कांग्रेस के वफादार ने पूरी मोर्चाबंदी के साथ चलाया 'ऑपरेशन प्रियंका', ऐसे करवाई उनकी सक्रिय राजनीति में एंट्री

प्रियंका गांधी अबतक अपने भाई कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के पीछे रहकर उनके कार्यालय का कामकाज संभाल रही थीं और वह भारत में उनके मीडिया संवाद का प्रबंध करती थीं.

कांग्रेस के वफादार ने पूरी मोर्चाबंदी के साथ चलाया 'ऑपरेशन प्रियंका', ऐसे करवाई उनकी सक्रिय राजनीति में एंट्री

प्रियंका गांधी वाड्रा. (फाइल तस्वीर)

नई दिल्ली:

कहा जा रहा है कि एक वयोवृद्ध वफादार कांग्रेसी (Congress)ने अपनी चाणक्य बुद्धि का इस्तेमाल करते हुए प्रियंका वाड्रा को औपचारिक तौर पर राजनीति में लाने में सफलता हासिल की है, और प्रियंका (Priyanka Gandhi Vadra)को पार्टी का पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी महासचिव बनाया गया है. कुछ भी हो, इसे हाल के दिनों का सर्वाधिक चकित करने वाला कदम माना जाएगा है. प्रियंका को नई जिम्मेदारी सौंपने के संबंध में जो बातें उभर कर आ रही हैं, उसके अनुसार, माना जाता है कि केवल विशेष परिस्थिति में ही अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करने वाले इस वफादार ने पूरी मोर्चाबंदी के साथ यह ऑपरेशन चलाया. इसके फलस्वरूप पार्टी ने प्रियंका की नई राजनीतिक भूमिका की घोषणा कर दी. 

प्रियंका गांधी अबतक अपने भाई कांग्रेस अध्यक्षराहुल गांधी (Rahul Gandhi) के पीछे रहकर उनके कार्यालय का कामकाज संभाल रही थीं और वह भारत में उनके मीडिया संवाद का प्रबंध करती थीं. वह राहुल गांधी के प्रमुख भाषणों का विषय-वस्तु भी तैयार करती थीं, जिसमें राजधानी के तालकटोरा स्टेडियम में पिछले साल उनके द्वारा दिया गया भाषण अहम है, जहां उन्होंने संविधान की रक्षा का नारा दिया था. 

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राजनीतिक गलियारों से मिल रही प्रतिक्रियाओं से इस फैसले को यह उचित ठहराया जा रहा है. भारत की सबसे पुरानी पार्टी ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में जीत हासिल करने की चुनौती के लिए प्रियंका को उतारा है. पिछले कुछ महीनों से राजनीतिक गलियारे में कानाफूसी पैदा करने में कांग्रेस आगे रही है. इसकी यह एक और मिसाल है. सूत्रों ने बताया कि इस वफादार के लिए यह काम इतना आसान नहीं रहा होगा, क्योंकि पार्टी को पुराने लोगों से मुक्त कराने की कोशिशें चल रही हैं, और यह काम एक तरह से उस वफादार की वापसी के रूप में देखा जाएगा. 

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हालांकि संन्यास ले चुके नेता जो चर्चा से दूर रहे हैं, वह कांग्रेस के प्रथम परिवार के नजदीकी हैं और केंद्र में जब पार्टी सत्ता में थी तो वह सोनिया गांधी के निजी कक्ष तक पहुंच रखते थे. संभव है कि उनका यह संबंध काम किया हो, क्योंकि उन्होंने प्रियंका वाड्रा को महत्वपूर्ण भूमिका में आगे लाया है. बताया जाता है कि कांग्रेस महासचिव के तौर पर उनकी नियुक्ति के लिए उठाए गए कदम पर सोनिया गांधी की सलाह ली गई है. कांग्रेस अध्यक्ष ने शुक्रवार को एक रैली के दौरान ओडिशा में कहा कि उनकी नियुक्ति अचानक लिया गया फैसला नहीं है.

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यह वफादार भारत की राजनीति में काफी प्रतिष्ठित व्यक्ति है और अतीत में उन्होंने नियंत्रण से बाहर हो चुके हालात को संभालने में अहम भूमिका निभाई थी. बहरहाल, यह माना जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी का यह रणनीतिक फैसला है, जो आगामी कदमों को ध्यान में रखकर लिया गया है. 

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प्रियंका वाड्रा को उत्तर प्रदेश देकर राहुल गांधी ने कहा कि उनको प्रदेश में पार्टी को जिताने की जिम्मेदारी दी गई है. इससे यह संदेश जाता है कि कांग्रेस अध्यक्ष अब देश के बाकी हिस्सों का प्रबंध करने के लिए मुक्त हैं. जब अमेठी की आम जनता ने बुधवार सुबह अमेठी की स्थिति को लेकर शिकायत की तो उन्होंने कहा कि उनको चिंता नहीं करनी चाहिए, क्योंकि वह दिल्ली से दवा भेज रहे हैं. राजनीति-जगत में उनके पदार्पण की घोषणा होने के महज एक घंटे के भीतर यह खबर जंगल की आग की तरह फैल गई. 

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प्रियंका के राजनीति में आने से जो सबसे बड़ी समानता आने वाली है, वह यह है कि गांधी परिवार के संसदीय क्षेत्र अमेठी और रायबरेली के अलावा भी उत्तर प्रदेश में युवा और बुजुर्ग सभी वर्ग के लोग उनके साथ हैं. 

अटकलें लगाई जा रही हैं कि आने वाले दिनों में भाई-बहन के बीच काम-काज को लेकर मतभेद हो सकता है. यह भी कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में अगर कांग्रेस मजबूत बनकर उभरती है और राहुल अगर केंद्र सरकार में बड़े पुरस्कार को लेकर अनिच्छुक रहते हैं, तो बहन प्रियंका वाड्रा को नेतृत्व की भूमिका में विकल्प के तौर पर पेश किया जा सकता है.

(इनपुट- आईएएनएस)

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