Ayodhya Case : मुस्लिम पक्ष ने कहा- जिस ढांचे को तोड़ा गया, वहां पहले मन्दिर होने के कोई पुख्ता सबूत नहीं

अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद के मामले में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में 19 वें दिन की सुनवाई हुई

Ayodhya Case : मुस्लिम पक्ष ने कहा- जिस ढांचे को तोड़ा गया, वहां पहले मन्दिर होने के कोई पुख्ता सबूत नहीं

अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद के मामले में सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को 19वें दिन की सुनवाई हुई.

खास बातें

  • कहा- झगड़ा तो आंतरिक अहाते को लेकर है जिस पर जबरन कब्ज़ा किया गया
  • बीच वाले गुम्बद के नीचे जबरन रामलला की मूर्ति रखकर विवाद खड़ा किया
  • निर्मोही अखाड़े ने पूजा का अधिकार मांगा था, जो उनको राम चबूतरा पर दिया था
नई दिल्ली:

अयोध्या (Ayodhya) के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद के मामले में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में 19 वें दिन की सुनवाई हुई. कोर्ट में मुस्लिम पक्षकारों की ओर से कहा गया कि बाहरी अहाता तो शुरू से निर्मोही अखाड़े के कब्जे में रहा है. इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के आधार पर दलीलें दी जा रही हैं. झगड़ा तो आंतरिक अहाते को लेकर है जिस पर जबरन कब्ज़ा किया गया. जिस ढांचे को तोड़ा गया, वहां पहले मन्दिर होने के कोई पुख्ता सबूत नहीं मिले. एडवर्स पोजिशन को लेकर भी विवाद खड़ा किया गया है. हाईकोर्ट के फैसले के हवाले से वकील राजीव धवन बोले- बीच वाले गुम्बद के नीचे जबरन रामलला की मूर्ति रखकर विवाद खड़ा किया गया. क्योंकि उन्होंने इस बारे में एक कहानी भी गढ़ ली.

जस्टिस खान और जस्टिस शर्मा के बाद धवन ने फैसले में उस बेंच के प्रमुख जस्टिस अग्रवाल की टिप्पणियों की चर्चा की. जस्टिस अग्रवाल ने भी साथी जजों की तरह मुकदमों को मेंटनेबल, यानी नहीं माना था. उसके अलग-अलग कई कारण बताए थे.

धवन ने कहा कि निर्मोही अखाड़े ने पूजा का अधिकार मांगा था. वह हमने उनको राम चबूतरा पर दिया था. लेकिन पूरी इमारत और अहाते के प्रबंधन का अधिकार हमारे पास ही था. हिन्दू / निर्मोही अखाड़ा वहां पूजा ज़रूर कर रहे थे लेकिन उनके पास ऑनरशिप नहीं थी. कई दशकों तक राम चबूतरे पर ही खस की चिक से घेरकर बनाए गए छोटे से मंदिर में रामलला की पूजा होती रही थी. काले पत्थरों के खंभों के ज़रिए भी हिन्दू इस जगह पर दावा करते हैं. लेकिन गवाह भी बताते हैं कि मूर्ति वहां रखी गई थी. निर्मोही अखाड़े के महंत रघुबर दास ने 1885 में स्वीकार किया है कि उनका बाहरी अहाते में पूजा का अधिकार था.

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जस्टिस मुखर्जी के फैसले के हवाले से धवन ने कहा कि बौद्ध काल से मूर्तियों की पूजा का प्रचलन ज़्यादा बढ़ा. मन्दिर कैसे ज्यूरिस्टिक पर्सन हो सकता है जब वह खुद ही किसी का बनाया और समर्पित किया हुआ है. वैदिक काल मे तालाब और कुएं भी संरक्षित किए जा रहे थे. ईश्वर खुद अपनी घोषणा कर रहे हैं, स्वयंभू! ईश्वर को कई रूपों में मान लिया सांप, बंदर, कौआ... देवता किसी सम्पत्ति का स्वामी नहीं हो सकता, यह सब कल्पना है. देवता उस सम्पत्ति का सुख नहीं ले सकता. यह तो उसके ट्रस्टी ही करते हैं.

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मुस्लिम पक्षकारों की ओर से राजीव धवन ने कहा निर्मोही अखाड़ा द्वारा दावा किए गए प्रबंधन अधिकारों पर कोई आपत्ति नहीं है. इस पर जस्टिस अशोक भूषण ने धवन से सवाल किया इसका मतलब आप मान रहे हैं कि मंदिर का अस्तित्व है. लेकिन धवन ने जवाब दिया - हो सकता है, लेकिन सवाल कहां है.

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जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने धवन से पूछा जब आप कहते हैं कि अखाड़े के पास शबैत (प्रबंधन) अधिकार हैं, तो आप स्वीकार कर रहे हैं कि बाहरी आंगन के एक हिस्से में मूर्तियां थीं और इस तरह यह वो हिस्सा नहीं है जिस पर आप मस्जिद का दावा करते हैं. आपका मामला सबसे अच्छा यह है कि मंदिर और मस्जिद दोनों अस्तित्व में हैं.

