कौन है माल्या का मददगार? यह है यूपीए से एनडीए सरकार तक की पूरी कहानी

सबसे पहले यूपीए सरकार के वक्त सितंबर 2004 में विजय माल्या की कंपनी किंगफिशर को एयरलाइंस शुरू करने के लिए लोन मिला था

कौन है माल्या का मददगार? यह है यूपीए से एनडीए सरकार तक की पूरी कहानी

विजय माल्या (फाइल फोटो).

खास बातें

  • डूबती कंपनी को सहारे के लिए माल्या मनमोहन सिंह से मिले थे
  • राज्यसभा में छह साल की पहली पारी में कांग्रेस और जेडीएस की मदद मिली
  • बीजेपी और जेडीएस की मदद से 2012 में दोबारा राज्यसभा में आए
नई दिल्ली:

विजय माल्या को किसने मदद दी? किसने उसकी कंपनी के एनपीए हो जाने के बावजूद एक के बाद एक कर्ज दिलवाए? किसने उसके खिलाफ कार्रवाई नहीं की? क्या वाकई किसी ने उसे भागने में मदद दी? क्या किसी ने उसे यह आगाह कर दिया था कि उसके खिलाफ कार्रवाई होने वाली है? ये वे सारे सवाल हैं जो आज हवाओं में तैर रहे हैं.

विजय माल्या पर राजनीतिक हंगामा कल शुरू हुआ जब उसने लंदन में कहा कि भारत से भागने से पहले उसने वित्त मंत्री अरुण जेटली से मुलाकात की थी और उन्हें बताया था कि वह लंदन जा रहा है. जेटली ने तुरंत ही माल्या के दावे को खारिज कर दिया और साफ कहा कि माल्या के साथ उनकी कोई बैठक नहीं हुई और संसद भवन में चलते-चलते जब माल्या ने उनसे बात करने की कोशिश की तो उन्होंने उसे झिड़ककर कहा कि बैंकों से बात करें. लेकिन यह तूफान अभी थमा नहीं है. आज दिन भर बीजेपी और कांग्रेस एक के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करते रहे.

इस पूरे सिलसिले को समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर मामला है क्या. साल 2004 में इंडिया शाइनिंग की लुभावनी तस्वीर दिखाने वाली वाजपेयी सरकार आसमान से मुंह के बल गिरी. उसके बाद आई यूपीए सरकार के वक्त सबसे पहली बार सितंबर 2004 में विजय माल्या की कंपनी किंगफिशर को एयरलाइंस शुरू करने के लिए लोन मिला. दूसरी बार यह लोन 2008 में मिला. दोनों बार मिलाकर करीब 8040 करोड़ रुपये का कर्ज दिया गया, लेकिन एयरलाइंस चल नहीं सकी. इसके कई कारण हैं. लेकिन एक यह भी कि लक्ज़री एयरलाइंस के तौर पर पेश की गई किंगफिशर सस्ती एयरलाइंस का मुकाबला नहीं कर सकी. लिहाजा अगले साल यानी 2009 में कंपनी को एनपीए यानी 'नॉन परफार्मिंग असेट' घोषित कर दिया गया. मतलब ऐसी कंपनी जिसको दिए गए कर्ज की उगाही मुश्किल है. लेकिन एनपीए होने के बावजूद यूपीए-दो के वक्त 2010 में सारे कर्ज को दोबारा व्यवस्थित किया गया. इसके बाद भी किंगफिशर के बुरे दिन दूर नहीं हुए.

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खुद माल्या ने तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह को चार अक्टूबर 2011 को पत्र लिखा. इसमें लिखा गया कि 'आठ सितंबर को मुझसे मिलने के लिए आपका शुक्रिया. मैंने आपको किंगफिशर एयरलाइंस की मुश्किलों के बारे में बताया है. मैंने आपको यह भी बताया कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की अगुवाई में बैंकों के एक समूह के पास गया था ताकि किंगफिशर एयरलाइंस को अतिरिक्त आर्थिक मदद तुरंत मुहैया कराई जा सके. आपने मुझसे टीकेए नायर से मिलने को कहा और नायर ने तुरंत ही संबंधित मंत्रालय में संबंधित लोगों से बात की.'

