राहुल गांधी को हर हाल में सीखनी चाहिए पीएम मोदी से ये 6 बातें, नहीं तो 2019 में बड़ी आसानी से जीत जाएगी बीजेपी

गुजरात में कांग्रेस अगर जीत भी गई तो उसमें जीत का बड़ा श्रेय. सत्ता विरोधी लहर को जाएगा न कि राहुल गांधी को क्योंकि वह तो बीजेपी के 'जनेऊजाल' में खुद ही जा फंसे थे.

राहुल गांधी को हर हाल में सीखनी चाहिए पीएम मोदी से ये 6 बातें, नहीं तो 2019 में बड़ी आसानी से जीत जाएगी बीजेपी

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ( फाइल फोटो )

खास बातें

  • राहुल गांधी को 2019 लोकसभा चुनाव की तैयारी करनी है
  • कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद है बड़ी चुनौती
  • कांग्रेस के सामने हैं कई विधानसभा चुनाव
नई दिल्ली:

गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे 18 दिसंबर को आने हैं. इसमें गुजरात के नतीजे 2018 के होने वाले विधानसभा चुनाव ( राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़) के साथ ही 2019 के लोकसभा चुनाव तक असर डालेंगे. क्योंकि गुजरात पीएम मोदी का गृह राज्य है. लेकिन यह चुनाव कांग्रेस पार्टी के लिए भी कम अहमियत नहीं रखते हैं क्योंकि चुनाव के बीच में ही राहुल गांधी को पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया है और उन्होंने प्रचार की कमान संभाल रखी थी. नतीजे सीधे-सीधे पार्टी के अंदर उनकी छवि पर असर डालेंगे. लेकिन जिस तरह से एग्जिट पोल बीजेपी के पक्ष में आ रहे हैं उससे साफ लग रहा है कि 2019 तक राहुल गांधी को पीएम मोदी से बहुत कुछ सीखना होगा. गुजरात में कांग्रेस अगर जीत भी गई तो उसमें जीत का बड़ा श्रेय. सत्ता विरोधी लहर को जाएगा न कि राहुल गांधी को क्योंकि वह तो बीजेपी के 'जनेऊजाल' में खुद ही जा फंसे थे.


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गढ़ने होंगे नए नारे
कांग्रेस हर बार यहीं पर मात खा जाती है. दरअसल हर बार पीएम मोदी चुनाव को खुद से केंद्रित बना देते हैं और कांग्रेस इसी में उलझ कर रह जाती है. पीएम मोदी प्रचार और रैलियों में ऐसा माहौल बनाते हैं जैसे उनके विरोध का मतलब देश का विरोध होता है. पीएम मोदी को पता है कि रैली के बाद भारत माता की जय और वंदे मातरम बोलना वोटरों में क्या मैसेज देता है. राहुल गांधी को अभी इस तरह की संवाद शैली सीखनी होगी जो आम जनता रैलियों के बाद भी याद रखे. 

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'मोदी' से हटकर सोचना होगा
पूरे चुनाव में ऐसा कई बार लगा कि राहुल गांधी अपने भाषणों में पीएम मोदी की ही नकल कर रहे हैं. जैसे उन्होंने इस चुनाव में 'गब्बर सिंह टैक्स' जैसे कई नारे गढ़े लेकिन ऐसे नारों से तालियां और सीटी तो बस सकती हैं लेकिन देशप्रेम की लहर या राष्ट्रवाद का ज्वार नहीं लाया जा सकता है. जबकि पीएम मोदी के भाषणों में ऐसे जुमले कई बार देखने को मिलेंगे जिससे ऐसा लगता है कि चुनाव नहीं उसके कार्यकर्ता युद्ध लड़ रहे हो.

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'जनेऊ' जैसे 'जाल' और दबाव से बचना होगा
गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बड़े जोर शोर से विकास के मुद्दे पर मैदान में उतरी लेकिन एक गलती ने पूरी कांग्रेस को बैकफुट पर ला दिया. सोमनाथ मंदिर में गैर हिंदू रजिस्टर में दस्तखत करने के मामले में कांग्रेस ने राहुल गांधी की जनेऊ वाली फोटो जारी कर दी. जबकि इसकी कोई जरूरत नहीं थी दस्तखत वाली बात सामान्य गलती भी बताई जा सकती थी. लेकिन जनेऊधारी वाली फोटो जारी करने के बाद कांग्रेस की फजीहत तो हुई और मजाक भी उड़ा. जबकि पीएम मोदी ने इस बीच कई विवादित बयान दिए लेकिन बीजेपी ने किसी तरह का दबाव हावी नहीं होने दिया.

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कार्यकर्ताओं में आत्मविश्वास जगाने की कला
गुजरात में 22 सालों के शासन के खिलाफ गुस्से के बीच भी पीएम मोदी अपने कार्यकर्ताओं में जोश भरे रखा. पूरे चुनाव में कांग्रेस अच्छी टक्कर दी लेकिन बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने भी आखिरी दम तक हार नहीं मानी. आखिरी तक हालत यह हो गई कि कांग्रेस के कार्यकर्ता से कहीं ज्यादा हार्दिक पटेल से जुड़े कार्यकर्ता प्रचार करते नजर आए. 

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तैयार करने होंगे नए नेता
पीएम मोदी भले ही पूरे चुनाव में को खुद से केंद्रित करने देते हों लेकिन चुनावी मैनेजमेंट का पूरा काम उनकी पार्टी के नेता और कार्यकर्ताओं की फौज अपनी तरीके से करती है. पार्टी को देखकर ऐसा लगता है कि सारे निर्णय सिर्फ पीएम मोदी ही नहीं पार्टी अध्यक्ष, महासचिव और ब्ल़ॉक स्तर का नेता भी ले सकता है. जबकि कांग्रेस में यह बात बिलकुल नहीं दिखाई देती है. राहुल को यह जताना होगा कि पार्टी में हर कार्यकर्ता के पास काम है. 

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हर चुनाव को लेना होगा गंभीरता से
पीएम मोदी और अध्यक्ष अमित शाह  ने पिछले तीन सालों में पार्टी का ऐसा खाका तैयार कर दिया है कि ऐसा लगता है बीजेपी 24 घंटे जनता के बीच रहने वाली पार्टी है. इसकी एक वजह अमित शाह की रणनीति है कि हर कार्यकर्ता को इस बात का अहसास दिलाया जाए कि सांसद या विधायक न सही कम से कम पार्षद का टिकट मिल ही सकता है. इसीलिए बीजेपी निकाय चुनाव में जोर-शोर से लड़ती है. हाल ही में यूपी के निकाय चुनाव में जब जीत हुई तो कांग्रेस के नेता यह कहते नजर आए कि हमने इन चुनाव को गंभीरता से नहीं लिया जबकि उन्हें यह भी अहसास हो गया था कि इसका असर गुजरात चुनाव निश्चित तौर पर पड़ेगा. 

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