हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने अटूट संघर्ष करके बनाया अपना मुकद्दर

मनोहरलाल खट्टर ने परिवार के साथ खेतों में काम किया, साइकिल से बाजार में सब्जी ले जाकर बेची, ट्यूशन पढ़ाई और दिल्ली में कपड़े की दुकान चलाई

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने अटूट संघर्ष करके बनाया अपना मुकद्दर

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर.

खास बातें

  • परिवार के दबाव के बावजूद विवाह नहीं किया
  • आरएसएस और बीजेपी को समर्पित किया जीवन
  • समर्पित कार्यकर्ता और कुशल रणनीतिकार हैं खट्टर
नई दिल्ली:

हरियाणा (Haryana) में साल 2014 के  विधानसभा चुनाव में मनोहरलाल खट्टर (Manohar Lal Khattar) के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने अपार सफलता हासिल की थी. उनकी मेहनत के प्रतिफल के रूप में पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाकर सत्ता की बागडोर सौंपी. वास्तव में मनोहरलाल खट्टर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी के समर्पित कार्यकर्ता रहे हैं और इन संगठनों के लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित किया है. आस्था और समर्पण भाव के कारण ही उन्होंने विवाह नहीं किया. खट्टर आज जिस मुकाम पर हैं वहां तक पहुंचने में उनको कड़ा संघर्ष करना पड़ा है. उनके मुकद्दर ने उनका तब साथ दिया जब देश की सत्ता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथ में आई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से निकटता के कारण उनका मुख्यमंत्री पद तक पहुंचने का रास्ता बन सका.

मनोहरलाल खट्टर के (Manohar Lal Khattar) परिवार का जीवन संघर्ष उनके जन्म के पहले ही शुरू हो गया था. सन 1947 में जब भारत पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो यह पंजाबी परिवार पाकिस्तान छोड़कर भारत आ गया. खट्टर का परिवार हरियाणा के रोहतक जिले के निंदाना गांव में बस गया. तब न तो इस परिवार के पास जमीन-जायजाद थी न ही कोई जमा पूंजी. आजीविका चलाने के लिए खट्टर के पिता और दादा ने मजदूरी की और इससे जमा की गई रकम से एक छोटी सी दुकान खोली. निंदाना गांव में ही पांच मई 1954 को मनोहर लाल खट्टर का जन्म हुआ.

मनोहरलाल खट्टर के परिवार के लोग अधिक शिक्षित नहीं थे. वे उस परिवार के पहले ऐसे व्यक्ति बने जिसने दसवीं की परीक्षा पास की. यही नहीं वे उन दिनों में परिवार के साथ खेतों में काम भी करते थे और सब्जी साइकिल पर लादकर रोहतक की मंडी में ले जाते थे. उनके पिता उन्हें आगे नहीं पढ़ाना चाहते थे और खेती-बाड़ी कराना चाहते थे, लेकिन खट्टर शिक्षा जारी रखने के इच्छुक थे. उन्होंने अपनी मां से कुछ पैसा लिया और रोहतक के नेकीराम शर्मा सरकारी कॉलेज में दाखिला ले लिया. स्कूल और कॉलेज में खट्टर सभी गतिविधियों में आगे रहे और पढ़ाई में भी अव्वल रहे. वे डॉक्टर बनना चाहते थे. इस पर अपने पिता के विरोध के बावजूद उन्होंने इसके लिए कॉलेजों में आवेदन भी किए. वे जब 21 साल के थे तब उनके लिए विवाह का रिश्ता आया. परिवार चाहता था कि वे अपना घर बसा लें, लेकिन उन्हें यह मंजूर नहीं था.   

मेडिकल कॉलेज में दाखिले की परीक्षा की तैयारी के लिए मनोहरलाल खट्टर (Manohar Lal Khattar) दिल्ली चले आए. उनका संघर्ष यहां भी जारी रहा. आजीविका कमाने के लिए उन्होंने ट्यूशन भी पढ़ाई. उन्होंने दिल्ली में पढ़ाई के साथ सदर बाजार में दुकान खोलने का मन बना किया. उन्होंने इसके लिए परिवार से पैसा लिया और कपड़ों की दुकान खोल ली. खट्टर ने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री ली और इस दौरान अपना कारोबार भी बढ़ा लिया. उनकी कड़ी मेहनत और दृढ़ इच्छाशक्ति रंग लाई. उन्होंने न सिर्फ अपने माता-पिता से लिया गया पैसा लौटाया, बल्कि अपनी छोटी बहन की शादी भी कराई. इसके अलावा अपने दो भाई-बहन को दिल्ली बुला लिया.