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धवन ने कहा कि हां, मंदिर और मस्जिद सह-अस्तित्व में हैं लेकिन हम पूरी मस्जिद के लिए टाइटल का दावा कर रहे हैं. निर्मोही अखाड़े ने पूजा का अधिकार मांगा था वो हमने उनको रामचबूतरा पर दिया था. लेकिन पूरी इमारत और अहाते के प्रबंधन का अधिकार हमारे पास ही था. हिन्दू / निर्मोही अखाड़ा वहां पूजा ज़रूर कर रहे थे लेकिन उनके पास ऑनरशिप नहीं थी.

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धवन ने निर्मोही अखाड़े की लिखित दलील का हवाला देते हुए ट्रैफन थैलर की किताब के हिस्से बताए कि तब ऐसी मान्यता थी कि राम चबूतरे वाली जगह पर पैदा हुए थे. यह जगह बाहरी अहाते में है. गजेटियर में लिखी बात का उल्लेख करते हुए धवन ने कहा कि राम चबूतरा को ही वेदी भी कहा जाता था. इतिहास में निर्मोही अखाड़े के कई कदम और कई आदेश यह साबित करते हैं कि मस्जिद थी और तब के महंत रघुबर दास ने सिर्फ राम चबूतरे पर रामलला की सेवा पूजा करने का अनुरोध किया था. अखाड़े के उस रुख और प्रशासन के आदेशों से निर्मोही अखाड़े का यह दावा ध्वस्त हो जाता है कि वहां मस्जिद थी ही नहीं.

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तब के अदालती फैसलों से भी साफ है कि मुस्लिम इमारत के अंदर और हिन्दू अहाते के बाहर उपासना करते थे. बाहर चबूतरे पर पत्थर पर चरण पादुकाएं भी बनी थीं. महंत रघुबर दास की अपील तब के स्थानीय कोर्ट ने खारिज कर दी थी. गजेटियर के मुताबिक भी निर्मोही अखाड़ा रामघाट पर चला गया था. एक बार विवादित इमारत की मरम्मत की ज़रूरत पड़ी तो प्रशासन ने मुसलमानों से ही तखमीना लिया था. तब राम चबूतरा ही राम जन्म स्थान माना और कहा जाता था.

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धवन आगे बोले अगर याचिका समय से दाखिल नहीं हुई तो इसका यह मतलब नहीं कि वहां मस्जिद ही नहीं थी. मूर्तियां रख देने से भी मस्जिद का अस्तित्व खत्म नहीं होता. लगातार नमाज़ ना पढ़ने से भी मस्जिद के वजूद पर सवाल नहीं उठाए जा सकते. धवन ने दावा किया कि निर्मोही अखाड़ा जो शुरू से ही इस मुकदमे में रहा है उसने भी कई बार ये माना है कि उसका आंतरिक अहाते पर दावा नहीं है.

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भोजनावकाश के बाद सुनवाई में कोर्ट ने साफ किया कि वो हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान पक्षकारों द्वारा अपने दावे के समर्थन में पेश किए गए दस्तावेज़ों पर ही सुनवाई करेगा. हाईकोर्ट में पक्षकारों में से निर्मोही अखाड़े और मुस्लिम पक्षकारों ने मालिकाना हक को लेकर 24 दस्तावेज़  दिए थे. कोर्ट ने कहा कि कई दस्तावेज़ ऐसे भी हैं जो पेश तो किए गए लेकिन उन पर भरोसा नहीं किया गया. वहीं कई दस्तावेज़ तथ्यपरक तो थे लेकिन वो पेश नहीं किए गए.

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धवन ने कहा कि 1828 के गजेटियर में हेमलटन ने मस्जिद का कोई जिक्र नहीं किया है. जबकि मार्को पोलो ने तो ज़िक्र किया है. ये दावा किया गया कि 360 मन्दिर ध्वस्त किए गए थे. ईस्ट इंडिया कम्पनी के गजेटियर में भी कहा गया है कि वहां मस्जिद थी जिसे बाबर का बनाया हुआ कहा जाता है और वहीं हिन्दू राम का जन्मस्थान मानते हैं. ऐतिहासिक कार्नेगी के स्केच और वर्णन भी बाबर के बनाई मस्जिद की बात कहते हैं. कसौटी खंभे बौद्ध मठ का हिस्सा होने का अनुमान लगाया गया था.

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हिंदुओ ने तीन बार विवादित इमारत पर कब्जे की कोशिश की थी. 1528 में बाबर के अयोध्या आने और मस्जिद बनाने की बात कही जाती है. शिलाओं पर लिखे आलेख पर कोई शक ओ शुबहा नहीं किया जा सकता. गजेटियर में दर्ज है कि जन्मस्थान के पास मस्जिद थी वहां निर्मोही अखाड़ा ने चबूतरा बनाया.1825 के आसपास वहां सिंहद्वार बनाने की इजाजत पर भी हंगामा हुआ था. फिर अदालत ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया यानी अंदर मस्जिद, बाहर पूजा.

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