चीन के राष्ट्रपति का भारत दौरा, क्‍या दोनों देशों के रिश्‍ते बेहतर होंगे?

इस बात की चर्चा है कि राष्ट्रपति शी चिनफिंग का जहाज़ी बेड़ा इतना बड़ा था कि उसके उतरने के लिए बड़ा रनवे चाहिए था जो किसी और शहर में नहीं था.

चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग भारत की यात्रा पर चेन्नई पहुंच गए हैं. प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति चिनफिंग के बीच बातचीत के लिए चेन्नई से 40 किमी दूर मामल्लापुरम चुना गया. इसके पहले शी चिनफिंग अहमदाबाद आए थे. इस दौरे को अनौपचारिक माना जा रहा है. चीन के राष्ट्रपति के स्वागत की भव्य तैयारियां की गई हैं. मामल्‍लापुरम यानी महाबलिपुरम में छह घंटे तक दोनों साथ रहेंगे. इस मुलाकात के लिए कोई सार्वजनिक एजेंडा नहीं है. न ही कोई बयान आएगा. तो क्या बात होगी, क्या होगा, अभी ठोस रूप से कुछ भी सामने नहीं है. जो भी सामने है वह महाबलीपुरम की भव्यता और उसका शानदार इतिहास और उसकी पृष्ठभूमि में एशिया के दो प्रभावशाली मुल्कों के प्रमुखों का सहजता के साथ टहलना.

इस बात की चर्चा है कि राष्ट्रपति शी चिनफिंग का जहाज़ी बेड़ा इतना बड़ा था कि उसके उतरने के लिए बड़ा रनवे चाहिए था जो किसी और शहर में नहीं था. चेन्नई एयरपोर्ट पर ऐसे जहाज़ों को उतारने की क्षमता थी इसलिए यह जगह उसके हिस्से आया. चेन्नई से 56 किमी दूर बंगाल की खाड़ी के तट पर महाबलीपुरम है जिसे मामल्लापुरम कहा जाता था. यह नाम पल्लव राजा नरसिम्हावर्मन प्रथम के नाम पर पड़ा जिन्हें महान योद्धा कहा जाता था. पल्लव राजा के काल में एक ही चट्टान को काट कर कलाकृति बनाने का कौशल समृद्ध हुआ जिसे द्रविड़ स्थापत्य कला के रूप में जाना जाता है. अचानक से आप छठी और सातवीं सदी के इरादों के सामने पाते हैं. आज की टेक्नालजी इसके सामने मामूली नज़र आने लगती है. प्रधानमंत्री ने खुद राष्ट्रपति चिनफिंग को विष्णु मंदिर, अर्जुन पेनेंस ले जाकर दिखाया. प्रधानमंत्री मोदी ने वेष्टि पहना था. यह लुंगी जैसा है लेकिन कहा जाता वेष्टि है. आपको याद होगा कि 2014 में जब राष्ट्रपित शी चिनफिंग आए थे तब उन्हें अहमदाबाद ले जाया गया था. उसके बाद डोकलाम विवाद हुआ लेकिन यह भी याद रखिए कि इस साल चीन ने मसूद अज़हर को ग्लोबल आतंकी घोषित करने में अड़चन नहीं डाली थी. जबकि पहले वह तीन बार एतज़ार कर चुका था. चूंकि बातचीत अनौपचारिक है और एजेंडा सार्वजनिक नहीं हैं इसलिए फिलहाल फोकस कार्यक्रमों की भव्यता पर है और उनसे जुड़ने वाले ऐतिहासिक और वर्तनाम संयोगों पर है. सम्मेलन का नतीजा जब तक आम लोगों तक पहुंचेगा, इसकी भव्यता अपनी जगह बना चुकी होगी. शनिवार को दोनों नेताओं के बीच 40 मिनट की मुलाकात होगी लेकिन कोई बयान जारी नहीं होगा. उसके बाद राष्ट्रपति शी चिनफिंग नेपाल चले जाएंगे.

दलित अल्पसंख्यक से अन्याय की बात करना गलत कैसे?