यानी डूबती कंपनी को सहारे के लिए माल्या मनमोहन सिंह से मिले थे. माल्या के कुछ और भी पत्र सामने आए. एक पत्र उन्होंने अपनी कंपनी के आला अफसरों को लिखा जिसमें वे इशारा कर रहे हैं कि पीएम और वित्त मंत्री से गुजारिश के बाद जल्दी ही उनकी कंपनी को और पैसा मिलने वाला है. हालांकि यह पत्र सामने आने के बाद मनमोहन सिंह ने सफाई दी थी. उन्होंने कहा था कि जिन पत्रों का हवाला दिया जा रहा है वे सामान्य पत्राचार हैं.

लेकिन एक अन्य पत्र में माल्या ने पूर्व प्रधानमंत्री की ओर से मिल रहे सकारात्मक संकेतों का जिक्र किया था. उन्होंने मनमोहन सिंह के उस बयान की ओर ध्यान दिलाया था जिसमें उन्होंने निजी एयरलाइंस को हो रही मुश्किलों का जिक्र किया था. यह बयान तत्कालीन प्रधानमंत्री ने 12 नवंबर 2011 को मालदीव की यात्रा के दौरान एयर इंडिया वन पर दिया था.

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माल्या के कुछ अन्य पत्र बाद में हुए घटनाक्रम का ब्यौरा देते हैं. तमाम दिक्कतों के बावजूद किंगफिशर एयरलाइंस के कर्ज को रिस्ट्रक्चर किया गया. इसी दौरान 2010 में किंगफिशर की बजट एयरलाइंस बंद हो गई. और बैंकों के समूह ने 2000 करोड़ रुपये के लोन को रिस्ट्रक्चर किया. मगर यह तमाम मदद किंगफिशर को नहीं बचा सकी. दिसंबर 2012 में एयरलाइंस पूरी तरह से बंद हो गई. इस बीच माल्या का राजनीतिक सितारा चमकता रहा. वे बीजेपी और जेडीएस की मदद से 2012 में दोबारा राज्यसभा में आए. इससे पहले छह साल की राज्यसभा की पारी कांग्रेस और जेडीएस की मदद से खेली. उनके सांसद रहते हुए उन पर हितों के टकराव का आरोप लगता रहा क्योंकि वे नागरिक उड्डयन संबंधी संसदीय समिति के सदस्य भी रहे.

साल 2014 में सरकार बदलने के बाद एनपीए का मुद्दा जोर शोर से उठा और माल्या अपनी चमकीली, रंगीली और बेहद महंगी लाइफस्टाइल के चलते सुर्खियों में आ गए. सवाल उठा कि ऐसा आदमी जिसके ऊपर बैंकों का नौ हजार करोड़ रुपया बकाया है और जो अपने कर्मचारियों की डेढ़ साल की तनख्वाह खा गया वह आईपीएल में टीम कैसे खरीद रहा है और चार्टर विमानों में कैसे उड़ रहा है. माल्या एनपीए घोटालों के प्रतीक पुरुष बन गए.

मगर हैरानी की बात है कि किसी बैंक ने उगाही के लिए जांच एजेंसी से संपर्क नहीं किया. किसी भी बैंक ने सीबीआई से शिकायत नहीं की. 29 जुलाई 2015 को सीबीआई ने सूत्रों से जानकारी के आधार पर केस दर्ज किया, फिर बैंकों से शिकायत दर्ज कराने को कहा. पहली बार 10 अक्टूबर 2015 को सीबीआई ने कई जगहों पर छापे मारे और 16 अक्टूबर को पहला सर्कुलर जारी हुआ. हिरासत के लिए लुक आउट नोटिस जारी किया गया. उस वक्त माल्या लंदन में था. 24 नवंबर को दूसरा सर्कुलर जारी किया गया जिसमें कहा गया कि अगर वह भारत आए तो सीबीआई को सूचना दी जाए. दिलचस्प बात यह है कि इस दौरान माल्या आराम से भारत आता-जाता रहा. 24 नवंबर को ही भारत वापस आया और एक दिसंबर को दोबारा देश छोड़कर गया. सात दिसंबर को वापसी हुई और 23 को फिर विदेश यात्रा पर निकल गया. इस बीच नौ, 10 और 12 दिसंबर को माल्या से पूछताछ हुई. सीबीआई को भरोसा हुआ कि माल्या भागेगा नहीं. दो फरवरी 2016 को माल्या फिर भारत आया और आठ फरवरी को फिर विदेश के लिए रवाना हो गया. फरवरी में फिर भारत लौटा और उसके बाद संसद में नजर आया. उसी दौरान उसने वित्त मंत्री अरुण जेटली से मिलने की कोशिश की जिसे लेकर अब हंगामा हो रहा है. लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि जब माल्या आता-जाता रहा तो सीबीआई ने उसे गिरफ्तार क्यों नहीं किया?

