महिलाओं की सुरक्षा को लेकर क्या है संघ का दृष्टिकोण, मोहन भागवत ने दिया यह जवाब

राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ अथवा आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने बुधवार को देश के तमाम मुद्दों पर अपनी राय रखी.

महिलाओं की सुरक्षा को लेकर क्या है संघ का दृष्टिकोण, मोहन भागवत ने दिया यह जवाब

मोहन भागवत (फाइल फोटो)

नई दिल्ली:

राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ अथवा आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने बुधवार को देश के तमाम मुद्दों पर अपनी राय रखी. आरक्षण से लेकर, गोरक्षा और महिला सुरक्षा से लेकर अयोध्या में राम मंदिर जैसे विषयों पर विभिन्न सवालों के जवाब में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपने विचार व्यक्त किये. महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित प्रश्न के जवाब में मोहन भागवत ने कहा कि महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध तभी रुकेंगे, जब हम महिलाओं को सुरक्षा के लिए सजग और सक्षम बनाएंगे. साथ ही पुरुषों को भी महिलाओं को देखने की अपनी दृष्टि बदलनी होगी. 

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संघ के कार्यक्रम के तीसरे और आखिरी दिन महिला और संघ का दृष्टिकोण विषय पर कुछ प्रश्न पूछे गये. मसलन, महिलाओं की सुरक्षा को लेकर संघ की क्या दृष्टि है, संघ ने इस दिशा में क्या किया है और आखिर अपराधियों में कानून का डर क्यों नहीं है? इन सवालों के जवाब में संघ प्रमुख ने कहा कि न सिर्फ महिलाओं को इसे लेकर जागरुक करना पड़ेगा, बल्कि किशोर और किशोरियों के विकास के उपक्रम भी विकसित करने होंगे. 

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संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि ''लड़कियों और महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए दो-तीन बातें करनी पड़ेगी.' 

''पुराने जमाने में जब घर के अंदर महिलाओं का बंद होना निश्चित रहता था, तब उसकी जिम्मेवारी परिवार पर होती थी. लेकिन अब महिलाएं भी घर से बाहर आकर पुरुषों के मुकाबले में करतब दिखा रही हैं और करना भी चाहिए.. तो उनको अपनी सुरक्षा के लिए भी सजग और सक्षम बनाना पड़ेगा. इसलिये किशोर आयु के लड़के और लड़कियों का प्रशिक्षण करना होगा. किशोरी विकास-किशोर विकास...यह काम संघ के लोग कर रहे हैं. क्योंकि महिला असुरक्षति कब हो जाती है, जब पुरुष उसे देखने की अपनी दृष्टि को बदलता है.

इस पर बड़ी चर्चाएं चली हैं. एक मीडिया की महिला पत्रकार बोल रही थी, मैं सुन रहा था. जब एक बलात्कारी को सजा हो गई थी. सुप्रीम कोर्ट से. उसकी चर्चा चल रही थी. महिला पत्रकार बोल रही थी कि केवल अपराधियों को सजा हो जाने से काम नहीं चलेगा. मूल समस्या है कि महिलाओं को देखने की पुरुषों की दृष्टि बदलनी पडे़गी और यह दृष्टि हमारी परंपरा में हैं. 'मातृवत् परदारेषु' यानी अपनी ब्याहाता पत्नी को छोड़ कर बाकि सबको माता के रूप में देखना. यह अपना आदर्श है. उन संस्थाओं को पुरुषों में भी जगाना होगा. इसलिए किशोर और किशोरी विकास के उपक्रम चले. और महिलाओं को आत्मरक्षा को सीखाने वाले उपक्रम चले. इसलिए बड़ी संख्या में स्कूलों और कॉलेजों में छात्राओं को प्रशिक्षण देने का काम संघ कर रहा है. 

अब कानून का डर अपराधियों में कम रहता है. क्योंकि कानून एक हद तक चल सकता है. समाज का धाक और संस्कारों का चलन इसका परिणाम ज्यादा होता है. कानून तो कड़े से कड़े बनने चाहिए और उसका अमल भी ठीक से हो कर अपराधियों को उचित सजा मिलनी चाहिए. इसमें कोई दोराय नहीं. मगर उसके साथ-साथ समाज भी इसकी नजर रखे. आंखों की शरम हो लोगों में. समाज का वातवरण ऐसा हो जो अपराधों को बढ़ावा नहीं देता. ये हमारी जिम्मेवारी है. हम देखते हैं कि कहीं-कहीं साढ़े पांच के बाद महिलाएं बाहर नहीं जाती है. लेकिन कहीं-कहीं रात में भी महिला सब अलंकार पहन कर रात में जाती है. इसमें सिर्फ वातावरण का फर्क है. इसलिए हमें वातावरण निर्माण पर काम करना चाहिए.''

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