AIMIM के चीफ असदुद्दीन ओवैसी (फाइल फोटो)
खास बातें
- मराठा आरक्षण को देखते हुए लिया गया है फैसला
- मराठा आरक्षण को नहीं दी जाएगी चुनौती
- ओबीसी संगठन ने विरोध करने का किया है फैसला
मुंबई: ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने महाराष्ट्र में मुस्लिमों को आरक्षण दिए जाने को लेकर मुंबई हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने का फैसला किया है. AIMIM ने यह फैसला राज्य विधानसभा द्वारा सामाजिक तथा आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के तहत मराठों को आरक्षण देने के लिए विधेयक पारित करने के बाद लिया है. AIMIM के इम्तियाज़ जलील ने समाचार एजेंसी ANI से कहा, "हम इसे चुनौती नहीं देंगे, लेकिन मुस्लिम आरक्षण के लिए नए तथ्यों के साथ अदालत जाएंगे." गौरतलब है कि मराठा समुदाय को आरक्षण दिए जाने पर एक अन्य पिछड़ा वर्ग (ओ बी सी) संगठन ने कहा है कि वह इसे अदालत में चुनौती देगा. हालांकि महाराष्ट्र सरकार ने कहा है कि मराठा समुदाय को दिए गए आरक्षण से मौजूदा आरक्षण पर कोई असर नहीं पड़ेगा. महाराष्ट्र विधानसभा ने मराठा समुदाय को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 16 प्रतिशत आरक्षण देने से संबंधित विधेयक को सर्वसम्मति से पारित कर दिया है. पनवेल-उरान अगड़ी समाज मंडल और ओबीसी संघर्ष समन्वय समिति के उपाध्यक्ष जे डी टंडेल ने कहा, 'मराठा समुदाय को मिला आरक्षण मौजूदा आरक्षण को निश्चित तौर पर प्रभावित करेगा. इसलिए हमने अदालत जाने का फैसला किया है.'
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वहीं राज्य पिछड़ा आयोग ने अपनी रिपोर्ट में 40,962 मराठा परिवारों का नमूना सर्वेक्षण शामिल किया था.आयोग को मराठा समुदाय के सामाजिक, वित्तीय और शैक्षिक स्तर के अध्ययन की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. महाराष्ट्र विधानसभा ने बृहस्पतिवार को वह विधेयक पारित कर दिया जिसमें सरकार द्वारा सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा घोषित मराठा समुदाय को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 16 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रस्ताव किया गया है। सरकार ने जून 2017 में आयोग से अध्ययन करने को कहा था. आयोग ने 21 जगहों पर सार्वजनिक सुनवाई की और 1,93,651 व्यक्तिगत ज्ञापन दिए गए. विभिन्न संगठनों ने भी 814 ज्ञापन दिए. आयोग की सफारिशों पर सरकार ने मराठा समुदाय को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा घोषित किया तथा नौकरियों और शिक्षा में 16 प्रतिशत आरक्षण का प्रस्ताव दिया.
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रिपोर्ट में कहा गया कि राज्य की ए, बी, सी और डी उच्च ग्रेड की नौकरियों में मराठाओं का प्रतिनिधित्व न सिर्फ उनकी आबादी के हिसाब से अपर्याप्त है, बल्कि समुदाय में स्नातकों की पर्याप्त संख्या न होने की वजह से भी यह अपर्याप्त है. इस तरह की नौकरियों के लिए स्नातक न्यूनतम योग्यता होती है. मराठाओं की आबादी लगभग 30 प्रतिशत है.
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