जानकारों का मानना है कि प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने यह ट्वीट जानबूझकर सार्वजनिक करके एक तरह से स्वीकार किया कि पार्टी सुप्रीमो नीतीश कुमार ने उन्हें इस चुनाव में कोई काम नहीं दिया है. चुनाव प्रचार से लेकर प्रबंधन तक का सारा जिम्मा आरसीपी सिंह के कंधों पर है.
आरसीपी सिंह, जो कि पार्टी के अंदर रामचंद्र बाबू के नाम से जाने जाते हैं, नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के पिछले दो दशकों से खासमखास रहे हैं. साल 2010 से पार्टी के कर्ताधर्ता भी वही रहे हैं. हालांकि शरद यादव जब तक राष्ट्रीय अध्यक्ष थे तब तक आरसीपी सिंह बिहार की राजनीति में ज्यादा सक्रिय रहे और 2014 के लोकसभा चुनाव में तो उन्होंने बूथ मैनेजमेंट से लेकर उम्मीदवारों के चयन तक सब कुछ खुद किया था. उनकी खासियत है कि वे पत्रकारों से अपने बारे में ज्यादा बात करना पसंद नहीं करते हैं. शायद यही एक गुण है जिसके कारण तमाम उतार चढ़ाव के बावजूद वे नीतीश कुमार की नाक के बाल बने रहे. साल 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी के अधिकांश नेता सार्वजनिक रूप से आरसीपी सिंह को पार्टी की दुर्गति के लिए जिम्मेदार मान रहे थे लेकिन नीतीश कुमार ने स्थिति भांपते हुए हार का जिम्मा खुद अपने ऊपर ले लिया और इस्तीफा देकर उन्होंने बिहार की राजनीति का एजेंडा ही बदल डाला.
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पिछले विधानसभा चुनाव में निश्चित रूप से लालू यादव के साथ गठबंधन होने के कारण आरसीपी सिंह ज्यादा सक्रिय नहीं थे क्योंकि लालू उनको पसंद नहीं करते और उस चुनाव में लालू की तरफ से भोला यादव व नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की तरफ से प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) राजनीतिक मैसेंजर की भूमिका अदा करते थे. चुनाव परिणाम आए तो प्रशांत किशोर को जमकर क्रेडिट मिला. हालांकि नीतीश कुमार का अभी भी मानना है कि उस महागठबंधन के पास वोट काफी अधिक था और उसका चेहरा था, उसमें प्रबंधन की भूमिका बहुत सीमित थी.
इसके बाद नया अध्याय उस समय शुरू हुआ जब प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने जनता दल यूनाइटेड विधिवत रूप से ज्वाइन किया और नीतीश कुमार ने उन्हें भविष्य बताया. इसके बाद कई रिपोर्टें भी ऐसी आने लगीं कि जैसे नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी ही मान लिया. यहां प्रशांत एक बात की चूक कर गए. नीतीश अखबारों में और सोशल मीडिया में खबरें तो पढ़ते ही हैं, साथ-साथ खबर लिखने वाले की पृष्ठभूमि अगर नहीं जानते तो उसमें भी उनकी दिलचस्पी जरूर होती है. इसलिए पहले ही दिन से नीतीश ने सबको साफ कर दिया कि प्रशांत किशोर की भूमिका पार्टी से युवाओं को जोड़ने की होगी. वहीं प्रशांत को उम्मीद थी कि नीतीश पार्टी के चुनाव का सारा काम, साथ-साथ प्रचार का दायित्व उनके कंधे पर डालेंगे. लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
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नीतीश (Nitish Kumar) को कुछ बातें काफी नागवार गुजरीं जिसमें लगातार टेलीविजन के लिए इंटरव्यू में उनके BJP के साथ वापस जाने का मुद्दा भी था. अब जब प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) के खिलाफ सीधे पार्टी के प्रवक्ता नीरज कुमार ने बयान देना शुरू किया और एक नहीं लगातार तीन दिनों तक उन्होंने उनके ऊपर हमले किए, उनकी आलोचना की तो प्रशांत किशोर को यह भ्रम नहीं रहा कि यह सब कुछ नीतीश कुमार की सहमति से हो रहा है, क्योंकि अगर उन्हें कोई चीज़ पसंद नहीं होती है तो प्रवक्ता को यह संदेश दे दिया जाता है कि अब वे इस मुद्दे पर चुप रहें. प्रशांत किशोर को सब कुछ मंजूर था लेकिन शायद यह बात उनके गले से नीचे नहीं उतर रही थी कि उनसे देश में हर पार्टी चुनाव प्रचार के लिए संपर्क कर रही है और उनकी अपनी ही पार्टी उन्हें नजरअंदाज कर रही है.
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उन्होंने आखिरकार वह ट्वीट कर दिया जिसके बाद पार्टी में रामा या नारा आना कोई मायने नहीं रखता, क्योंकि प्रशांत किशोर को भी मालूम है कि क्षेत्रीय दलों में 'दुल्हन वही जो पिया मन भाए' यानी अगर सुप्रीमो आपसे ख़ुश नहीं है तो आप एक जिंदा लाश के अलावा और कुछ नहीं.
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हालांकि नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को मालूम है कि फिलहाल बिहार में एनडीए के पास जो वोटबैंक है और विपक्ष में जो बिखराव है वैसे में उनको प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) की उतनी जरूरत नहीं जितनी प्रशांत किशोर को राजनीति में उनकी जरूरत है. नीतीश यह भी जानते हैं कि अगर प्रशांत किशोर छोड़कर चले भी जाते हैं तो बीजेपी जैसे सहयोगी खुश ही होंगे. इसलिए इससे भी बड़ा सच है कि नीतीश कुमार अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी किसी पिछड़े समाज के नेता को ही चाहते हैं. इस संबंध में उनके मन में कोई कन्फ्यूजन नहीं है. और आरसीपी सिंह पर उनका भरोसा अभी तक अटूट है.