दोनों देशों की तरफ से बार बार कहा जा चुका है कि प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी चिनफिंग की मुलाकात रणनीतिक है. द्विपक्षीय संबंधों को और बेहतर बनाने के लिए है. अनौपचारिक रूप से मुक्त होकर बातचीत के अलग नतीजे होते हैं. भारत और चीन के बीच सीमा विवाद में भी सकारात्मक प्रगति की बात हो रही है. ज़रूर कश्मीर की चर्चा है लेकिन एशिया के दो नेता मिल रहे हैं तो क्या वे सीरिया पर टर्की के हमले की बात कर रहे हैं, हांगकांग में हो रहे आंदोलन पर बात कर रहे हैं, हमें इसकी जानकारी नहीं है. इस संदर्भ में इस बात की संभावना कम ही है कि राष्ट्रपति जिनपिंग कश्मीर का ज़िक्र करेंगे.

बेशक कश्मीर पर चीन के बयान ने पाकिस्तान का हौसला बढ़ाया है लेकिन भारत ने भी हर बयान के बाद कड़ा एतराज़ जताने में कोई संकोच नहीं किया. संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में चीन का बयान हो या फिर पाकिस्तान में चीन के राजदूत ने कहा कि कश्मीर के मसले पर चीन पाकिस्तान के साथ है. भारत ने तुरंत एतराज़ जताया. जब बुधवार को इमरान ख़ान बीजिंग गए थो पाकिस्तान और चीन के साझा बयान में जब चीन ने कह दिया कि चीन जम्मू कश्मीर के ताज़ा हालात पर नज़दीक नज़र बनाए हुए है. कश्मीर की समस्या का समाधान संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के अनुसार होना चाहिए. चीन ऐसी जटिल स्थिति में किसी भी एकतरफा कार्रवाई का विरोध करता है. इस विवाद का निपटारा बराबरी और सम्मान के साथ होना चाहिए. ज़ाहिर है भारत को पसंद नहीं आया और साफ-साफ कह दिया गया कि चीन जैसे देश को भारत की स्थिति का पता है. उसे भारत के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देना चाहिए. चीन के मीडिया में ही यही लिखा है कि द्विपक्षीय हितों पर ज़ोर रहेगा. दोनों नेताओं के व्यक्तिगत संबंधों में और प्रगाढ़ता आएगी. साउथ चाइना मार्निंग पोस्ट ने लिखा है कि चीन पाकिस्तान की तरफ हाथ बढ़ा रहा है लेकिन भारत की तरफ कदम बढ़ा रहा है. पाकिस्तान का साथ देने के बाद भी चीन भारत के साथ अपने संबंधों को सामान्य करना चाहता है. चाइना डेली ने लिखा है कि मुलाकात के दौरान दोनों द्विपक्षीय संबंधों को अगले लेवल तक ले जाएंगे. दोनों देशों के हितों पर ही चर्चा होगी.

2015 से 2017 के बीच भारत के पासपोर्ट की रैकिंग तेजी से गिरी, तो ताकत कैसे बढ़ी?

सीमा विवाद और कश्मीर से अलग हट कर भारत और चीन के संबंधों को व्यापार के नज़रिए से देखा जाना चाहिए. आखिर क्यों भारत में चीन से आयात बढ़ता जा रहा है और भारत से चीन में निर्यात घटता ही जा रहा है या नहीं बढ़ पा रहा है. इस स्थिति को व्यापार घाटा कहते हैं. भारत और चीन के बीच 100 अरब डालर का व्यापार पहुंचने वाला है. पिछले साल 95.5 अरब डॉलर हो गया था. अब आप इस आंकड़े को व्यापार घाटे की नज़र से देखिए.

दुनिया के अलग-अलग देशों के साथ भारत का कुल व्यापार घाटा 105 अरब डॉलर का है. इसमें से सिर्फ चीन के साथ 53 अरब डॉलर का घाटा है. 2013-14 में भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा 36 अरब डॉलर का था. 2018-19 में यह व्यापार घाटा बढ़कर 53 अरब डॉलर का हो गया.