मनोहरलाल खट्टर ने सन 1977 में सामाजिक गतिविधियों के साथ सार्वजनिक जीवन की शुरुआत की. वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में पूर्णकालिक प्रचारक बन गए. 14 वर्ष तक संघ में सक्रिय रहने के बाद वे बीजेपी में चले आए और 1994 में हरियाणा में बीजेपी के महासचिव बनाए गए. सन 1996 में बीजेपी ने बंसीलाल के नेतृत्व वाली हरियाणा विकास पार्टी को राज्य में सरकार बनाने के लिए समर्थन दिया. बाद में जब खट्टर ने पाया कि गठबंधन पार्टी के लिए नुकसानदेह साबित हो रहा है और सरकार अलोकप्रिय हो रही है, तो उन्होंने समर्थन वापस ले लिया. हरियाणा विकास पार्टी का बाद में कांग्रेस में विलय हो गया था. बीजेपी ने इसके बाद ओमप्रकाश चौटाला को बाहर से समर्थन देने का फैसला लिया. बाद में इनेलो के साथ इस गठबंधन ने 1999 के लोकसभा चुनाव में हरियाणा की सभी 10 सीटें जीत लीं. इससे पहले सन 1998 में इस गठबंधन को दो सीटें ही मिली थीं.

बीजेपी महासचिव के रूप में मनोहरलाल खट्टर (Manohar Lal Khattar) की छवि एक योग्य और सख्त प्रशासक के साथ-साथ एक ऐसे रणनीतिकार की बनी जो हरियाणा की सियासत की एक-एक रग पहचानता है. उनकी खासियत के चलते ही गुजरात में कच्छ जिले में चुनाव के प्रबंधन के लिए नरेंद्र मोदी ने खट्टर को बुलाया था. वहां बीजेपी को छह में से तीन सीटें मिली थीं. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में खट्टर को मोदी ने वाराणसी के 50 वार्डों का प्रभारी बनाया था.

सन 2014 में मनोहरलाल खट्टर ने करनाल विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से पहला चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. पंजाबी खत्री जाति से संबंधित खट्टर ने अपने प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के सुरेंद्र सिंह नारवाल को 63,736 वोटों के भारी अंतर से हराया. इसके बाद मनोहरलाल खट्टर 26 अक्टूबर 2014 को हरियाणा के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने वाले पहले बीजेपी नेता बने. इस आरएसएस के पूर्व प्रचारक ने हरियाणा के दसवें मुख्यमंत्री के रूप में सत्ता संभाली. खट्टर को पीएम नरेंद्र मोदी ने हरियाणा में बीजेपी की पहली सरकार का नेतृत्व 2014 में सौंपा, लेकिन इससे पहले वे चार दशक तक संघ और बीजेपी की जड़ों को मजबूत बनाने के जी जान से जुटे रहे. वे हरियाणा के पहले पंजाबी मुख्यमंत्री बने और 18 साल बाद इस पद को संभालने वाले पहले गैर जाट नेता बने.

मनोहरलाल खट्टर बीजेपी में सादा जीवन और साफ-सुथरी छवि वाले एक ऐसे व्यक्ति की है, जो हर काम पूरी शिद्दत से करते हैं और उतनी ही कुशलता से करवाते भी हैं. पर्दे के पीछे से पार्टी की मजबूती के लिए लगातार काम करते रहने वाले खट्टर ने बीजेपी में अक्सर अपने संगठन कौशल का लोहा मनवाया. खट्टर को 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान हरियाणा में चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया गया था. इससे पहले उन्हें सन 2002 में जम्मू-कश्मीर के प्रदेश चुनाव का प्रभार दिया गया था.

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हरियाणा के दसवें मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर (Manohar Lal Khattar) की प्रतिष्ठा राज्य के विधानसभा चुनाव में दांव पर लगी है. खट्टर उनकी पार्टी पिछली सफलता को दोहराना चाहती है और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस सत्ता में वापसी के लिए संघर्ष कर रही है.

VIDEO : जीत को लेकर बेफिक्र मनोहरलाल खट्टर

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