पाकिस्तान में 2.3 करोड़ बच्चे स्कूल जाने के बजाए घर पर बैठे, जानिए क्यों

स्कूल नहीं जा पाने वाले बच्चों के मामले में पाकिस्तान विश्व में दूसरे स्थान पर है. देश में करीब दो करोड़ तीन लाख बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं. जो बच्चे स्कूल जाते भी हैं, उनमें कई ठीक से लिख-पढ़ नहीं पाते.

पाकिस्तान में 2.3 करोड़ बच्चे स्कूल जाने के बजाए घर पर बैठे, जानिए क्यों

पाकिस्तान में 2.3 करोड़ बच्चे स्कूल जाने के बजाए घर पर बैठे.

स्कूल नहीं जा पाने वाले बच्चों के मामले में पाकिस्तान विश्व में दूसरे स्थान पर है. देश में करीब दो करोड़ तीन लाख बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं. जो बच्चे स्कूल जाते भी हैं, उनमें कई ठीक से लिख-पढ़ नहीं पाते. यह खुलासे एक रिपोर्ट में हुए हैं. 'द एक्सप्रेस ट्रिब्यून' की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि विल्सन सेंटर एशिया प्रोग्राम की तरफ से जारी एक नई रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आए हैं. इस रिपोर्ट का शीर्षक है, 'क्यों पाकिस्तानी बच्चे पढ़ नहीं पाते?' रिपोर्ट में पाकिस्तानी शिक्षा व्यवस्था की कमजोरियों और उन कारणों पर प्रकाश डाला गया है, जिनके कारण स्कूल पढ़ने और सीखने के लिए आवश्यक कौशल प्रदान करने में असमर्थ साबित हो रहे हैं.

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विल्सन सेंटर की ग्लोबल फेलो नादिया नवीवाला के नेतृत्व में यह रिपोर्ट तैयार की गई है. रिपोर्ट लगभग 100 पाकिस्तानी कक्षाओं का दौरा कर और सरकारी मंत्रियों, अन्य वरिष्ठ अधिकारियों, तकनीकी विशेषज्ञों और अंतर्राष्ट्रीय दानदाताओं के साथ चर्चा पर आधारित है, जिसमें शिक्षकों और छात्रों के साथ साक्षात्कार भी शामिल है. ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान में शिक्षा पर बजट में कोई कमी है. पाकिस्तान में दुनिया का सबसे बड़ा बाहरी वित्त पोषित शिक्षा सुधार कार्यक्रम है और 2001 के बाद से शिक्षा का बजट 18 प्रतिशत बढ़ाया गया है. वास्तव में पाकिस्तान का शिक्षा बजट, वहां के रक्षा बजट को टक्कर देता है.

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इसीलिए विद्यार्थियों के पढ़ने और सीखने की कमी और शिक्षा की खराब गुणवत्ता और भी बड़ा मामला बनकर सामने आया है, जो अंतर्राष्ट्रीय दानदाताओं के साथ-साथ नीति निर्माताओं के लिए भी चिंता का विषय है. रिपोर्ट के अनुसार, स्कूलों में होने के बावजूद पाकिस्तान में तीसरे ग्रेड के केवल आधे से कम विद्यार्थी उर्दू या स्थानीय भाषाओं में एक वाक्य पढ़ सकते हैं. इसका मुख्य कारण शिक्षा में विदेशी भाषाओं का भी उपयोग है.

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परिणामस्वरूप विद्यार्थी अपने पाठों को समझने में असफल रहते हैं, जिससे बड़े पैमाने पर ड्रॉप-आउट की समस्या बढ़ जाती है. रिपोर्ट के लॉन्च समारोह में नादिया नवीवाला ने बताया कि उन्होंने पेशावर के एक लड़कियों के स्कूल में पाया कि वहां की कुल 120 छात्राओं में से केवल एक ही ठीक से पढ़ लिख पा रही थी. उन्होंने कहा, "इसकी साफ वजह यह है कि इस इलाके में लोगों की भाषा पश्तो है न की उर्दू. लेकिन जब बच्चा पढ़ने के लिए स्कूल में आता है तो उसे उर्दू में लिखना पढ़ना सिखाया जाता हैं, जिसे वह समझ नहीं पाता."

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नवीवाला ने कहा, "ग्रेड एक में आने के साथ ही उसके पास चार भाषा में किताबें होती है,-उर्दू, अंग्रेजी, अरबी और पश्तो. इनमें से तीन उसके लिए अनजानी होती हैं." रिपोर्ट में कहा गया है, "ब्रिटिश काउंसिल के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि पंजाब में अंग्रेजी माध्यम के निजी स्कूलों में 94 फीसदी शिक्षकों को खुद अंग्रेजी बोलनी नहीं आती है."

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(इनपुट-आईएएनएस)