क्या वाकई में बीजेपी को सौराष्ट्र में पटेलों की नाराजगी का खामियाजा उठाना पड़ा ?

आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि बीजेपी को सौराष्ट्र में पटेलों की नाराजगी के बजाए किसानों और मछुआरों के गुस्से का शिकार होना पड़ा है.

क्या वाकई में बीजेपी को सौराष्ट्र में पटेलों की नाराजगी का खामियाजा उठाना पड़ा ?

गुजरात चुनाव में मिली जीत की खुशी मनाते पीएम मोदी, अमित शाह, राजनाथ सिंह आदि.

खास बातें

  • सौराष्ट्र में मछुआरों के वर्चस्व वाली 8 सीटों में से छह पर कांग्रेस जीती
  • इनमें महत्वपूर्ण बात यह है कि चार सीटें कांग्रेस ने बीजेपी से छीन लीं
  • पिछले 22 साल में बीजेपी की सीटें पहली बार तीन अंकों में नहीं पहुंच सकी
नई दिल्ली:

गुजरात के सौराष्ट्र में बीजेपी को 14 सीटों का नुकसान हुआ. इसी वजह से न सिर्फ पार्टी की पिछली विधानसभा की तुलना में सीटें बढ़ाने की कोशिशों को झटका लगा, बल्कि पिछले 22 साल में उसकी सीटें पहली बार तीन अंकों में नहीं पहुंच सकी. माना जा रहा है कि पटेलों की नाराजगी का खमियाजा बीजेपी को भुगतना पड़ा, लेकिन क्या वाकई ऐसा है. आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि बीजेपी को सौराष्ट्र में पटेलों की नाराजगी के बजाए किसानों और मछुआरों के गुस्से का शिकार होना पड़ा है. कपास की कीमतों को लेकर किसानों के आंदोलन की खूब चर्चा हुई, लेकिन मछुआरों के गुस्से के बारे में ज्यादा बात नहीं हुई. अब पता चला है कि मछुआरों के गुस्से की वजह से बीजेपी को कम से कम आधा दर्जन सीटों पर नुकसान झेलना पड़ा है.

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गुजरात में समुद्र तट रेखा देश में सबसे बड़ी है. राज्य के 33 में से 16 जिले समुद्र तट पर हैं. कच्छ, मोरबी, जामनगर, द्वारका, पोरबंदर, जूनागढ़, सोमनाथ, अमरेली, भावनगर, अहमदाबाद, आणंद, भड़ूच, वडोदरा, सूरत, नवसारी, वलसाड़ जिलों की सीमाएं समुद्र से लगती हैं. इसमें सौराष्ट्र की कई सीटें हैं जहां मछुआरे बड़ी भूमिका निभाते हैं. इनमें पोरबंदर, द्वारका, खंभालिया, मंगरोल, सोमनाथ, कोडिनार, ऊना और राजूला विधानसभा सीटों में मछुआरों का वोट मायने रखता है.

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मछुआरों की नाराजगी की बड़ी वजह केरोसिन पर सब्सिडी में कमी और हर बोट पर इसके कोटे में कटौती है. सरकार के फैसले के मुताबिक केरोसिन पर सब्सिडी में हर पंद्रह दिनों में 25 पैसे कटौती हो रही है. जाहिर है इससे मछुआरों को अपनी बोट के लिए केरोसिन महंगा मिल रहा है. साथ ही, केरोसिन का कोटा भी घटा दिया गया है. पहले हर बोट पर हर महीने 250 लीटर तक सब्सिडी वाला केरोसिन लिया जा सकता था, लेकिन इसे घटाकर हर बोट पर सिर्फ 30 लीटर करने से मछुआरे बेहद नाराज हुए. उन्हें काला बाजार से केरोसिन खरीदना पड़ा. इसके लिए 100 रुपये प्रति लीटर तक देना पड़ रहा है.

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इनकी परेशानी यहीं नहीं रुकी. जीएसटी की मार भी मछुआरों पर पड़ी. मछली पकड़ने के सामान जैसे रस्सी, जाल, हुक, डंडी आदि पर जीएसटी 12 फीसदी हो गया, जिससे इनकी लागत बढ़ गई. राहुल गांधी को मछुआरों की नाराजगी का एहसास था. इसीलिए उन्होंने अपनी नवसर्जन यात्रा का एक दौर मछुआरों के गढ़ पोरबंदर में उनकी एक सभा से शुरू किया था. चुनाव नतीजों में मछुआरों की नाराजगी की झलक दिख रही है.

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सौराष्ट्र में मछुआरों के वर्चस्व वाली 8 सीटों में से छह पर कांग्रेस जीती. इनमें महत्वपूर्ण बात यह है कि चार सीटें कांग्रेस ने बीजेपी से छीन लीं. जैसे पोरबंदर बीजेपी ने बचा ली. द्वारका सीट भी बीजेपी ने बचाई, लेकिन खंभालिया कांग्रेस ने बीजेपी से छीनी. मंगरोल भी कांग्रेस ने छीनी. सोमनाथ कांग्रेस ने बचा ली. कोडिनार कांग्रेस ने बीजेपी से छीनी. ऊना कांग्रेस ने बचा ली. राजूला कांग्रेस ने बीजेपी से छीनी.

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बीजेपी को लगता है कि मछुआरों की नाराजगी दूर करने के लिए उसे बड़े कदम उठाने होंगे, ताकि लोक सभा चुनाव में उन्हें दोबारा साथ लिया जा सके. 


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