चीन से आयात बढ़ता ही जा रहा है यानी भारत के बाज़ार चीनी माल से भरे हैं. नौकरियां चीन में पैदा हो रही हैं. चीन दावा करता है कि भारत में 1000 चीनी कंपनियां खुल गई हैं. 8 अरब डॉलर का निवेश है और दो लाख लोगों को काम मिला है. नीति आयोग की रिपोर्ट 2017 की है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2010 में भारत ने आसियान देशों और चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौता साइन किया था. उस वक्त भारत का व्यापार सरप्लस था. हम चीन को 53 अरब का निर्यात करते थे. अब वो उल्टा हो गया. चीन निर्यात कर रहा है. तो भारत और चीन के बीच इस संबंध से भारत को क्या मिला. चीन के बांग्लादेश के साथ व्यापारिक संबंध बेहतर होते जा रहे हैं. चीन ने बांग्लादेश को न्यूक्लियर पावर प्लांट और प्राकृतिक गैस संसाधनों को विकसित करने की पेशकश की है.

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एक दूसरा मसला है भारत और चीन के बीच होने वाला रीजनल कांप्रीहेंसिव इकोनोमिक पार्टनरशिप (RECP) समझौता. यह एक नया क्षेत्रीय मोर्चा है. इसके तहत आयात और निर्यात के शुल्क को बहुत कम किया जाएगा या पूरी तरह खत्म कर दिया जाएगा. चीन इस डील को जल्दी करना चाहता है क्योंकि वह अमरीका के साथ व्यापारिक झगड़े से परेशान है. मगर भारत के बाज़ारों में तनाव है कि अगर यह साइन हुआ कि डेयरी, स्टील और टेक्सटाइल का बाज़ार कमज़ोर पड़ जाएगा. इसलिए डेयरी उद्योग के लोगों ने सरकार से संरक्षण की मांग की है. आप जानते हैं कि बांग्लादेश से सस्ते गारमेंट के कारण भारत का टेक्सटाइल उद्योग करीब-करीब बैठ गया है. अगर आयात शुल्क और कम हुआ तो मुसीबत बढ़ेगी. दूसरी तरफ भारत के अन्य सेक्टर चाहते हैं कि स्टील पर आयात शुल्क कम हो ताकि उन्हें सस्ती स्टील मिले. स्वदेशी जागरण मंच ने आरईसीपी के खिलाफ दस दिनों के आंदोलन का एलान किया है. आरईसीपी समझौता हुआ तो सरकार मैन्यूफैक्चरिंग और खेती के सेक्टर को मज़बूत नहीं कर पाएगी. रिटेल व्यापार के संघ के नेता प्रवीण खंडेलवाल कहते हैं कि चीन से सस्ता माल आया तो नुकसान बढ़ेगा.

व्यापारिक वर्ग की यह चिन्ता सामान्य नहीं है और न ही नज़रअंदाज़ किया जा सकता है. स्वदेशी जागरण मंच का विरोध सरकार को कितना चिन्तित करेगा, इस पर लेकर ज़्यादा माथापच्ची करने की ज़रूरत नहीं है.

फिलहाल बंगाल की खाड़ी में शाम के वक्त इन सांस्कृति कार्यक्रमों की भव्यता के पीछे व्यापारिक वर्ग की चिन्ताएं कपूर की तरह उड़ रही होंगी. उद्योग मंत्री पीयूष गोयल इसी मसले को लेकर बैंकॉक में हैं. उनका कहना है कि अगर भारत इस नए गुट से बाहर रहेगा तो अलग-थलग पड़ जाएगा. साल के अंत तक इस क्षेत्रीय समझौते पर दस्तखत होगा. दुनिया भर की 40 प्रतिशत जीडीपी आ जाएगी. भारत ने अभी तक यही कहा कि वह अपनी चिन्ताओं को महत्व देता है. डेयरी जैसे सेक्टर को बाहर रखा जाए. भारत की अर्थव्यवस्था इस वक्त संकट से गुज़र रही है. भारत का मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर लड़खड़ा रहा है. पिछले साढ़े पांच साल में इस सेक्टर से कोई शानदार खबर तो नहीं आई है. यह सांस्कृतिक कार्यक्रम का जश्न किसके पक्ष में जाएगा. भारत के पक्ष में या चीन के पक्ष में. यह तो अगले महीने बैंकांक की बैठक से पता चलेगा कि भारत किन शर्तों पर आरईसीपी पर दस्तखत करता है.

