लीलावती जैसे बड़े अस्पतालों से जुड़े मुंबई के जाने माने मनोचिकित्सक डॉ भरत शाह बताते हैं की ऑनलाइन सेशन के दौरान कई बार गम्भीर स्थिति से गुज़र रहे मरीज़ों को सम्भालना इतना तनाव में डालता था की मनोचिकित्सकों को भी नींद की दवा का सहारा लेना पड़ा.
डॉ भरत शाह बताते हैं, "ऐसे जब भी केस आते हैं जिसमें मरीज़ ‘'आत्महत्या की बात कर रहा है तो लॉकडाउन में ये हैंडल करना, वो एक प्रॉब्लम वाली बात है, ये अलग टाइप की इमर्जन्सी थी, जो सिस्टम पहले सेट थे वो अब नहीं थे, तो वो सिस्टम सेट नहीं होने से जवाबदारी अगर मेरे ऊपर आगयी,जैसे अगर कोई मरीज़ ने बोल दिया की मुझे मरने के ख़याल आते हैं, वो तो ऑनलाइन है, अब कहां बैठा है, क्या कर लेगा, क्या सपोर्ट है मैं कैसे हैंडल करूँ, कैसे मदद करूँ, वो बहुत प्रॉब्लम वाली बात बन गयी?..."
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"....इस स्ट्रेस की वजह से बहुत ऐंज़ाइयटी हो गयी नींद कम हो गया तो हल्की माइल्ड ऐंज़ाइयटी मेडिसिन वो कभी कभी हमलोग लेते हैं.कोई माइल्ड मेडिसिन रहती है जिससे ऐंज़ाइयटी भी कम होती है और नींद में भी मदद मिलती है तो उस टाइप की गोलियाँ हम में से कुछ प्रोफेशनल ले रहे थे, जो पहले नहीं लेते थे."
काउंसलर्स उन बंदिशों से भी तनाव में हैं जिनके कारण वो ख़ुद के मानसिक स्वास्थ्य के लिए ज़रूरी थेरेपी नहीं ले पा रहे.
सायकोथेरपिस्ट, डॉ शिवांगी पवार ने बताया, 'मनोचिकित्सकों को भी डिप्रेशन हो रहा है, सोशली जो स्टिग्मा असोसियेटेड है मेंटल हेल्थ से जुड़ा उसकी वजह से डॉक्टर किसी और थेरपिस्ट से मदद नहीं ले पा रहे हैं क्यूँकि फिर उनको जज किया जाएगा, उनके करियर पर इसका निगेटिव असर हो सकता है, इस डॉक्टर के मेंटल हेल्थ के बारे में भी सोचना बहुत ज़रूरी है.''
लोगों को दिमाग़ी ताक़त देने वाले काउंसलर्स में मानसिक तनाव की रिपोर्ट, आम लोगों में बढ़े तनाव की गम्भीरता बयां करती है.
6.5% भारतीय किसी न किसी मानसिक बीमारी से पीड़ित