार करोड़ के पैकेज का एलान करते है कभी वार्ताकार की नियुक्ति का, लेकिन कश्मीर की समस्या और उलझती चली जा रही है. इन सबके बीच एक ठोस कश्मीर नीति ज़रूरी है जिस पर सारे मंत्री एक ही भाषा बोलते दिखें.

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