इस समझौते पर भारत की सबसे बड़ी चिंता व्यापार घाटे के बढ़ने तथा घरेलू उद्योग धंधों के नुकसान को लेकर है. चीन, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया समेत समझौते में शामिल 11 देशों से भारत निर्यात की तुलना में आयात अधिक करता है यानी व्यापार संतुलन इन देशों के पक्ष में है. चीन के साथ हमारा घाटा तो 55-60 अरब डॉलर सालाना के हिसाब में है. समझौते के प्रस्तावों के अनुसार भारत को चीन से आयात होनेवाले 74 से 80 फीसदी, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड से 86 फीसदी तथा जापान, दक्षिण कोरिया और आसियान देशों की 80 फीसदी वस्तुओं पर से आयात शुल्क हटाना होगा या उसमें कमी लानी होगी. इसके लिए अलग-अलग वस्तुओं के लिए पांच से पच्चीस साल की अवधि तय की गयी है. हालांकि प्रस्तावों में भारत के लिए यह प्रावधान भी है कि वह किन्हीं वस्तुओं के अत्यधिक आयात की स्थिति में अपने घरेलू उद्योग को संरक्षण देने के लिए शुल्कों में बढ़ोतरी कर सकता है, लेकिन ऐसा करना आसान नहीं होता है. मुक्त व्यापार की स्थिति में कई वस्तुओं के मामले में हमारे उद्योगों को गुणवत्ता और मूल्य को लेकर कठोर प्रतिस्पर्धा करने की नौबत भी आ सकती है.

यूपी और एमपी के सिपाहियों में अनैतिकता के जाल से निकलने की छटपटाहट

कश्मीर पर आने वाली ख़बरें बदलने लगी हैं. इंडियन एक्सप्रेस ने हाल ही में रिपोर्ट की थी कि वहां प्रशासन अब सामान्य है कि जगह सब कुछ नियंत्रण में है की भाषा बोलने लगा है. एक्सप्रेस के पी वैद्यनाथन अय्यर और आदिल अख़ज़र की रिपोर्ट से पता लगता है कि प्रशासन की भाषा बदलने लगी है. 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले के बाद प्रतिरोध की जगह लोगों ने खुद पर कर्फ्यू ओढ़ लिया है. वे चुप हो गए हैं. उनकी चुप्पी प्रशासन को परेशान करने लगी है. एक्सप्रेस की रिपोर्ट बताती है कि प्रशासन अब इस चुप्पी को दूसरी तरह से पढ़ने लगा है. उसे लगता है कि कहीं यह चुप्पी उल्टा न पड़ जाए. सरकार ने हाल में कई कदम उठाए. पर्यटकों से प्रतिबंध हटाया, फारूक अब्दुल्ला से उनकी पार्टी के नेताओं को मिलने दिया गया. इसके बाद भी लोग कुछ बोल ही नहीं रहे हैं. ब्लॉक डेवलपमेंट काउंसिल के चुनाव का बीजेपी छोड़ बाकी दलों ने बहिष्कार किया है. लेकिन 45 प्रतिशत सरपंच और 61 प्रतिशत पंच वार्ड के पद खाली हैं. ऐसी स्थिति में इस चुनाव का क्या मतलब रह जाता है. एक्सप्रेस ने यह रिपोर्ट दर्जनों अधिकारियों से बातचीत के बाद लिखी है. सबने ऑफ रिकॉर्ड बातचीत की है. आप भी रिपोर्ट पढ़ सकते हैं. अधिकारियों ने इस रिपोर्ट में कहा है कि कोई बड़ी घटना नहीं हुई है इसका मतलब हालात सामान्य नहीं हैं. ये वो कश्मीर नहीं है जिसे वे जानते थे जहां जनाज़ा उठने पर भी हंगामा होता था. आखिर इस चुप्पी को कैसे पढ़ा जाए.