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रेल मंत्री पीयूष गोयल का कहना है कि सरकार जांच एजेंसियों के काम में दखल नहीं देती. लेकिन कांग्रेस इस जवाब से संतुष्ट नहीं है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पूछ रहे हैं कि जब माल्या ने जेटली को बताया था कि वह लंदन जा रहा है तो उसे रोका क्यों नहीं गया? इस बीच सवाल यह भी उठा कि क्या किसी ने माल्या को भागने में मदद की? क्या किसी ने माल्या को इशारा कर दिया था कि 17 बैंक सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर उसके देश छोड़कर जाने पर पाबंदी की बात करने वाले हैं? बैंकों के वकील मुकुल रोहतगी को ऐसा ही लगता है.

माल्या ने जेटली से एक मार्च को संसद सत्र के दौरान मिलने की कोशिश की थी और उसके अगले दिन वह भारत छोड़कर भाग गया. कांग्रेस इसी वजह से जेटली पर निशाना साध रही है. राहुल गांधी जेटली का इस्तीफा मांग रहे हैं. यही नहीं, कांग्रेस जेटली के इस दावे को भी गलत बता रही है कि उनकी माल्या से मुलाकात नहीं हुई. कांग्रेस सांसद पीएल पुनिया का दावा है कि सेंट्रल हॉल में जेटली और माल्या की लंबी मुलाकात हुई और इसके सीसीटीवी फुटेज जारी होने चाहिए.

हालांकि यह बात अलग है कि न तो सेंट्रल हॉल का सीसीटीवी फुटेज मिलने वाला है और न ही कोई अन्य सांसद फिलहाल पुनिया की बात का समर्थन करता दिख रहा है. संसद सत्र के दौरान सेंट्रल हॉल में कम से कम सौ-दो सौ सांसद मौजूद होते हैं. ऐसे में पुनिया के अलावा किसी और ने जेटली और माल्या को बैठकर बात करते क्यों नहीं देखा, यह हैरानी की बात है. उधर बीजेपी उल्टे कांग्रेस पर ही माल्या से मिलीभगत का आरोप लगा रही है. बल्कि बीजेपी एक कदम आगे जाकर माल्या और राहुल गांधी की सांठ-गांठ के आरोप के कथित सबूत भी पेश कर रही है.

VIDEO : माल्या को लेकर कांग्रेस और बीजेपी के बीच जंग

एक सवाल यह भी उठ रहा है कि आखिर माल्या ने मार्च 2016 में हुई जेटली से अपनी कथित मुलाकात के बारे में ढाई साल बाद तब चुप्पी क्यों तोड़ी जब लंदन की अदालत में उसके प्रत्यर्पण की सुनवाई का आखिरी दिन था. यह बात अदालत के बाहर बोलने के पीछे मकसद सिर्फ सुर्खियां बटोरना था या फिर इसके पीछे आगे अपने बचाव की कुछ रणनीति भी है.
बहरहाल इस पूरी कहानी से यह साफ है कि माल्या को हर तरह से मदद यूपीए सरकार ने ही की. लेकिन एनडीए सरकार माल्या के खिलाफ कार्रवाई करने में नाकाम रही. माल्या के बयान से कांग्रेस को बीजेपी को कठघरे में खड़ा करने में मदद मिली है. लेकिन क्या यह छद्म तुलना का मामला नहीं है? क्या यह दिखाने की कोशिश नहीं है कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर काजल की कोठरी में सबके दामन पर दाग हैं? आखिर में इसका फैसला आप को ही करना है.


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