इस संदर्भ में जम्मू कश्मीर सरकार के एक विज्ञापन का ज़िक्र ज़रूरी है. ग्रेटर कश्मीर में छपे इस विज्ञापन की भाषा एक्सप्रेस की रिपोर्ट में लिखी गई बातों को सही ठहराती है. यह विज्ञापन अग्रेज़ी में है और पहले पन्ने पर छपा है जिसका मोटा मोटी हिन्दी अनुवाद इस तरह से है... 'दुकानें बंद हैं. पब्किल ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल नहीं, फायदा किसे है? क्या हम आतंकवाद के आगे समर्पण करने वाले हैं?' बड़े अक्षरों में लिखा है थिंक. यानी सोचिए. आगे लिखा गया है कि 70 साल से जम्मू कश्मीर के लोगों को गुमराह किया गया है. हिंसा और आतंक के चक्र में फंसा रहा. अलगाववादी अपने बच्चों को विदेशों में पढ़ने के लिए भेजते रहे जबकि यहां के बच्चे पत्थरबाज़ी और हड़ताल में फंसे रहे. आज फिर से आतंकवादी वही तरीका अपना रहे हैं. क्या हम उनसे डर जाएंगे. आज हम चौराहे पर हैं. क्या हम भय और हिंसा के पुराने तरीकों का खुद पर असर होने देंगे? फैसला हमें लेना है. क्या हम चंद पोस्टरों और धमकियों से डर जाएंगे. बिजनेस शुरू नहीं करके, वैधानिक जीवन जीना शुरू नहीं कर रहे हैं? यह हमारा घर है. डरना ही क्यों? नीचे जम्मू और कश्मीर सरकार लिखा है.

एक दलित को विभागाध्यक्ष बनने से क्यों रोक रहा है दिल्ली विश्वविद्यालय?

दो महीने के बाद इस तरह का विज्ञापन कुछ कह रहा है वो जो शायद एक्सप्रेस की रिपोर्ट में लिखा है. एक्सप्रेस कश्मीर घाटी की चुप्पी को किसी और तरीके से पढ़ रहा है. यानी सब कुछ सामान्य नहीं है. सरकार इस चुप्पी को आतंकवादियों के डर के रूप में पढ़ रही है, देख रही है. लेकिन वहां से लौट कर रेवती लॉल, ब्रेनली डिसूज़ा, शबनम हाशमी और अनिरुद्ध काला की सिटिज़न रिपोर्ट इसी चुप्पी को किसी और तरीके से पढ़ रही है.

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इनका कहना है कि अभी तक सरकार को सुनाने के लिए धमाके हुए, गोलियां चलीं, बंदूक उठाए गए, जेल गए, जनाज़े में गए, मगर इस बार जब अनुच्छेद 370 हटा तो लोगों को चुप्पी के रूप में एक नया हथियार मिल गया. इन्होंने लिखा है कि यह मत सोचिए कि कुछ बहुत बड़ा हो जाएगा. लोग जब सुबह के वक्त दुकानों पर आते हैं, दुकानें खुल रही हैं तो फिर दोपहर में वही दुकानें बंद क्यों नज़र आती हैं. इस पर सोचना चाहिए. क्या यह किसी किस्म की सिविल नाफरमानी है. इस रिपोर्ट में ट्रामा पर भी एक चैप्टर है. इस तरह के हालात में लोगों के ज़हन पर गहरा असर पड़ता है जिसे हम कई बार नज़रअंदाज़ कर देते हैं. सुशील महापात्र ने रेवती लॉल से बात की. यह रिपोर्ट शनिवार को दिल्ली मे जारी होगी. इस रिपोर्ट में जम्मू के लोगों से बातचीत है. वो कैसे इसे देख रहे हैं. मौजूदा हालात के कारण जम्मू का व्यापार ठप्प सा पड़ गया है.